मन का मैल-वहम

हमारी अनेक बातें केवल वहम की प्रतिक्रियाएँ हैं। वहम मन का मैल है। यह अज्ञान अविश्वास एवं मूढ़ता का प्रतीक है। अमुक तिथि को गृह से प्रस्थान न होना चाहिए। छींकने पर कोई भयंकर घटना घटित होने वाली है। छिपकली शरीर पर गिर गई, अतः मृत्यु अवश्यंभावी है, जन्मपत्री नहीं मिलती अतः दाम्पत्य जीवन में रोग शोक कटुता होनी ही चाहिए-हमारी ऐसी ही अनेक वहमी धारणाएँ मानसिक निर्बलता की द्योतक हैं। भारतवासी अभी इतने ज्ञान सम्पन्न नहीं हो पाये हैं कि अपनी पुरानी विचार धाराओं को तिलाँजलि दे दें। वस्तुतः वे रोग और व्याधि को किसी अदृष्ट शक्ति का व्यापार मान लेते हैं।
अनेक व्यक्ति चिंता, क्रोध, भय इत्यादि मनोवेगों द्वारा अपने मनोबल को इतना निर्बल बना लेते हैं कि इनके द्वारा उनकी मानसिक स्थिति अत्यन्त विक्षुब्ध हो उठती हैं। ऐसे व्यक्तियों का मन सर्वदा किसी अज्ञात भय से उत्तेजित, गिरा हुआ और प्रकम्पित रहता है, चित्त में निरंतर अस्थिरता वर्तमान रहती है, विचार क्षिप्र गति से परिवर्तित होते रहते हैं, स्मरण शक्ति का ह्रास होता है, जरा-जरा सी बातों में उद्विग्नता, कटुता, कर्कशता उत्पन्न होती है, मन कुत्सित कल्पनाओं का अड्डा बन जाता है, और अन्त में अनेक मनो जनित रोग उन्हें धर दबाते हैं। कभी-कभी यह मानसिक दुर्बलता पागलपन में प्रकट होकर अनेक उपद्रव करती है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति-फर. 1946 पृष्ठ 4
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