हमारी वसीयत और विरासत (भाग 7)— जीवन के सौभाग्य का सूर्योदय

जीवन के सौभाग्य का सूर्योदय:—
शिष्य गुरुओं की खोज में रहते हैं। मनुहार करते हैं। कभी उनकी अनुकंपा, भेंट-दर्शन हो जाए, तो अपने को धन्य मानते हैं। उनसे कुछ प्राप्त करने की आकांक्षा रखते हैं। फिर क्या कारण है कि मुझे अनायास ही ऐसे सिद्धपुरुष का अनुग्रह प्राप्त हुआ? यह कोई छद्म तो नहीं है? अदृश्य में प्रकटीकरण की बात भूत-प्रेत से संबंधित सुनी जाती है और उनसे भेंट होना किसी अशुभ-अनिष्ट का निमित्तकारण माना जाता है। दर्शन होने के उपरांत मन में यही संकल्प उठने लगे। संदेह उठा; किसी विपत्ति में फँसने जैसा कोई अशुभ तो पीछे नहीं पड़ा।
मेरे इस असमंजस को उन्होंने जाना। रुष्ट नहीं हुए, वरन् वस्तुस्थिति को जानने के उपरांत किसी निष्कर्ष पर पहुँचने और बाद में कदम उठाने की बात उन्हें पसंद आई। यह बात उनकी प्रसन्न मुखमुद्रा को देखने से स्पष्ट झलकती थी। कारण पूछने में समय नष्ट करने के स्थान पर उन्हें यह अच्छा लगा कि अपना परिचय, आने का कारण और मुझे पूर्वजन्म की स्मृति दिलाकर विशेष प्रयोजन के निमित्त चुनने का हेतु स्वतः ही समझा दें। कोई घर आता है, तो उसका परिचय और आगमन का निमित्तकारण पूछने का लोक-व्यवहार भी है। फिर कोई वजनदार आगंतुक जिसके घर आते हैं, उसका भी वजन तोलते हैं। अकारण हलके और ओछे आदमी के यहाँ जा पहुँचना, उनका महत्त्व भी घटाता है और किसी तर्कबुद्धि वाले के मन में ऐसा कुछ घटित होने के पीछे कोई कारण न होने की बात पर संदेह होता है और आश्चर्य भी।
पूजा की कोठरी में प्रकाश-पुंज उस मानव ने कहा— ‘‘तुम्हारा सोचना सही है। देवात्माएँ जिनके साथ संबंध जोड़ती हैं, उन्हें परखती हैं। अपनी शक्ति और समय खरच करने से पूर्व कुछ जाँच-पड़ताल भी करती हैं। जो भी चाहे, उसके आगे प्रकट होने लगें और उसका इच्छित प्रयोजन पूरा करने लगें, ऐसा नहीं होता। पात्र-कुपात्र का अंतर किए बिना चाहे जिसके साथ संबंध जोड़ना किसी बुद्धिमान और सामर्थ्यवान के लिए कभी कहीं संभव नहीं होता। कई लोग ऐसा सोचते तो हैं कि किसी संपन्न महामानव के साथ संबंध जोड़ने में लाभ है, पर यह भूल जाते हैं कि दूसरा पक्ष अपनी सामर्थ्य किसी निरर्थक व्यक्ति के निमित्त क्यों गँवाएँगे?’’
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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