श्रद्धा ही साधना की सर्वश्रेष्ठ विधि-आदरणीय डॉ चिन्मय पंडया
ईश्वर का चिंतन गुरु-अनुग्रह से सतत होने लगता है-आदरणीय डॉ चिन्मय पंडया
|| घाटोल, बांसवाड़ा, राजस्थान || अपने राजस्थान प्रवास में दिनांक 6 अप्रैल 2024 को देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति आदरणीय चिन्मय पंड्या जी मां त्रिपुरा सुंदरी के आशीर्वाद से आच्छादित बांसवाड़ा के घाटोल में आयोजित १०८ कुंडीय गायत्री महायज्ञ में पहुंचे और उन्होंने गायत्री परिजनों को संबोधित किया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि श्रद्धा ही अपने आप में साधना की सर्वश्रेष्ठ विधि है तथा ईश्वर का चिंतन गुरु-अनुग्रह से सतत होने लगता है। हमारा व्यक्तित्व ऐसा बनता है जैसा प्रहलाद का भगवान को समर्पण करके निर्भय-निर्विकार हो जाना, जो जितनी ऊंची चीज है उससे उतना ही बड़ा कुछ मांगा जाए। गुरुदेव के साथ जुड़े हैं तो सच्चे अर्थों में उनका कार्य करने के लिए हमें तत्पर होना है।
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