साहस अपनाया- कृतकृत्य बने

भगतसिंह और सुभाष जैसा यश मिलने की सम्भावना हो तो उस मार्ग पर चलने के लिए हजारों आतुर देखे जाते हैं। समझाया जाय तो कितने ही बिना उतराई लिए पार उतारने की प्रक्रिया पूरी कर सकते हैं। पटेल बनने के लिए कोई भी अपनी वकालत छोड़ सकता है। पर दुर्भाग्य इतना ही रहता है कि समय को पहचानना और उपयुक्त अवसर पर साहस जुटाना सभी लोगों से बन ही नहीं पड़ता। वे जागरूक ही है जो महत्वपूर्ण निर्णय करते, साहसिकता अपनाते और अविस्मरणीय महामानवों की पदवी प्राप्त करते हैं। ऐसे सौभाग्यों में श्रेयार्थी का विवेक ही प्रमुख होता है।
महान् बनने के लिए जहाँ आत्म- साधना और आत्म- विकास की तपश्चर्या को आवश्यक बताया गया है वहाँ इस ओर भी संकेत किया गया है कि उसकी प्रखरता से सम्पर्क साधने और लाभान्वित होने का अवसर भी न चूका जाय। यों ऐसे अवसर कभी- कभी ही आते और किसी भाग्यशाली को ही मिलते है। किन्तु कदाचित् वैसा सुयोग बैठ जाय तो ऐसा अप्रत्याशित लाभ मिलता है जिसे लाटरी खुलने और देखते- देखते मालदार बन- जाने के समतुल्य कहा जा सके।
प्रज्ञा पुराण भाग १
Recent Post

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 63): प्रवास का दूसरा चरण एवं कार्यक्षेत्र का निर्धारण
जो...
.jpg)
हमारी वसीयत और विरासत (भाग 62) प्रवास का दूसरा चरण एवं कार्यक्षेत्र का निर्धारण
&l...

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 61)— प्रवास का दूसरा चरण एवं कार्यक्षेत्र का निर्धारण
चर...

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 60)— प्रवास का दूसरा चरण एवं कार्यक्षेत्र का निर्धारण
गु...
.jpg)
हमारी वसीयत और विरासत (भाग 59)— प्रवास का दूसरा चरण एवं कार्यक्षेत्र का निर्धारण
गु...
_(1).jpg)
हमारी वसीयत और विरासत (भाग 58)— प्रवास का दूसरा चरण एवं कार्यक्षेत्र का निर्धारण
उत...

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 57)— प्रवास का दूसरा चरण एवं कार्यक्षेत्र का निर्धारण
सत...
.jpeg)
हमारी वसीयत और विरासत (भाग 56)— प्रवास का दूसरा चरण एवं कार्यक्षेत्र का निर्धारण
पि...
.jpg)
हमारी वसीयत और विरासत (भाग 55)— प्रवास का दूसरा चरण एवं कार्यक्षेत्र का निर्धारण
प्...
.jpg)