हमारी वसीयत और विरासत (भाग 42)— ऋषितंत्र से दुर्गम हिमालय में साक्षात्कार

सूक्ष्मशरीर से अंतःप्रेरणाएँ उमगाने और शक्तिधारा प्रदान करने का काम हो सकता है, पर जनसाधारण को प्रत्यक्ष परामर्श देना और घटनाक्रमों को घटित करना स्थूलशरीरों का ही काम है। इसलिए दिव्यशक्तियाँ किन्हीं स्थूलशरीरधारियों को भी अपने प्रयोजनों के लिए वाहन बनाती हैं। अभी तक मैं एक ही मार्गदर्शक का वाहन था, पर अब वे हिमालयवासी अन्य दिव्य आत्माएँ भी अपने वाहन का काम ले सकती थीं और तदनुसार प्रेरणा, योजना एवं क्षमता प्रदान करती रह सकती थीं। गुरुदेव इसी भाववाणी में मेरा परिचय उन सबसे करा रहे थे। वे सभी बिना लोकाचार-शिष्टाचार निबाहे; बिना समयक्षेप किए एक संकेत में उस अनुरोध की स्वीकृति दे रहे थे। आज रात्रि की दिव्ययात्रा इसी रूप में चलती रही। प्रभात होने से पूर्व ही वे मेरी स्थूलकाया को निर्धारित गुफा में छोड़कर अपने स्थान को वापस चले गए।
आज ऋषिलोक का पहली बार दर्शन हुआ। हिमालय के विभिन्न क्षेत्रों— देवालय, सरोवरों, सरिताओं का दर्शन तो यात्राकाल में पहले से भी होता रहा। उस प्रदेश को ऋषि-निवास का देवात्मा भी मानते रहे हैं, पर इससे पहले यह विदित न था कि किस ऋषि का, किस भूमि से लगाव है? यह आज पहली बार देखा और अंतिम बार भी। वापस छोड़ते समय मार्गदर्शक ने कह दिया कि इनके साथ अपनी ओर से संपर्क साधने का प्रयत्न मत करना। उनके कार्य में बाधा मत डालना। यदि किसी को कुछ निर्देशन करना होगा, तो वैसा स्वयं ही करेंगे। हमारे साथ भी तो तुम्हारा यही अनुबंध है कि अपनी ओर से द्वार नहीं खटखटाओगे। जब हमें जिस प्रयोजन के लिए जरूरत पड़ा करेगी, स्वयं ही पहुँचा करेंगे और उसकी पूर्ति के लिए आवश्यक साधन जुटा दिया करेंगे। यही बात आगे से तुम उन ऋषियों के संबंध में भी समझ सकते हो, जिनके कि दर्शन प्रयोजनवश तुम्हें आज कराए गए हैं। इस दर्शन को कौतूहल भर मत मानना, वरन् समझना कि हमारा अकेला ही निर्देश तुम्हारे लिए सीमित नहीं रहा। यह महाभाग भी उसी प्रकार अपने सभी प्रयोजन पूरा कराते रहेंगे, जो स्थूलशरीर के अभाव में स्वयं नहीं कर सकते। जनसंपर्क प्रायः तुम्हारे जैसे सत्पात्रों— वाहनों के माध्यम से कराने की ही परंपरा रही है। आगे से तुम इनके निर्देशनों को भी हमारे आदेश की तरह ही शिरोधार्य करना और जो कहा जाए, सो करने के लिए जुट पड़ना। मैं स्वीकृति सूचक संकेत के अतिरिक्त और कहता ही क्या? वे अंतर्ध्यान हो गए।
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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