“गुरु कृपा चार प्रकार से होती है ।”

01 स्मरण से
02 दृष्टि से
03 शब्द से
04 स्पर्श से
जैसे कछुवी रेत के भीतर अंडा देती है पर खुद पानी के भीतर रहती हुई उस अंडे को याद करती रहती है तो उसके स्मरण से अंडा पक जाता है।
ऐसे ही गुरु की याद करने मात्र से शिष्य को ज्ञान हो जाता है।
यह है स्मरण दीक्षा।।
दूसरा जैसे मछली जल में अपने अंडे को थोड़ी थोड़ी देर में देखती रहती है तो देखने मात्र से अंडा पक जाता है।
ऐसे ही गुरु की कृपा दृष्टि से शिष्य को ज्ञान हो जाता है।
यह दृष्टि दीक्षा है ।।
तीसरा जैसे कुररी पृथ्वी पर अंडा देती है,
और आकाश में शब्द करती हुई घूमती है तो उसके शब्द से अंडा पक जाता है।
ऐसे ही गुरु अपने शब्दों से शिष्य को ज्ञान करा देता है।
यह शब्द दीक्षा है।।
चौथा जैसे मयूरी अपने अंडे पर बैठी रहती है तो उसके स्पर्श से अंडा पक जाता है।
ऐसे ही गुरु के हाथ के स्पर्श से शिष्य को ज्ञान हो जाता है।
यह स्पर्श दीक्षा है।।
गायत्री मंत्र की महत्ता
डॉ चिन्मय पंड्या
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