चन्दन का कोयला बनाया

एक राजा वन भ्रमण को गया। रास्ता भूल जाने पर भूख प्यास से पीड़ित वह एक वनवासी की झोपिड़ी पर पहुँचा। समय पर मिले रूखे- सूखे आतिथ्य ने उसे तृप्त कर दिया। चलते समय उसने उस वनवासी से कहा- ' हम इस राज्य के शासक हैं। तुम्हारी सज्जनता से प्रभावित होकर चन्दन का एक बाग तुम्हें देते है। तुम्हारा शेष जीवन आनन्द से बीतेगा। ''
चन्दन का वन तो उसे मिल गया पर चन्दन का क्या महत्व है और उससे किस प्रकार लाभ उठाया जा सकता है- इसकी जानकारी न होने से वनवासी चन्दन के वृक्ष काटकर उनका कोयला बनाकर नगर में बेचने लगा। इस प्रकार किसी तरह उसके गुजारे की व्यवस्था बन गयी।
धीरे- धीरे सभी वृक्ष समाप्त हो गये। एक अन्तिम पेड़ बचा। वर्षा होने के कारण कोयला न बन सका तो उसने लकड़ी बेचने का निश्चय किया। लकड़ी का गट्ठा लेकर जब बाजार में पहुँचा तो सुगन्ध से प्रभावित लोगों ने कहा उसका भारी मूल्य चुकाया। आश्चर्यचकित वनवासी ने इसका कारण पूछा तो लोगों ने कहा- ' यह चन्दन काष्ठ है, बहुत मूल्यवान है। यदि तुम्हारे पास ऐसी ही और लकड़ी हो तो उसका प्रचुर मूल्य प्राप्त कर सकते हो। ''
वनवासी अपनी नासमझी पर पश्चात्ताप करने लगा कि उसने इतना बड़ा बहुमूल्य चन्दन वन कोयले बनाकर कौड़ी मोल बेच दिया। पछताते हुए नासमझ को सान्त्वना देते हुए एक विचारशील व्यक्ति ने कहा- 'मित्र! पछताओ मत, यह सारी दुनियाँ तुम्हारी ही तरह नासमझ है। जीवन का एक- एक क्षण बहुमूल्य है पर लोग उसे वासना और तृष्णाओं के बदले कौड़ी मोल में गँवाते है। तुम्हारे पास जो एक वृक्ष बचा है, उसी का सदुपयोग कर लो तो कम नहीं। '' बहुत गँवाकर भी अन्त में यदि कोई मनुष्य सम्भल जाता है तो वह भी बुद्धिमान ही माना जाता है।
अनुपात उनका ही अधिक होता है जो सब कुछ समाप्त होने पर होश में आते हैं। मनुष्य शरीर मिलने के बाद बिरले ही ऐसे होते हैं जो उसकी अभ्यर्थना- स्तवन देवता की तरह करते हैं। लेकिन जो करते हैं वे उस अक्षय आनन्द को भी प्राप्त करते हैं जो मानव की अमोल निधि है।
प्रज्ञा पुराण भाग १
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