गुरु पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर आदरणीय डॉ. चिन्मय पंड्या जी का प्रेरणादायी उद्बोधन

पावन गुरु पूर्णिमा पर्व की पूर्व संध्या पर शांतिकुंज सभागार में शांतिकुंज के प्रखर वक्ता आदरणीय डॉ चिन्मय पंड्या जी का संबोधन हुआ। हजारों परिजनों को संबोधित करते हुए डॉ पंड्या जी ने कहा कि इस धरती पर जन्म लेना एक सौभाग्य है। और परम पूज्य गुरुदेव से जुड़ना उससे भी बड़ा सौभाग्य है। उन्होंने कहा कि जब सौभाग्य जगता है तब उसके साथ कर्तव्य भी जुड़ जाता है। पूज्य गुरुदेव से जुड़ना हम सबका सौभाग्य है तो पूज्य गुरुदेव के सपनों को साकार करना हमारा कर्तव्य है। गुरुदेव कहते थे मुझे एक हजार हीरों का हार चाहिए। मुझे अनेकों विवेकानंद चाहिए। आज गुरु पूर्णिमा के इस सौभाग्यशाली समय में हमारा यह कर्तव्य होना चाहिए कि हम गुरुदेव के वो हीरे बनें जो गुरुदेव के गले में शोभायमान हो। हम विवेकानंद की तरह बने जिससे गुरुत्तर कार्यों को पूरा करने का कर्तव्य हम पूरा कर सकें। आदरणीय डॉ चिन्मय पंड्या जी की ओजस्वी वाणी से पूज्यवर के विचार सुनकर सभागार में उपस्थित हजारों परिजन भाव विभोर हो उठे।
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