दूसरों के दुख को समझो

तुम्हारे पाँव के नीचे दबी चींटी का वही हाल होता है, जो यदि तुम हाथी के नीचे दब जाओ तो तुम्हारा हो। दूसरे के दुख को अपने दुख से तुलना किये बिना, हम उसकी प्रकृत अवस्था का ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते।”*
*किसी बादशाह को भयंकर रोग था। कई यूनानी हकीमों ने मिल कर यह राय ठहराई कि एक खास तरह के आदमी के खून के सिवाय इस बीमारी का और इलाज नहीं है। बादशाह ने इस तरह के आदमी की तलाश करने का हुक्म दिया। लोगों ने एक किसान के लड़के में वह सब गुण मौजूद पाये। बादशाह ने उस लड़के के माँ-बाप को बुलवाया और उन्हें बहुत सा इनाम देकर राजी कर लिया। काजी ने यह फैसला किया कि बादशाह को बीमारी से आराम करने के लिए एक रिआया का खून बहाना न्याय संगत है।*
जब जल्लाद ने उसे मारने की तैयारी की, तब वह बालक आकाश की ओर देख कर हँसा। बादशाह ने उस बालक से पूछा, “इस अवस्था में ऐसी क्या बात हुई, जिससे तुझे खुशी हुई? “उसने जवाब दिया “बालक माँ-बाप के प्रेम पर निर्भर रहते हैं, मुकदमों का समावंश काजी करता है। मेरे माता-पिता की मति थोथे साँसारिक लोभ से भ्रष्ट हो गई है कि मेरा खून बहाने पर राजी हो गये हैं। काजी ने मुझे प्राण दण्ड की सजा दे दी है और बादशाह, अपनी स्वास्थ्य-रक्षा के लिये, मेरी मृत्यु पर राजी हो गये हैं। ऐसी दशा में, अब ईश्वर के सिवाय किसकी शरण जाऊं?*
*“बादशाह इस बात को सुनकर बहुत ही दुखी हुये और आंखों में आंसू भर कर बोला, “निर्दोष मनुष्य का खून बहाने की अपेक्षा मेरा ही मर जाना अच्छा है।” बादशाह ने उस बालक के सिर और आंखें चूम कर गले से लगाया और उसको बहुत सा इनाम देकर छोड़ दिया।*
*लोग कहते हैं, कि बादशाह उसी सप्ताह रोग मुक्त हो गया।
“अगर तुम्हें अपने पैर के नीचे दबी हुई चींटी की अवस्था का ज्ञान हो, तो तुमको समझना चाहिए कि चींटी की वैसी हालत है जैसी हाथी के पैर के नीचे दबने पर तुम्हारी हो।”*
*तात्पर्य यह है कि हमें सब जीवों को अपने समान समझना चाहिये। दूसरों को कष्ट न पहुँचाते समय इस बात का ख्याल रखना चाहिये, कि यदि हमें कोई ऐसा ही कष्ट दे तो हमें कैसा दुख होगा।*
पं श्रीराम शर्मा आचार्य*
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