हमारी वसीयत और विरासत (भाग 29)— गुरुदेव का प्रथम बुलावा— पग-पग पर परीक्षा
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गुरुदेव का प्रथम बुलावा— पग-पग पर परीक्षा:—
गुरुदेव द्वारा हिमालय बुलावे की बात मत्स्यावतार जैसी बढ़ती चली गई। पुराण की कथा है कि ब्रह्मा जी के कमंडलु में कहीं से एक मछली का बच्चा आ गया। हथेली में आचमन के लिए कमंडलु लिया, तो वह देखते-देखते हथेली भर लंबी हो गई। ब्रह्मा जी ने उसे घड़े में डाल दिया। क्षण भर में वह उससे भी दूनी हो गई, तो ब्रह्माजी ने उसे पास के तालाब में डाल दिया। उसमें भी वह समाई नहीं, तब उसे समुद्र तक पहुँचाया गया। देखते-देखते उसने पूरे समुद्र को आच्छादित कर लिया, तब ब्रह्मा जी को बोध हुआ। उस छोटी-सी मछली में अवतार होने की बात जानी; स्तुति की और आदेश माँगा। बात पूरी होने पर मत्स्यावतार अंतर्ध्यान हो गए और जिस कार्य के लिए वे प्रकट हुए थे, वह कार्य सुचारु रूप से संपन्न हो गया।
हमारे साथ भी घटनाक्रम ठीक इसी प्रकार चले हैं। आध्यात्मिक जीवन वहाँ से आरंभ हुआ था, जहाँ कि गुरुदेव ने परोक्ष रूप से महामना जी से गुरुदीक्षा दिलवाई थी; यज्ञोपवीत पहनाया था और गायत्री मंत्र की नियमित उपासना करने का विधि-विधान बताया था। छोटी उम्र थी, पर उसे पत्थर की लकीर की तरह माना और विधिवत् निबाहा। कोई दिन ऐसा नहीं बीता, जिसमें नागा हुई हो। साधना नहीं, तो भोजन नहीं। इस सिद्धांत को अपनाया। वह आज तक ठीक चला है और विश्वास है कि जीवन के अंतिम दिन तक यह निश्चित रूप से निभेगा।
इसके बाद गुरुदेव का प्रकाश रूप से साक्षात्कार हुआ। उनने आत्मा को ब्राह्मण बनाने के निमित्त 24 वर्ष की गायत्री पुरश्चरण-साधना बताई। वह भी ठीक समय पर पूरी हुई। इस बीच में बैटरी चार्ज कराने के लिए— परीक्षा देने के लिए बार-बार हिमालय आने का आदेश मिला; साथ ही हर यात्रा में एक-एक वर्ष या उससे कम दुर्गम हिमालय में ही रहने के निर्देश भी। वह क्रम भी ठीक प्रकार चला और परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर नया उत्तरदायित्व भी कंधे पर लदा। इतना ही नहीं, उसका निर्वाह करने के लिए अनुदान भी मिला, ताकि दुबला बच्चा लड़खड़ा न जाए। जहाँ गड़बड़ाने की स्थिति आई, वहीं मार्गदर्शक ने गोदी में उठा लिया।
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