धर्मनिष्ठा आज की सर्वोपरि आवश्यकता (भाग १)
कटुता, भ्रान्ति, सन्देह, भय और संघर्षों से भरे आज के इस संसार का भविष्य अनिश्चित और अन्धकारमय ही दीख रहा है। विज्ञान ने जिन अस्त्रों का आविष्कार किया है वे पृथ्वी की-चिर संचित मानव-सभ्यता को बात की बात में नष्ट करने में समर्थ हैं। कच्चे धागे में बँधी लटकती तलवार की तरह कभी भी कोई विपत्ति आ सकती है और कोई भी पागल राजनेता अपनी एक छोटी सी सनक में इस सुन्दर धरती को ऐसी कुरूप और निरर्थक बना सकता है जिसमें मनुष्य क्या किसी भी प्राणी का जीवन असम्भव हो जाय।
इस सर्वनाशी विनाश से कम कष्टकारक वह स्थिति भी नहीं है जिसमें बौद्धिक अन्धकार, नैतिक बर्बरता की काली घटनायें तिल-तिल जलने और रोने, सिसकने की परिस्थितियों से सर्वत्र अशान्ति उत्पन्न किये हुए हैं। संसार एक अचेतन मूर्छना के गर्त में दिन-दिन गहरा उतरता जाता है। हमारा आध्यात्मिक, नैतिक और सामाजिक जीवन मानो ऐसी शून्यता की ओर चल रहा है जिसका न कोई लक्ष्य है न प्रयोजन। पथ भटके बनजारे की तरह हम चल तो तेजी से रहे हैं पर उसका कुछ परिणाम नहीं निकल रहा है। कई बार तो लगता है, प्रगति के नाम पर अगति की ओर पीछे लौट रहे हैं और उस आदिम युग की ओर उलट पड़े हैं जहाँ से कि सभ्यता का आरम्भ हुआ था।
कई व्यक्ति सोचते हैं कि इस व्यापक भ्रष्टाचार का अन्त बड़े युद्धों द्वारा होगा। आज जिन लोगों के हाथ में राजनैतिक, बौद्धिक तथा आर्थिक सत्ता है यदि वे अपने छोटे स्वार्थों के लिए समाज के विनाश की अपनी वर्तमान गतिविधियों को रोकते नहीं है और अपने प्रभाव तथा साधनों का दुरुपयोग करते ही चले जाते हैं तो उन्हें बलात् पदच्युत किया जाना चाहिए। इसके लिये चाहे सशस्त्र क्रान्ति या युद्ध ही क्यों न करना पड़े।
इस प्रकार सोचने वालों की बेचैनी और व्यथा तो समझ में आती है पर जिस उपाय से वे सुधार करना चाहते हैं वह संदिग्ध है। कल्पना करें कि आज के प्रभावशाली लोग-समाज बदलने के लिए अपने को बदलने की नीति अंगीकार नहीं करते और उन्हें युद्ध या शस्त्रों की सहायता से हटाया जाता है तो यही क्या गारण्टी है कि शस्त्रों से जिस सत्ता को हटाया गया है उसी को वे नये शस्त्रधारी न हथिया लेंगे। मध्य पूर्व और पाकिस्तान में सैनिक क्रान्तियों का सिलसिला चल रहा है। नये शासन से भी हर बार वैसी ही थोड़े हेर-फेर के साथ शिकायतें शुरू हो गई जैसी पहले वालों से थी। सत्ता और साधनों में कोई त्रुटि नहीं है, दोष उनके प्रयोगकर्त्ताओं का है। तो हमें ऐसे प्रयोगकर्त्ताओं का निर्माण करना चाहिए जो शक्ति का उपयोग स्वार्थ की परिधि से बाहर रखकर लोक मंगल के लिए प्रयुक्त कर सकने के लिए विश्वस्त एवं प्रामाणिक सिद्ध हो सकें।
.... क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति जनवरी 1972 पृष्ठ 25
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