ईश्वर उपासना

ईश्वर उपासना मानव जीवन की अत्यन्त महत्वपूर्ण आवश्यकता है। आत्मिक स्तर को सुविकसित, सुरक्षित एवं व्यवस्थित रखने के लिए हमारी मनोभूमि में ईश्वर के लिए समुचित स्थान रहना चाहिए और यह तभी संभव है जब उसका अधिक चिन्तन, मनन, अधिक सामीप्य, सान्निध्य प्राप्त करते रहा जाय। भोजन के बिना शरीर का काम नहीं चल सकता, साँस लिए बिना रक्ताभिषरण की प्रक्रिया बिगड़ जाती है। इसी प्रकार ईश्वर की उपेक्षा करने के उपरान्त आन्तरिक स्तर भी नीरस, चिन्ताग्रस्त, अनिश्चित, अनैतिक, अव्यवस्थित एवं आशंकित बना रहता है। यह हानि कुछ कम हानि नहीं है। दीखने वाली हानियों को लोग आसानी से समझ लेते हैं, पर इस जीवन के सारे आनन्द और उद्देश्य को ही नष्ट कर देने वाली हानि को हम न तो देख पाते हैं और न समझते ही हैं। यह कैसे दुर्भाग्य की बात है।
मानव जीवन की प्रगति और सुख-शान्ति आन्तरिक स्तर की उत्कृष्टता पर निर्भर रहते हैं। इस उत्कृष्टता की पुष्टि एवं अभिवृद्धि के लिए ही उपासना तंत्र का आविर्भाव हुआ हैं। भौतिक सुख- साधन, बाहुबल और बुद्धिबल के आधार पर कमाये जा सकते हैं पर गुण-कर्म-स्वभाव की उत्कृष्टता पर निर्धारित समस्त विभूतियाँ हमारे आन्तरिक स्तर पर ही निर्भर रहती हैं। इस स्तर के सुदृढ़ और समुन्नत बनाने में उपासना का भारी योग रहता है। इसलिए अत्यन्त आवश्यक कार्यों की भाँति ही उपासना को दैनिक कार्यक्रम में स्थान मिलना चाहिए। जिस प्रकार जीविका उपार्जन, आहार, विश्राम, सफाई, गृहस्थ पालन, विद्याध्ययन, मनोरंजन आदि का ध्यान रखा जाता है, वैसा ही ध्यान उपासना का भी रखा जाना चाहिए।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति जनवरी 1965 पृष्ठ 5
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