हमारी वसीयत और विरासत (भाग 10)— जीवन के सौभाग्य का सूर्योदय

जीवन के सौभाग्य का सूर्योदय:—
गंध बाबा— चाहे जिसे सुगंधित फूल सूँघा देते थे। बाघ बाबा— अपनी कुटी में बाघ को बुलाकर बिठा लेते थे। समाधि बाबा— कई दिन तक जमीन में गड़े रहते थे। सिद्ध बाबा— आगंतुकों की मनोकामना पूरी करते थे। ऐसी-ऐसी जनश्रुतियाँ भी दिमाग में घूम गईं और समझ में आया कि यदि इन घटनाओं के पीछे मेस्मेरिज्म स्तर की जादूगरी थी, तो वे 'महान' कैसे हो सकते हैं? ठंडे प्रदेश में गुफा में रहना जैसी घटनाएँ भी कौतूहलवर्द्धक ही हैं। जो काम साधारण आदमी न कर सके, उसे कोई एक करामात की तरह कर दिखाए तो इसमें कहने भर की सिद्धाई है।
मौन रहना, हाथ पर रखकर भोजन करना, एक हाथ ऊपर रखना, झूले पर पड़े-पड़े समय गुजारना जैसे असाधारण करतब दिखाने वाले बाजीगर सिद्ध हो सकते हैं, पर यदि कोई वास्तविक सिद्ध या शिष्य होगा, तो उसे पुरातनकाल के, लोक-मंगल के लिए जीवन उत्सर्ग करने वाले ऋषियों के राजमार्ग पर चलना पड़ा होगा। आधुनिककाल में भी विवेकानंद, दयानंद, कबीर, चैतन्य, समर्थ की तरह उस मार्ग पर चलना पड़ेगा। भगवान अपना नाम जपने वाले मात्र से प्रसन्न नहीं होते। न उन्हें पूजा-प्रसाद आदि की आवश्यकता है। जो उनके इस विश्व-उद्यान को सुरम्य, सुविकसित करने में लगते हैं, उन्हीं का नामजप सार्थक है। यह विचार मेरे मन में उसी वसंत पर्व के दिन, दिन भर उठते रहे; क्योंकि उनने स्पष्ट कहा था कि, ‘‘पात्रता में जो कमी है, उसे पूरा करने के साथ-साथ लोकमंगल का कार्य भी साथ-साथ करना है। एक के बाद दूसरा नहीं, दोनों साथ-साथ।’’ चौबीस वर्ष का उपासनाक्रम समझाया; गायत्री पुरश्चरणों की शृंखला बताई; इसके साथ पालन करने योग्य नियम बताए; साथ ही स्वतंत्रता संग्राम में एक सच्चे स्वयंसेवक की तरह काम करते रहने के लिए कहा।
उस दिन उन्होंने हमारा समूचा जीवनक्रम किस प्रकार चलना चाहिए, इसका स्वरूप एवं पूरा विवरण बताया। बताया ही नहीं, स्वयं लगाम हाथ में लेकर चलाया भी। चलाया ही नहीं, हर प्रयास को सफल भी बनाया।
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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