विचार एक मजबूत ताकत
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शुभ सात्विक और आशापूर्ण विचार एक वस्तु है। यह एक ऐसा किला है, जिसमें मनुष्य हर प्रकार के आवेगों और आघातों से सुरक्षित रह सकता है। लेकिन मनुष्य को उत्तम विचार ही रखने और अपनी आदत में डालने अभ्यास निरंतर करना चाहिए। विचार फालतू बात नहीं है। यह एक मजबूत ताकत है। इसका स्पष्टï स्वरूप है। उसमें जीवन है। यह स्वयं ही हमारा मानसिक जीवन है। यह सत्य है। विचार ही मनुष्य का आदिरूप है। पानी में लकड़ी, पत्थर, गोली आदि फेंकने से जैसा आघात होता है, जैसा रूप बनता है, जो प्रभाव होता है, वैसा ही तथा उससे भी अधिक तेज आघात विचारों को फेंकने से होता है। मनुष्य के सृजनात्मक विचारों में नव-रचना करने की अदï्भूत शक्ति है। मनुष्य के जिस रंग, रूप, गुण, कर्म, संस्कार के विचार होते हैं, उसी दिशा में उसकी तीव्र उन्नति होती जाती है। जिसका मन सदा उत्साहपूर्ण रहता है और मन में बड़ा अधिकारी, लेखक, वक्ता, नेता आदि होने की इच्छा होती है, जिसका मन सदैव शून्य में, अपने मानसिक राज्य में बड़ी-बड़ी वस्तुओं की रचना किया करता है, वास्तव में एक दिन वह बड़ा हो जाता है। यही अनुभव की हुई बात है। जितने लोगों ने उन्नति की है या संसार में अमर नाम कमाया है, उन सभी ने विचारों की ही मुख्यता प्रत्येक कार्य में बताई है।
संकल्प में पूरी सच्चाई होनी चाहिए। रचना करने की शक्ति उन्हीं विचारों में होती है, जिनमें सच्चा विश्वास, दृढ़ श्रद्धा होती है। इस विश्व में सब कुछ आपको अपने आत्म विश्वास के अनुसार ही प्राप्त होगा। हमारे मिलने-जुलने से भी हमारे विचारों का बड़ा कार्य होता है, जो लोग प्रसन्नचित्त स्वभाव के होते हैं वे मन में सदा आनन्द के रस में ही डूबे रहते हैं। विपत्ति या कठिनाई आने पर भी वे शुभ विचारों में लीन रहते हैं। उनसे मिलने वाले दुखी और निराश व्यक्ति भी प्रसन्न हो जाता है। प्रसन्न विचारों वाले व्यक्ति जहां जाते हैं, सर्वत्र आनन्द ही आनन्द की वर्षा करते हैं। इसके विपरीत ऐसे लोग भी हैं, जिनका चेहरे में क्रोध, चिंता, उत्तेजना, जलन से रहता है, उनका चेहरा बदसूरत दीखता है। उनके इर्द-गिर्द उदासी का वातावरण छाया रहता है।
उनके पास कोई जाना नहीं चाहता और न ही बात करना पसंद करता है। संसार में ऐसे ही मनुष्यों की आवश्यकता है, जिनका हृदय पवित्र प्रेम से पूर्ण हों और आनन्द के स्रोत हों। जिससे संसार में प्रेम, आनन्द और सुख का साम्राज्य हो। परमात्मा का भण्डार मनुष्य अंदर होते हुए भी वह प्रेम, आनन्द और सुख की भीख बाहर दूसरों से मांगता फिरता है। ईश्वर के राज्य में सब वस्तुएं उसी की हैं। फिर सीधे ईश्वर से ही क्यों नहीं मांगते? उस पर विश्वास क्यों नहीं करते? कारण यह है कि बचपन से ही तुम्हें इस बात की शिक्षा नहीं दी गई और संसार की देखा-देखी मनुष्य भी ऐसा ही करने लगे। सुख बाहर नहीं है। आपके मन की शांत और संतुलित स्थिति में है। इसी को शांत करने से, आनन्दमय मन:स्थिति उत्पन्न होती है। केवल ईश्वर पर पूर्ण विश्वास और उच्च भविष्य में विश्वास की आवश्यकता है।
एक धर्म में वर्णन है कि यदि तू मेरे नाम पर मांगे तो मैं अवश्य दूंगा। आगे कहा गया है कि यदि तू मांगता है तो विश्वास कर तू पाएगा। फिर तू अवश्य पा जाएगा। दुख यह है कि हम इन बातों को पढ़ कर भी अपना सुख बाहर ही ढंूढ़ते रहते हैं। हमें चाहिए कि हम अपने अंदर छिपे हुए आनन्द के भण्डार पर विश्वास करें।
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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