युग परिवर्तन का आधार भावनात्मक नव निर्माण (भाग ४)
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अगले दिनों ज्ञानतन्त्र ही धर्मतंत्र होगा। चरित्र निर्माण और लोक मंगल की गतिविधियाँ धार्मिक कर्मकाण्डों का स्थान ग्रहण करेंगी। तब लोग प्रतिमा पूजक देव मन्दिर बनाने को महत्त्व देंगे। तीर्थ- यात्राओं और ब्रह्मभोजों में लगने वाला धन लोक शिक्षण की भाव भरी सत्प्रवृत्तियों के लिए अर्पित किया जायेगा। कथा पुराणों की कहानियाँ तब उतनी आवश्यक न मानी जायेंगी जितनी जीवन समस्याओं को सुलझाने वाली प्रेरणाप्रद अभिव्यंजनाएँ। धर्म अपने असली स्वरूप में निखर कर आयेगा और उसके ऊपर चढ़ी हुई सड़ी गली केंचुली उतर कर कूड़े करकट के ढेर में जा गिरेगी।
ज्ञान तन्त्र वाणी और लेखनी तक ही सीमित न रहेगा, वरन् उसे प्रचारात्मक एवं संघर्षात्मक कार्यक्रमों के साथ बौद्धिक, नैतिक और सामाजिक क्रान्ति के लिए प्रयुक्त किया जायेगा। साहित्य, संगीत, कला के विभिन्न पक्ष विविध प्रकार से लोक शिक्षण का उच्चस्तरीय प्रयोजन पूरा करेंगे। जिनके पास प्रतिभा है, जिनके पास सम्पदा है वे उससे स्वयं लाभान्वित होने के स्थान पर समस्त समाज को समुन्नत करने के लिए समर्पित करेंगे।
(१) एकता (२) समता (३) ममता और (४) शुचिता। नव निर्माण के चार भावनात्मक आधार होंगे।
एक विश्व, एक राष्ट्र, एक भाषा, एक धर्म, एक आचार, एक संस्कृति के आधार पर समस्त मानव प्राणी एकता के रूप में बँधेंगे। विश्व बन्धुत्व की भावना उभरेगी और वसुधैव कुटुम्बकम् का आदर्श सामने रहेगा। तब देश, धर्म, भाषा, वर्ण आदि के नाम पर मनुष्य मनुष्य के बीच दीवारें खड़ी न की जा सकेंगी। अपने वर्ग के लिए नहीं, समस्त विश्व के हित साधन की दृष्टि से ही समस्याओं पर विचार किया जायेगा।
.... क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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