हमारी वसीयत और विरासत (भाग 8)— जीवन के सौभाग्य का सूर्योदय

जीवन के सौभाग्य का सूर्योदय:—
‘‘हम सूक्ष्मदृष्टि से ऐसे सत्पात्र की तलाश करते रहे, जिसे सामयिक लोक-कल्याण का निमित्तकारण बनाने के लिए प्रत्यक्ष कारण बनावें। हमारा यह सूक्ष्मशरीर है। सूक्ष्मशरीर से स्थूल कार्य नहीं बन पड़ते। इसके लिए किसी स्थूलशरीरधारी को ही माध्यम बनाना और शस्त्र की तरह प्रयुक्त करना पड़ता है। यह विषम समय है। इसमें मनुष्य का अहित होने की अधिक संभावनाएँ हैं। उन्हीं का समाधान करने के निमित्त तुम्हें माध्यम बनाना है। जो कमी है, उसे दूर करना है। अपना मार्गदर्शन और सहयोग देना है। इसी निमित्त तुम्हारे पास आना हुआ है। अब तक तुम अपने सामान्य जीवन से ही परिचित थे। अपने को साधारण व्यक्ति ही देखते थे। असमंजस का एक कारण यह भी है। तुम्हारी पात्रता का वर्णन करें, तो भी कदाचित् तुम्हारा संदेह-निवारण न हो। कोई किसी बात पर अनायास ही विश्वास करे, ऐसा समय भी कहाँ है। इसीलिए तुम्हें पिछले तीन जन्मों की जानकारी दी गई।’’
तीनों ही जन्मों का विस्तृत विवरण जन्म से लेकर मृत्युपर्यंत तक का दर्शाने के बाद उन्होंने बताया कि किस प्रकार वे इन सभी में हमारे साथ रहे और सहायक बने।
वे बोले— ‘‘यह तुम्हारा चौथा जन्म है। तुम्हारे इस जन्म में भी सहायक रहेंगे और इस शरीर से वह करावेंगे, जो समय की दृष्टि से आवश्यक है। सूक्ष्मशरीरधारी प्रत्यक्ष जनसंपर्क नहीं कर सकते और न घटनाक्रम स्थूलशरीरधारियों द्वारा ही संपन्न होते हैं, इसलिए योगियों को उन्हीं का सहारा लेना पड़ता है।
तुम्हारा विवाह हो गया, सो ठीक हुआ। यह समय ऐसा है, जिसमें एकाकी रहने से लाभ कम और जोखिम अधिक है। प्राचीनकाल में ब्रह्मा, विष्णु, महेश, सूर्य, गणेश, इंद्र आदि सभी सपत्नीक थे। सातों ऋषियों की पत्नियाँ थीं; कारण कि गुरुकुल आरण्यक स्तर के आश्रम चलाने में माता की भी आवश्यकता पड़ती है और पिता की भी। भोजन, निवास, वस्त्र, दुलार आदि के लिए भी माता चाहिए और अनुशासन, अध्यापन, अनुदान पिता की ओर से ही मिलता है। गुरु ही पिता है और गुरु की पत्नी ही माता। ऋषिपरंपरा के निर्वाह के लिए यह उचित भी है, आवश्यक भी। आजकल भजन के नाम पर जिस प्रकार आलसी लोग संत का बाना पहनते और भ्रम-जंजाल फैलाते हैं, तुम्हारे विवाहित होने से मैं प्रसन्न हूँ। इसमें बीच में व्यवधान तो आ सकता है, पर पुनः तुम्हें पूर्वजन्म में तुम्हारे साथ रही सहयोगिनी पत्नी के रूप में मिलेगी, जो आजीवन तुम्हारे साथ रहकर महत्त्वपूर्ण भूमिका निबाहेगी। पिछले दो जन्मों में तुम्हें सपत्नीक रहना पड़ा है। यह न सोचना कि इससे कार्य में बाधा पड़ेगी। वस्तुतः, इससे आज कीपरिस्थितियों में सुविधा ही रहेगी एवं युग परिवर्तन के प्रयोजन में भी सहायता मिलेगी।’’
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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