हमारी वसीयत और विरासत (भाग 34)— गुरुदेव का प्रथम बुलावा-पग-पग पर परीक्षा
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गुरुदेव का प्रथम बुलावा-पग-पग पर परीक्षा:—
यात्रा में जहाँ भी रात्रि बितानी पड़ी, वहाँ काले साँप रेंगते और मोटे अजगर फुफकारते बराबर मिलते रहे। छोटी जाति का सिंह उस क्षेत्र में अधिक होता है। उसमें फुरती बब्बर शेर की तुलना में अधिक होती है। आकार के हिसाब से ताकत उसमें कम होती है। इसलिए छोटे जानवरों पर हाथ डालता है। शाकाहारियों में आक्रमणकारी पहाड़ी रीछ होता है। शिवालिक की पहाड़ियों एवं हिमालय के निचले इलाके में इर्द-गिर्द जंगली हाथी भी रहते हैं। इन सभी की प्रकृति यह होती है कि आँखों से आँखें न मिलें; उन्हें छेड़े जाने का भय न हो, तो अपने रास्ते ही चले जाते हैं; अन्यथा, तनिक भी भय या क्रोध का भाव मन में आने पर वे आक्रमण कर बैठते हैं।
अजगर, सर्प, बड़ी छिपकली (गोह), रीछ, तेंदुए, चीते, हाथी; इनसे आएदिन यात्रियों को कई-कई बार पाला पड़ता है। समूह को देखकर वे रास्ता बचाकर निकल जाते हैं, पर जब कोई मनुष्य या पशु अकेला सामने से आता है, तो वे बचते नहीं, सीधे रास्ते चलते जाते हैं। ऐसी दशा में मनुष्य को ही उनके लिए रास्ता छोड़ना पड़ता है; अन्यथा, मुठभेड़ होने पर आक्रमण एक प्रकार से निश्चित ही समझना चाहिए।
ऐसा आमना-सामना-मुकाबला दिन और रात में मिलाकर दस से बीस बार हो जाता था। अकेला आदमी देखकर वे निर्भय होकर चलते थे और रास्ता नहीं छोड़ते थे। उनके लिए हमें ही बचना पड़ता था। यह घटनाक्रम लिखने और पढ़ने में तो सरल है, पर व्यवहार में ऐसा वास्ता पड़ना अतिकठिन है। कारण कि वे साक्षात् मृत्यु के रूप में सामने आते थे। कभी-कभी साथ चलते या पीछे-पीछे चलते थे। शरीर को मौत सबसे डरावनी लगती है। हिंस्र पशु अथवा जिनकी आक्रमणकारी प्रकृति होती है, ऐसे जंगली नर-नीलगाय भी आक्रमणकारी होते हैं। भले ही वे आक्रमण न करें, पर डर इतना ही लगता कि साक्षात् मौत की घड़ी आ गई। जब-तब कोई वास्ता पड़े, तो एक बात भी है। पर प्रायः हर घंटे एक बार मौत से भेंट होना और हर बार प्राण जाने का डर लगना, अत्यधिक कठिन परिस्थितियों का सामना करने की बात थी। दिल धड़कना आरंभ होता। जब तक वह धड़कन बंद न हो पाती, तब तक दूसरी नई मुसीबत सामने आ जाती और फिर नए सिरे से दिल धड़कने लगता। वे लोग एकाकी नहीं होते थे। कई-कई के झुंड सामने आ जाते। यदि हमला करते तो एक-एक बोटी नोंच ले जाते एवं कुछ ही क्षणों में अपना अस्तित्व ही समाप्त हो जाता।
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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