आत्म विश्वास का शास्त्र
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जीवन संग्राम का सबसे बड़ा शस्त्र आत्मविश्वास है। जिसे अपने ऊपर-अपने संकल्प बल और पुरुषार्थ के ऊपर भरोसा है वही सफलता के लिये अन्य साधनों को जुटा सकता है। आत्म संयम भी उसी के लिये सम्भव है जिसे अपने ऊपर भरोसा है। जिसने अपने गौरव को भुला दिया, जिसे अपने में कोई शक्ति दिखाई नहीं पड़ती जिसे अपने में केवल दीनता, अयोग्यता, एवं दुर्बलता ही दिखाई पड़ती है। ह किस बलबूते पर आगे बढ़ सकेगा? और कैसे इस संघर्ष भरी दुनियाँ में अपना अस्तित्व यम रख सकेगा। बहती धार में जिसके पैर उखड़ गया, उसे पानी बहा ले जाता है पर जो अपना हर कदम मजबूती से रखता है वह धीरे-धीरे तेज धार को भी पार कर लेता है।
हमें परमात्मा ने उतनी ही शक्ति दी है जितना कि किसी अन्य मनुष्य को। जिस मंजिल को दूसरे पार कर चुके हैं उसे हम क्यों पार नहीं कर सकते? फौज के प्रत्येक सैनिक को एक सी बन्दूक दी जाती है। निशाना लगाना हर सिपाही की अपनी सूझबूझ और योग्यता का काम है। सभी व्यक्ति अनन्त सामर्थ्य लेकर इस भूतल पर अवतीर्ण हुए हैं। प्रश्न केवल पहचानने, भरोसा करने और उसके सदुपयोग का है। जिन्हें अपने ऊपर भरोसा है वे अपनी उपलब्ध सामर्थ्य का सदुपयोग करके कठिन से कठिन मंजिल को पार कर सकते हैं।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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