हमारी वसीयत और विरासत (भाग 41)— ऋषितंत्र से दुर्गम हिमालय में साक्षात्कार

मैं गुफा में से निकलकर शीत से काँपते हुए स्वर्णिम हिमालय पर अधर-ही-अधर गुरुदेव के पीछे-पीछे उनकी पूँछ की तरह सटा हुआ चल रहा था। आज की यात्रा का उद्देश्य पुरातन ऋषियों की तपस्थलियों का दिग्दर्शन करना था। स्थूलशरीर सभी ने त्याग दिए थे, पर सूक्ष्मशरीर उनमें से अधिकांश के बने हुए थे। उन्हें भेदकर किन्हीं-किन्हीं के कारणशरीर भी झलक रहे थे। नतमस्तक और करबद्ध नमन की मुद्रा अनायास ही बन गई। आज मुझे हिमालय पर सूक्ष्म और कारणशरीरों से निवास करने वाले ऋषियों का दर्शन और परिचय कराया जाना था। मेरे लिए आज की रात्रि जीवन भर के सौभाग्यशाली क्षणों में सबसे अधिक महत्त्व की वेला थी।
उत्तराखंड क्षेत्र की कुछ गुफाएँ तो जब-तब आते समय यात्रा के दौरान देखी थीं, पर देखी वही थीं, जो यातायात की दृष्टि से सुलभ थीं। आज जाना कि जितना देखा है, उससे अनदेखा कहीं अधिक है। इनमें जो छोटी थीं, वे तो वन्य पशुओं के काम आती थीं, पर जो बड़ी थीं; साफ-सुथरी और व्यवस्थित थीं, वे ऋषियों के सूक्ष्मशरीरों के निमित्त थीं। पूर्व-अभ्यास के कारण वे अभी भी उनमें यदा-कदा निवास करते हैं।
वे सभी उस दिन ध्यानमुद्रा में थे। गुरुदेव ने बताया कि वे प्रायः सदा इसी स्थिति में रहते हैं। अकारण ध्यान तोड़ते नहीं। मुझे एक-एक का नाम बताया और सूक्ष्मशरीर का दर्शन कराया गया। यही है— संपदा, विशिष्टता और विभूति-संपदा इस क्षेत्र की।
गुरुदेव के साथ मेरे आगमन की बात उन सभी को पूर्व से ही विदित थी। सो हम दोनों जहाँ भी, जिस-जिस समय पहुँचे, उनके नेत्र खुल गए; चेहरों पर हलकी मुस्कान झलकी और सिर उतना ही झुका, मानो वे अभिवादन का प्रत्युत्तर दे रहे हों। वार्त्तालाप किसी से कुछ नहीं हुआ। सूक्ष्मशरीर को कुछ कहना होता है, तो वे बैखरी-मध्यमा से नहीं, परा और पश्यंति वाणी से— कर्णछिद्रों के माध्यम से नहीं, अंतःकरण में उठी प्रेरणा के रूप में कहते हैं, पर आज दर्शन मात्र प्रयोजन था। कुछ कहना और सुनना नहीं था। उनकी बिरादरी में एक नया विद्यार्थी भरती होने आया, सो उसे जान लेने और जब जैसी सहायता करने की आवश्यकता समझें, तब वैसी उपलब्ध करा देने का सूत्र जोड़ना ही उद्देश्य था। संभवतः यह उन्हें पहले ही बताया जा चुका होगा कि उनके अधूरे कामों को समय की अनुकूलता के अनुसार पूरा करने के लिए यह स्थूलशरीरधारी बालक अपने ढंग से क्या-क्या कुछ करने वाला है एवं अगले दिनों इसकी भूमिका क्या होगी?
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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