हमारी वसीयत और विरासत (भाग 36)— गुरुदेव का प्रथम बुलावा-पग-पग पर परीक्षा
बात वन्य पशुओं की— हिंस्र जंतुओं की रह गई। वे प्रायः रात को ही निकलते हैं। उनकी आँखें चमकती हैं। फिर मनुष्य से सभी डरते हैं; शेर भी। यदि स्वयं उनसे न डरा जाए; उन्हें छेड़ा न जाए, तो मनुष्य पर आक्रमण नहीं करते; उनके मित्र ही बनकर रहते हैं।
प्रारंभ में हमें इस प्रकार का डर लगता था। फिर सरकस के सिखाने वालों की बात याद आई। वे उन्हें कितने करतब सिखा लेते है। तंजानिया की एक यूरोपियन महिला का वृत्तांत पढ़ा था। ‘बॉर्न फ्री’, जिसका पति वन विभाग का कर्मचारी था। उसकी स्त्री ने पति द्वारा माँ-बाप से बिछुड़े दो शेर के बच्चे पाल रखे थे और वे जवान हो जाने पर भी गोद में सोते रहते थे। अपने मन में वजनदार निर्भयता या प्रेमभावना हो, तो घने जंगलों में आनंद से रहा जा सकता है। वनवासी भील लोग अक्सर उसी क्षेत्र में रहते हैं। उन्हें न डर लगता है और न जोखिम दीखता है। ऐसे-ऐसे उदाहरणों को स्मृति में रखते-रखते निर्भयता आ गई और विचारा कि एक दिन वह आवेगा, जब हम वन में कुटी बनाकर रहेंगे और गाय-शेर एक घाट पर पानी पिया करेंगे।
मन कमजोर भी है और मना लिए जाने पर समर्थ भी। हमने उस क्षेत्र में पहुँचकर यात्रा जारी रखी और मन में से भय निकाल दिया। अनुकूल परिस्थिति की अपेक्षा करने के स्थान पर मनःस्थिति को मजबूत बनाने की बात सोची। इस दिशा में मन को ढालते चले गए और प्रतिकूलताएँ, जो आरंभ में बड़ी डरावनी लगती थीं, अब बिलकुल सरल और स्वाभाविक-सी लगने लगीं।
मन की कुटाई, पिटाई और ढलाई करते-करते वह बीस दिन की यात्रा में काबू में आ गया। वह क्षेत्र ऐसा लगने लगा, मानो हम यहीं पैदा हुए हैं और यहीं मरना है।
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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