गुरु का अवलंबन

बिजलीघर से तार जोड़ लेने पर नगर के अनेकों पंखे , बल्ब, हीटर, कूलर आदि चलने लगते हैं । भरी टंकी के साथ जुड़ा नल बराबर पानी देता रहता है । हिमालय के साथ जुड़ी हुई नदियाँ सदा प्रवाहित रहती हैं , पति की कमाई पर पत्नी , बाप की कमाई पर औलाद मौज मनाती रहती है । यही बात साधना क्षेत्र में भी है ।
एकाकी साधक अपने बलबूते कुछ तो कर ही सकता है और देर- सबेर में लम्बी यात्रा भी पूरी कर लेता है। इसलिए एकाकी प्रयास को भी झुठलाया तो नहीं जा सकता पर सुविधा इसी में है कि किसी शक्ति भण्डार के साथ जुड़कर अपनी प्रगति सम्भावना को सुनिश्चित किया जाय। गुरु वरण इसी को कहते हैं ।
यह एक अनुबन्ध है जिसमें दोनों पक्ष अपनी -अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करते और परस्पर पूरक बनकर दोनों पक्ष प्रसन्नता एवं सफलता उपलब्ध करते हैं । अंधे -पंगे के सयोंग से नदी पार कर लेने वाली बात इसी प्रकार बनती है ।
नारद के साथ जुड़कर पार्वती, सावित्री, वाल्मीकि, ध्रुव , प्रहलाद, आदि ने अपने साधारण स्तर को असाधारण बनाया था । बुद्ध के साथ जुड़कर अंगुलिमाल, आम्रपाली, अशोक जैसों ने अपने स्तर का कायाकल्प कर लिया था। चाणक्य और चन्द्रगुप्त, समर्थ और शिवाजी, परमहंस और विवेकानंद, गाँधी और विनोबा आदि के अगणित युग्म ऐसे हैं जिनमें शक्ति संपन्नों के साथ जुड़कर असमर्थों ने भी उच्चस्तरीय सफलता पायी। गुरु शिष्य का गठबंधन इसीलिए आध्यात्मिक प्रगति के लिए आवश्यक माना गया है ।
-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
जीवन देवता की साधना- आराधना वांग्मय 2/1.45
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