हमारी वसीयत और विरासत (भाग 28)— दिए गए कार्यक्रमों का प्राणपण से निर्वाह

दिए गए कार्यक्रमों का प्राणपण से निर्वाह:—
कांग्रेस अपनी गायत्री-गंगोत्री की तरह जीवनधारा रही। जब स्वराज्य मिल गया, तो हमने उन्हीं कामों की ओर ध्यान दिया, जिससे स्वराज्य की समग्रता संपन्न हो सके। राजनेताओं को देश की राजनैतिक-आर्थिक स्थिति सँभालनी चाहिए। पर नैतिक क्रांति, बौद्धिक क्रांति और सामाजिक क्रांति उससे भी अधिक आवश्यक है, जिसे हमारे जैसे लोग ही संपन्न कर सकते हैं। यह धर्मतंत्र का उत्तरदायित्व है।
अपने इस नए कार्यक्रम के लिए अपने सभी गुरुजनों से आदेश लिया और कांग्रेस का एक ही कार्यक्रम अपने जिम्मे रखा— ‘खादी धारण।’ इसके अतिरिक्त उसके सक्रिय कार्यक्रमों से उसी दिन पीछे हट गए, जिस दिन स्वराज्य मिला। इसके पीछे बापू का आशीर्वाद था; दैवी सत्ता का हमें मिला निर्देश था। प्रायः 20 वर्ष लगातार काम करते रहने पर जब मित्रों ने स्वतंत्रता-संग्राम सेनानी के नाते निर्वाह राशि लेने का फार्म भेजा, तो हमने हँसकर स्पष्ट मना कर दिया। हमें राजनीति में श्रीराम मत्त या मत्त जी के नाम से जाना जाता है। जो लोग जानते हैं; उस समय के मूर्द्धन्य जो जीवित हैं, उन्हें विदित है कि आचार्य जी (मत्त जी) कांग्रेस के आधारस्तंभ रहे हैं और कठिन-से-कठिन कामों में अग्रिम पंक्ति में खड़े रहे हैं, किंतु जब श्रेय लेने का प्रश्न आया, उन्होंने स्पष्टतः स्वयं को परदे के पीछे रखा।
तीनों काम यथावत् पूरी तत्परता और तन्मयता के साथ संपन्न किए और साथ ही गुरुदेव जब-जब हिमालय बुलाते रहे, तब-तब जाते रहे। बीच के दो आमंत्रणों में उनने छह-छह महीने ही रोका। कहा— ‘‘कांग्रेस का कार्य स्वतंत्रताप्राप्ति की दृष्टि से इन दिनों आवश्यक है, सो इधर तुम्हारा रुकना छह-छह महीने ही पर्याप्त होगा।’’ उन छह महीनों में हमसे क्या कराया गया एवं क्या कहा गया, यह सर्वसाधारण के लिए जानना जरूरी नहीं है। दृश्य जीवन के ही अगणित प्रसंग ऐसे हैं, जिन्हें हम अलौकिक एवं दैवीशक्ति की कृपा का प्रसाद मानते हैं; उसे याद करते हुए कृतकृत्य होते रहते हैं।
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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