हमारी वसीयत और विरासत (भाग 39)— गुरुदेव का प्रथम बुलावा-पग-पग पर परीक्षा

वहीं बहते निर्झर में स्नान किया; संध्यावंदन भी। जीवन में पहली बार ब्रह्मकमल और देवकंद देखा। ब्रह्मकमल ऐसा, जिसकी सुगंध थोड़ी देर में ही नींद कहें या योगनिद्रा, ला देती है। देवकंद वह, जो जमीन में शकरकंद की तरह निकलता है, सिंघाड़े जैसे स्वाद का। पका होने पर लगभग पाँच सेर का, जिससे एक सप्ताह तक क्षुधा-निवारण का क्रम चल सकता है। गुरुदेव के यही दो प्रथम प्रत्यक्ष उपहार थे। एक शारीरिक थकान मिटाने के लिए और दूसरा मन में उमंग भरने के लिए।
इसके बाद तपोवन पर दृष्टि दौड़ाई। पूरे पठार पर मखमली फूलदार गलीचा-सा बिछा हुआ था। तब तक भारी बरफ नहीं पड़ी थी। जब पड़ती है, तब यह फूल सभी पककर जमीन पर फैल जाते हैं, अगले वर्ष उगने के लिए।
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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