जीवन संग्राम में विजय अवसर न चूकिए

हम लोग प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा करके जो समय खो दिया करते हैं, वह पहले तो सामान्य ही जान पड़ता है, पर यदि हम अपने जीवन के अंतिम भाग में पहुँच कर इस प्रकार के खोये समय का हिसाब लगायें, तो उसका विशाल परिणाम देखकर आश्चर्य होगा। जिन क्षणों को छोटा समझकर हम व्यर्थ खो देते हैं उन्हीं छोटे क्षणों को काम में लाकर अनेक व्यक्तियों ने बड़े-बड़े महत्वपूर्ण कार्य कर दिखाए हैं। संसार में अनेक विद्वान ऐसे हुए हैं जिन्होंने इसी प्रकार प्रतिदिन दस-दस, बीस-बीस मिनट का समय बचाकर नई भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया है, महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिख डाले हैं, या कोई कार्य कर दिखलाया है। अगर हम यह कहें कि संसार में जितने महापुरुष हुये हैं उनकी सफलता की कुँजी वास्तव में उनके समय के सदुपयोग में ही है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं। संसार के अनेक प्रसिद्ध व्यक्ति ऐसे भी हुए हैं जिनमें कोई विशेष प्रतिभा अथवा असाधारण जन्मजात गुण नहीं था तो भी वे अविश्रान्त परिश्रम तथा समय के प्रत्येक क्षण का सदुपयोग करके ही इतिहास में अपना नाम स्थायी कर गये हैं।
जीवन में सिद्धि प्राप्त करनी हो तो एक क्षण भी व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिए। समय का सदुपयोग करना हमारे हाथ में है। बाजार में जाकर हम रुपये देकर कोई चीज खरीदते हैं। इस तरह हम उन रुपयों को गँवाते नहीं हैं, बल्कि वस्तु के रूप में वे हमारे पास ही बने रहते हैं। समय की भी यही बात है। समय का का सदुपयोग करके हमने यदि शक्ति, सामर्थ्य और सद्गुणों की प्राप्ति की तो हमारा वह समय व्यर्थ नहीं गया, लेकिन शक्ति, सामर्थ्य और सद्गुणों के रूप में हमारे ही पास है। जिन्होंने इस प्रकार समय का सदुपयोग किया है, उन्हें अपने जीवन में शान्ति, प्रसन्नता, धन्यता और कुतार्थता का अनुभव होता है। यही यथार्थ जीवन है। ऐसा जीवन बिताने वाले को मृत्यु का भय भी नहीं लगेगा। उस अवसर पर भी वह शान्त और स्थिर रह सकेगा। जिसने मानव-जीवन का महत्व समझकर संयम का पालन करके मानवता प्राप्त की है, वह कभी चिन्ताग्रस्त या बेचैन नहीं रहता।
मनुष्य को धन, विद्या, सत्ता, सामर्थ्य आदि का अनेक प्रकार का मद चढ़ता है। लेकिन उच्च तथा उदात्त जीवन की आकाँक्षा रखने वाला मनुष्य भिन्न प्रकार के आत्म गौरव का अनुभव करता है। वह कठिन प्रसंगों में, मृत्यु के समय भी शान्त रह सकता है। ऐसे प्रसंगों में उसका तेज बढ़ता है। यदि वह ऐसे अवसर पर निर्बल बनता है तो उसके आत्म-विश्वास में कमी समझी जायेगी। शूर का तेज रण में जाग्रत होता है, पक्षी को आकाश का भय नहीं होता, सिंह को जंगल का भय नहीं लगता। मछली पानी से नहीं डरती। इसी तरह सज्जन को संकट का भय नहीं होता। उसमें भी वह शांति का अनुभव करता है। मृत्यु के समय भी शान्ति और प्रसन्नता का भाव रह सके तभी जीवन सार्थक हुआ ऐसा कह सकते हैं।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति जनवरी 1965 पृष्ठ 18
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