हमारी वसीयत और विरासत (भाग 44)— भावी रूपरेखा का स्पष्टीकरण
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“तुम्हारा समर्पण यदि सच्चा है, तो शेष जीवन की कार्यपद्धति बनाए देते हैं। इसे परिपूर्ण निष्ठा के साथ पूरी करना। प्रथम कार्यक्रम तो यही है कि 24 लक्ष्य गायत्री महामंत्र के 24 महापुरश्चरण चौबीस वर्ष में पूरे करो। इससे मजबूती में जो कमी रही होगी, सो पूरी हो जाएगी। बड़े और भारी काम करने के लिए बड़ी समर्थता चाहिए। उसी के निमित्त यह प्रथम कार्यक्रम सौंपा गया है। इसी के साथ-साथ दो कार्य और भी चलते रहेंगे। एक यह कि अपना अध्ययन जारी रखो। तुम्हें कलम उठानी है। आर्षग्रंथों के अनुवाद-प्रकाशन की व्यवस्था करके उसे सर्वसाधारण तक पहुँचाना है। इससे देव संस्कृति की लुप्तप्राय कड़ियाँ जुड़ेंगी और भविष्य में विश्व संस्कृति का ढाँचा खड़ा करने में सहायता मिलेगी। इसके साथ ही जब तक स्थूलशरीर विद्यमान है, तब तक मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण करने वाला सर्वसुलभ साहित्य विश्व-वसुधा की सभी संभव भाषाओं में लिखा जाना है। यह कार्य तुम्हारी प्रथम साधना की शक्ति से संबद्ध है। इसमें समय आने पर तुम्हारी सहायता के लिए सुपात्र मनीषी आ जुटेंगे, जो तुम्हारा छोड़ा काम पूरा करेंगे।”
“तीसरा कार्य स्वतंत्रता-संग्राम में एक सिपाही की तरह प्रत्यक्ष एवं पृष्ठभूमि में रहकर लड़ते रहने का है। यह सन् 1947 तक चलेगा। तब तक तुम्हारा पुरश्चरण भी बहुत कुछ पूरा हो लेगा। यह प्रथम चरण है। इसकी सिद्धियाँ जनसाधारण के सम्मुख प्रकट होंगी। इस समय के लक्षण ऐसे नहीं हैं, जिनसे यह प्रतीत हो कि अँगरेज भारत को स्वतंत्रता देकर सहज ही चले जाएँगे। किंतु यह सफलता तुम्हारा अनुष्ठान पूरा होने के पूर्व ही मिलकर रहेगी। तब तक तुम्हारा ज्ञान इतना हो जाएगा, जितना कि युग परिवर्तन और नवनिर्माण के लिए किसी तत्त्ववेत्ता के पास होना चाहिए।”
“पुरश्चरणों की समग्र संपन्नता तब होती है, जब उसका पूर्णाहुति यज्ञ भी किया जाए। चौबीस लाख पुरश्चरण का गायत्री महायज्ञ इतना बड़ा होना चाहिए, जिसमें 24 लाख मंत्रों की आहुतियाँ हो सकें एवं तुम्हारा संगठन इस माध्यम से खड़ा हो जाए। यह भी तुम्हें ही करना है। इसमें लाखों रुपए की राशि और लाखों की सहायक जनसंख्या चाहिए। तुम यह मत सोचना कि हम अकेले हैं; पास में धन नहीं है। हम तुम्हारे साथ हैं; साथ ही तुम्हारी उपासना का प्रतिफल भी। इसलिए संदेह करने की गुंजाइश नहीं है। समय आने पर सब हो जाएगा। साथ ही सर्वसाधारण को यह भी विदित हो जाएगा कि सच्चे साधक की सच्ची साधना का कितना चमत्कारी प्रतिफल होता है।
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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