उच्चस्तरीय अध्यात्म साधना के तीन चरण (भाग 6)
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बादलों को ईश्वर के उद्यान में उगे हुए सुरभित पुष्प माना जाय और उन्हें माली तरह सींचा, सँभाला जाय। अपनी संपदा, बुढ़ापे की लकड़ी वंश चलाने वाले उत्तराधिकारी, मात्र प्रियपात्र यदि उन्हें माना समझा जायेगा तो वे ही बालक बंधन रूप सिद्ध होंगे और लोक-परलोक में विविध विधि दुर्गति का करण बनेंगे। दृष्टिकोण का अंतर रहने के कारण एक व्यक्ति के लिए शिशु पोषण, परिवार पालन अपार उद्वेग उत्पन्न करेगा जब कि परिष्कृत चिंतन शैली से की गई परिवार सेवा-गृहस्थयोग साधना बन जाती है। पिता-माता भाई-बहिन आदि का भरा-पूरा कुटुंब किसी भावनाशील व्यक्ति के लिए अपने सद्गुणों के विकास के लिए विनिर्मित प्रयोगशाला ही सिद्ध होता है।
इन थोड़े से व्यक्तियों की सुव्यवस्था बनाना एक छोटे राज्य का सुशासन चलाने के समान है। नेतृत्व, सुसंचालन, सुव्यवस्था की दिशा में किसने कितनी योग्यता प्राप्त की उसकी परीक्षा पारिवारिक जीवन में बरती गई रीति-नीति से होती है। जो उसमें उत्तीर्ण होते हैं उन्हें भगवान अधिक बड़े क्षेत्र का-अधिक महत्त्वपूर्ण उत्तरदायित्व सौंपते हैं। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए परिवार के लिए उपार्जन एवं सुविधा व्यवस्था में लगने वाला अधिकांश समय तथा मनोयोग नियोजित किया जाय तो घर ही तपोवन बन सकता है ऐसे लोगों को तपोवन में घर बनाने की आवश्यकता नहीं है।
शरीर को भगवान का मंदिर-भगवान के प्रयोजनों में काम आने वाला वाहन माना जाय और उसे स्वस्थ सुव्यवस्थित बनाने वाले क्रिया-कलाप अपनाये जाये तो शरीर यात्रा के लिए किया गया पुरुषार्थ प्रकाराँतर से ईश्वर की सेवा, पूजा स्तर का ही रहेगा। उपार्जन में यदि ईमानदारी, उचित लाभ, जनता की आवश्यकता पूर्ति, परिवार व्यवस्था के लिए श्रम एवं साधना के रूप में किया जाय तो वही व्यापार, नौकरी, कृषि, शिल्प, वृद्धि, श्रम आदि एक प्रकार से कर्मयोग का क्रिया-कृत्य ही माना जाएगा शरीर को यदि वासना, प्रदर्शन, अहंकार, अनाचार के लिए अनीति और उच्छृंखलता पूर्वक सजाया पोषा और बलिष्ठ कारक स्वार्थपरता की श्रेणी में गिना जाएगा भोजन यदि भगवान का प्रसाद, शरीर इंजन का ईंधन, क्षुधा रोग की औषधि की तरह किया जा रहा है तो वह परमार्थ है किंतु यदि चटोरेपन की लालसा से अनुपयुक्त आहार किया जा रहा है तो वही सामान्य दीखने वाली प्रक्रिया पाप परिणाम प्रस्तुत करेगी।
.... क्रमशः जारी
अखण्ड ज्योति जनवरी 1973 पृष्ठ 6
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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