उदात्त अनुदानों के लिये युग चेतना का आह्वान (भाग ३)
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नव सृजन के लिए साधनों की भी आवश्यकता रहेगी ही। भौतिक प्रयोजनों में तो अर्थ साधन ही प्रधान होते है किन्तु प्रवाह बदलने जैसे अध्यात्म अभियान के लिए भी अन्ततः साधन तो चाहिए ही। यों श्रम, समय मनोयोग, भाव सम्वेदन जैसे तथ्यों की ही युग परिवर्तन में प्रमुखता मानी जायेगी। फिर भी अर्थ साधनों के बिना उन्हें भी कार्य रूप में परिणित कर सकना सम्भव नहीं हो सकेगा। वस्तुएँ तो इस निमित्त भी चाहिए ही। सामान्य निर्माण कार्यों के लिए साधन जुटाने पड़ते हैं फिर इस महानतम कार्य के लिए साधनों के बिना ही काम चलता रहे ऐसा सम्भव नहीं।
यह आवश्यक भी जागृत आत्माओं को ही पूरी करनी होगी। वैयक्तिक कार्यों में कटौती करके ही युग धर्म के लिए समयदान की व्यवस्था बन सकती है। इसी प्रकार निजी खर्चों में कटौती करके ही युग की पुकार के निमित्त अर्थ साधन प्रस्तुत कर सकना सम्भव हो सकता है। उत्तराधिकारियों के लिए जो अनावश्यक धन सम्पदा छोड़ी जाती है, उस मोह ग्रस्तता पर अंकुश लगाने का तो हर दृष्टि से औचित्य है। निजी परिवार को ही सब कुछ मानते रहना और विश्व परिवार के लिए कुछ भी न करना, ऐसा व्यामोह है जो युग शिल्पियों के लिए अशोभनीय ही ठहरता है।
युग निर्माण परिवार के हर सदस्य को आरम्भ से ही एक घण्टा समय और दस पैसा नित्य ज्ञान यज्ञ के लिए देते रहने की प्रेरणा दी गई है। वह दिशा निर्धारण युग शिल्पियों के लिए आरम्भिक एवं अनिवार्य कर्तव्य बोध की तरह था। अब उसमें उदात्त अभिवृद्धि का समय आगया। समय और धन दोनों ही अनुदानों का स्तर तथा परिमाण बढ़ना चाहिए। जिसे अपने अन्तरंग में जितनी युग चेतन, हलचल मचाती दिखाई पड़े उन्हें उतने से ही भाव-भरे अनुदान प्रस्तुत करने की तैयारी करनी चाहिए।
.... समाप्त
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति अगस्त १९७९, पृष्ठ ५७
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