त्याग का अर्थ

“इच्छाओं के त्याग का अर्थ संसार को त्याग देना नहीं है। जीवन का ऐसा किसी प्रकार का निषेध मनुष्य को मनुष्यत्वशून्य बनाता है। ईश्वरत्व, मनुष्यत्व से रहित नहीं है। आध्यात्मिक का परमावश्यक कर्तव्य मनुष्य को अधिक मनुष्यत्व युक्त बनाना है। मनुष्य में जो सौंदर्य है, महानता तथा सात्विकता है, उन्हें मुक्त तथा व्यक्त करने का नाम आध्यात्मिक है। वाह्य-जगत में जो कुछ भी भव्य तथा सुन्दर है, उसे भी वह विकसित रहती है।
साँसारिक कार्यों में बाह्य त्याग तथा कर्तव्य और उत्तरदायित्व की उपेक्षा को वह आवश्यक नहीं मानती। वह केवल यही कहती है कि व्यक्ति के जो कार्य और उत्तरदायित्व है, उनका सम्पादन करते समय, उसकी आत्मा इच्छाओं के बोझ से मुक्त रहे। द्वैत के बन्धनों से मुक्त रहना ही पूर्णता है। बन्धनों के भय से जीवन से दूर भागने से यह मुक्ति प्राप्त नहीं हो सकती। बन्धनों से बचने के प्रयत्न का अर्थ है जीवन से भयभीत होना। किंतु आध्यात्मिकता का अर्थ है ‘परस्पर विरोधों के वशीभूत हुए बिना जीवन का ठीक और पूर्ण ढंग से सामना करना।”
~ मेहरबाबा
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