बहुमूल्य जीवन

मित्रो ! अभागों की दुनियाँ अलग है और सौभाग्यवानों की अलग। अभागे जिस-तिस प्रकार लालच को पोषते, अविवेकी प्रजनन में निरत रहकर कमर तोडऩे वाला बोझ लादते, व्यामोह में तथाकथित अपनों को कुसंस्कारी बनाते, अपव्ययी, असंयमी रहकर दुव्र्यसनों के शिकार बनते, अहंता के परिपोषण में समय बिताते हैं। रोते-कलपते, खीजते-खिजाते, डरते-डराते, छेड़ते-पीटते लोगों के ठट्ठ के ठट्ठ हर गली चौराहों पर खड़े देखे जा सकते हैं। इन्हीं दुर्दशाग्रस्तों की भीड़ में जा घुसना समझदारी कहाँ है?
भगवान किसी को उच्च शिक्षा से वंचित भले ही रखे पर इतनी समझ तो दे कि हित-अनहित में अंतर करना आए। भले ही शूर-वीर योद्धा बनने का श्रेय किसी को न मिले पर इतनी सूझ-बूझ तो रहे कि मनुष्य जीवन बहुमूल्य है और उसे सार्थक बनाने के लिए भीड़ के साथ न चलने और अपना रास्ता आप चुनने जितना विवेक तो चाहिए ही।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
युग धर्म पृष्ठ नं-८
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