हमारी वसीयत और विरासत (भाग 19 ) मार्गदर्शक द्वारा भावी जीवनक्रम संबंधी निर्देश

मार्गदर्शक द्वारा भावी जीवनक्रम संबंधी निर्देश:
“पूर्वकाल में ऋषिगण गोमुख से ऋषिकेश तक अपनी-अपनी रुचि और सुविधाओं के अनुसार रहते थे। वह क्षेत्र अब पर्यटकों, तीर्थयात्रियों और व्यवसायियों से भर गया है। इसलिए उसे उन्हीं लोगों के लिए छोड़ दिया गया है। अनेक देव मंदिर बन गए हैं, ताकि यात्रियों का कौतूहल, पुरातनकाल का इतिहास और निवासियों का निर्वाह चलता रहे।’’
हमें बताया गया कि थियोसोफी की संस्थापिका ‘ब्लैवेट्स्की’ सिद्धपुरुष थीं। ऐसी मान्यता है कि वे स्थूलशरीर में रहते हुए भी सूक्ष्मशरीरधारियों के संपर्क में थीं। उनने अपनी पुस्तकों में लिखा है कि दुर्गम हिमालय में ‘अदृश्य सिद्धपुरुषों की पार्लियामेंट’ है। इसी प्रकार उस क्षेत्र के दिव्य निवासियों को ‘अदृश्य सहायक’ भी कहा गया है। गुरुदेव ने कहा कि, ‘‘वह सब सत्य है। तुम अपने दिव्य चक्षुओं से यह सब उसी हिमालय-क्षेत्र में देखोगे, जहाँ हमारा निवास है।’’ तिब्बत-क्षेत्र उन दिनों हिमालय की परिधि में आता था। अब वह परिधि घट गई है। तो भी ब्लैवेट्स्की का कथन सत्य है। स्थूलशरीरधारी उसे देख नहीं पाते, पर हमें अपने मार्गदर्शक गुरुदेव की सहायता से उसे देख सकने का आश्वासन मिल गया।
गुरुदेव ने कहा— ‘‘हमारे बुलावे की प्रतीक्षा करते रहना। जब परीक्षा की स्थिति के लिए उपयुक्तता एवं आवश्यकता समझी जाएगी, तभी बुलाया जाएगा। अपनी ओर से उसकी इच्छा या प्रतीक्षा मत करना। अपनी ओर से जिज्ञासावश उधर प्रयाण भी मत करना। वह सब निरर्थक रहेगा। तुम्हारे समर्पण के उपरांत वह जिम्मेदारी हमारी हो जाती है।’’ इतना कहकर वे अंतर्ध्यान हो गए।
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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