चार बार भागवत सुनी

वीतराग शुकदेव जी के मुँह से राजा परीक्षित ने भागवत पुराण की कथा सुनकर मुक्ति प्राप्त की थी। यह बात एक धनवान व्यक्ति ने सुनी तो उसके मन में भागवत पर बड़ी श्रद्धा हुई और वह भी मुक्ति के लिए किसी ब्राह्मण से कथा सुनने के लिए आतुर हो उठा।
खोज की तो भागवत के एक बहुत बड़े विख्यात पण्डितजी मिले। कथा- आयोजन का प्रस्ताव किया तो पण्डितजी बोले- यह कलियुग है। इसमें धर्मकृत्यों का पुण्य चार गुना कम हो जाता है, इसलिए चार बार कथा सुननी पड़ेगी। चार बार कथा- आयोजन की सलाह देने का कारण था पर्याप्त दान- दक्षिणा। पण्डित जी को फीस देकर धनी व्यक्ति ने चार- भागवत सप्ताह सुने परन्तु लाभ कुछ नहीं हुआ। धनी उच्चकोटि के सन्त से मिला। भागवत सुनने का लाभ परीक्षित कैसे ले सके और मुझे क्यों नहीं मिला? उन्होंने इसका कारण बताया कि परीक्षित मृत्यु को निश्चित जानकर, संसार से पूर्णतया विरक्त होकर कथा सुन रहे थे और मुनि शुकदेव सर्वथा निर्लोभ रहकर कथा सुना रहे थे।
जिस किसी को भी ज्ञान, उपदेश अथवा सत्परामर्श के रूप में सुनने को मिला है, वही श्रेय पर चल सका है।
प्रज्ञा पुराण भाग १
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