वैरागी द्वीप पर श्रमयोग की गंगा, डॉ. चिन्मय पंड्या भी हुए श्रमदान में सम्मिलित
हरिद्वार। परम वंदनीया माता भगवती देवी शर्मा जी की जन्मशती के भव्य आयोजन हेतु चयनित स्थल, वैरागी द्वीप, हरिद्वार में श्रमयोग की परंपरा चरम पर है। जिस प्रकार त्रेता युग में माता सीता की मुक्ति के लिए रीछों और वानरों ने अतुलनीय पराक्रम प्रदर्शित किया था, उसी तरह आज स्नेह-सलीला परम वंदनीया माता जी की जन्मशती को सफल बनाने हेतु गायत्री परिवार का हर सदस्य अपनी सामर्थ्य से बढ़कर चुनौतीपूर्ण सेवा कार्य में संलग्न है।
परम पूज्य गुरुदेव और वंदनीया माता जी के प्रेम तथा स्नेह से सिंचित अखिल विश्व गायत्री परिवार के बालक, किशोर, युवा, वृद्ध, नर और नारी—सभी अपनी देह की चिंता किए बिना वैरागी द्वीप के मैदान को समतल और निष्कंटक बनाने के लिए निरंतर श्रम कर रहे हैं।
विगत दिनों की भाँति, आज दिनांक १६ नवंबर २०२५ को भी सुबह से ही गायत्री परिजन वैरागी द्वीप पर उपस्थित होकर शताब्दी कार्यक्रम की सफलता हेतु उत्साहपूर्वक पसीना बहाते दिखे।
डॉ. चिन्मय पंड्या ने किया श्रमयोगियों का अभिनंदन
कार्यक्रम स्थल पर आज देवसंस्कृति विश्वविद्यालय (देसंविवि) के प्रतिकुलपति आदरणीय डॉ. चिन्मय पंड्या जी का पावन आगमन हुआ। उन्होंने श्रमयोग में लगे समस्त साधकों का हृदय से अभिनंदन किया और उन्हें गायत्री परिवार प्रमुखद्वय श्रद्धेय डॉ. साहब एवं श्रद्धेया जीजी का आशीर्वचन प्रेषित किया।
प्रेरणा का अप्रतिम उदाहरण प्रस्तुत करते हुए, आदरणीय डॉ. पंड्या जी ने स्वयं भी परिजनों के साथ मिलकर श्रमदान किया। उन्होंने कुछ समय तक फावड़ा चलाकर और पत्थरों को हटाकर सेवा कार्य में अपना योगदान दिया, जिससे श्रमदान कर रहे कार्यकर्ताओं का उत्साह कई गुना बढ़ गया।
श्रमदान के पश्चात्, डॉ. पंड्या जी ने कार्यक्रम स्थल पर चल रहे निर्माण एवं विकास कार्यों की अब तक की प्रगति की समीक्षा की। उन्होंने स्थल पर हो रहे विभिन्न ढाँचागत कार्यों का सूक्ष्म निरीक्षण किया और शताब्दी समारोह की सफलता हेतु आगे की तैयारियों के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश भी प्रदान किए। आदरणीय डॉ पंड्या जी के साथ आयोजन स्थल पर शांतिकुंज व्यवस्थापक आदरणीय श्री योगेंद्र गिरी जी, उपस्थित थे।
समस्त गायत्री परिजनों का यह श्रमदान न केवल स्थल को तैयार कर रहा है, बल्कि यह गुरुसत्ता के प्रति उनकी अटूट निष्ठा और समर्पण का भी प्रतीक है।
