हमारी अपनी जिम्मेदारी

दुनियाँ को चलाने और सुधारने की हमारी जिम्मेदारी नहीं है। पर अपने लिए जो कर्तव्य सामने आते हैं उन्हें पूरा करने में सच्चे मन से लगना और उन्हें बढ़िया ढंग से करके दिखाना निश्चय ही हमारी जिम्मेदारी है। अपने आपको व्यवस्थित करके हम दुनियाँ के संचालन और सुधार में सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण योग दे सकते है।
अधूरे और भद्दे काम करना अपने आप को कलंकित करना है। परमात्मा ने हमारी रचना अपूर्ण नहीं सर्वांग और उच्चकोटि की सामग्री से की है। उसने हमें सजाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। फिर हमीं अपने गौरव को मलीन क्यों न होने दें। हमें जैसा अच्छा बनाया गया है उसी के अनुरूप हमारे काम भी गौरवपूर्ण होने चाहिए।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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