हमारी वसीयत और विरासत (भाग 11)— जीवन के सौभाग्य का सूर्योदय

जीवन के सौभाग्य का सूर्योदय:—
उस दिन हमने सच्चे मन से उन्हें समर्पण किया। वाणी ने नहीं, आत्मा ने कहा— ‘‘जो कुछ पास में है, आपके निमित्त ही अर्पण। भगवान को हमने देखा नहीं, पर वह जो कल्याण कर सकता था, वही कर रहे हैं। इसलिए आप हमारे भगवान हैं। जो आज सारे जीवन का ढाँचा आपने बताया है, उसमें राई-रत्ती प्रमाद न होगा।’’
उस दिन उनने भावी जीवन संबंधी थोड़ी-सी बातें विस्तार से समझाईं।
1— गायत्री महाशक्ति के चौबीस वर्ष में चौबीस महापुरश्चरण,
2— अखंड घृतदीप की स्थापना,
3— चौबीस वर्ष में एवं उसके बाद समय-समय पर क्रमबद्ध मार्गदर्शन के लिए चार बार हिमालय अपने स्थान पर बुलाना, प्रायः छः माह से एक वर्ष तक अपने समीपवर्ती क्षेत्र में ठहराना।
इस संदर्भ में और भी विस्तृत विवरण जो उनको बताना था, सो बता दिया। विज्ञ पाठकों को इतनी ही जानकारी पर्याप्त है, जितना ऊपर उल्लेख है। उनके बताए निर्देशानुसार सारे काम जीवन भर निभते चले गए एवं वे उपलब्धियाँ हस्तगत होती रहीं, जिन्होंने आज हमें वर्तमान स्थिति में ला बिठाया है।
क्रमशः जारी
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