
Magazine - Year 1971 - Version 2
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Language: HINDI
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तुलसी भूर्महादेवी-अमृतत्वप्रदायिनी
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गौ, गंगा गीता गायत्री की तरह तुलसी वृक्ष को भी भारतीय धर्म और संस्कृति का आवश्यक अंग मानना वैज्ञानिक ऋषियों, आचार्यों की उपादेयता के फलस्वरूप ही है। तुलसी के गुणों का वर्णन करते-करते शास्त्रकार थक गया तो उसने एक वाक्य में सारी गाथा समाप्त कर दी-
अमृतोऽमृतरुपासि अमृतत्वदायिनी।
त्व मामुद्धर संसारात् क्षीरसागर कन्यके॥
विष्णु प्रिये ! तुम अमृत स्वरूप हो, अमृतत्व प्रदान करती हो, इस संसार से मेरा उद्धार करो।
तुलसी की पूजा-अर्चा से वस्तुतः कोई स्वर्ग उपलब्ध होता है या नहीं, ज्ञात नहीं किन्तु रोग-शोक के नरक में फँसे हुये लोगों के लिये तुलसी सचमुच ही इतनी उपयोगी पाई गई है कि उसे “उद्धार कर्त्री” ही कहा ज सकता है।
तुलसी के अनेक गुणों का प्रकाश उसके अनेक पर्यायवाची नामों से ही हो जाता है। तुलसी के पत्ते चबाने से मुँह में लार जो कि अत्यन्त पाचक, अग्निवर्धक, भूख बढ़ाने वाला तत्व है बढ़ता है इसलिये उसे सुरसा कहा है। दूषित वायु, रोग और बीमारी के कीटाणु-’वायरस’ रूपी भूत, राक्षस और दैत्यों को मार भगाने के कारण उसे भूतध्नी, अपेतराक्षसी तथा दैत्यध्वनी कहते हैं। हिस्टीरिया, मृगी, मूर्छा, कुष्ठ आदि रोग जिन्हें पूर्व जन्मों के पाप कहा जाता है वस्तुतः जो दीर्घकालीन विकृतियों (पापों) के फलस्वरूप असाध्य रोग पैदा हो जाता है और जो बहुत उपचार करने पर भी अच्छे नहीं होते वह भी तुलसी से अच्छे हो जाते हैं इसलिए उसे पापाघ्नी कहा गया है। इसका एक नाम फूल-पत्री है अर्थात् इसके पत्ते चबाने से शरीर शुद्ध होता है, शरीर में जीवनी शक्ति बढ़ाती और स्थिर रखती है इसलिये इसे “कायस्था” तेजी से प्रभाव डालने के कारण तीव्र तथा यह एक अत्यन्त सरल चिकित्सा है इसलिये इसे “सरला” नाम से भी पुकारते हैं। यह तुलसी के हजारों नामों में से कुछ एक हैं जो उसके महान् गुणों की आरे संकेत करते हैं। अँग्रेजी में इसे पवित्र बेसिल (होली बेसिल) कहते हैं तो फ्रेंच इस सन्त-बेसिलिक सेंट कहकर पुकारते हैं बेसिल शब्द का अर्थ भी शाही होता है उसी प्रकार लेटिन नाम भी उसकी पवित्रता के अर्थ में आते हैं खेद है कि ऐसे गुणकारी पौधे की उपयोगिता भुलाकर हम भारतीय प्रत्येक हिन्दू के घर में एक वेदी बनाकर उसमें “तुलसी वृन्दावन” स्थापित कर उसे पूजते और पुष्प चढ़ाते थे वहाँ अब आवश्यकता पड़ने पर ढूँढ़ने से यह किन्हीं-किन्हीं घरों में ही मिल पाता है।
इस देश की धर्म प्राण जनता उसके महत्व को भू न जाये इसके लिये अनेक ऐसे कथानक तैयार किये गये जो उसके महत्व को बढ़ाते हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार तुलसी विष्णु भगवान् की पत्नी कहीं गई तो कामदेव ने कहा-जिस प्रकार घर में कन्या का पालन-पोषण एक पवित्र कर्त्तव्य माना जाता है और कन्यादान से पुण्य माना है उसी प्रकार घर में तुलसी के पौधे को कन्या की तरह पाला-पोसा जाये और उसका विवाह किया जाये। उसके विवाह के कर्मकाण्ड वाले मंत्र भी तैयार किये गये। इतनी सारी महत्ता देने का अर्थ हर हिन्दू के मस्तिष्क में उसके प्रति गहरी आस्थायें पैदा कर देना था सो उसकी उपयोगिता देखते हुए कोई अनुचित बात नहीं हुई। तुलसी की इतनी आवश्यकता और उपयोगिता पहले कभी नहीं हुई इस युग में है इसलिये यदि उसे उद्धार कर्मी कहा जाये तो अत्युक्ति नहीं। आज जब कि विज्ञान ने सारा वायुमण्डल दूषित कर वायु प्रदूषण (एयर पोलूजन) की समस्या उत्पन्न करदी, नये-नये रोग पैदा हो रहे हैं, तुलसी ही परित्राण दिलायेगी। घर-घर तुलसी वृक्ष रोप कर ही हम इन विकृतियों से बचाव कर सकते हैं।
गौरी तंत्र तुलसी महात्म्य में बताया है-
तुलसी पत्र सहितं जलं पिबति यो नरः।
सर्व पापविनिमुक्तो मुक्तो भवति भामिनि॥
तुलसी दल को जल में डालकर जो उस शीत-कषाय को पीते हैं वे अनेक रोगों में छुटकारा पाते है- चरणामृत वस्तुतः एक प्रकार का शीत-कषाय ही है। राज निघंटु करवीरादि 152 में बताया है कि यह स्वाद और भोजन की रुचि बढ़ाती है, कीड़ों और छोटे कृमियों को जो आंख से नहीं दिखाई देते (वायरसों) को मारती है। चरक ने इसे दमा, पसलियों के दर्द खांसी हिचकी तथा विषों का दूषण ठीक करने में लाभदायक लिखा है कफ दूर करती है, इसमें कपूर की तरह की एक सुगन्ध होती है जो दुर्गन्ध मिटाती है। घरों के आस-पास और आंगन में तुलसी लगाने का यह एक बड़ा भारी लाभ था जिससे आजकल अश्रद्धा वश हम वंचित हो रहे है। धन्वन्तरि निघण्टु में बताया है कि जो लोग इसकी पत्तियां साफ करके खाते रहते हैं उनकी पाचन-क्रिया विकृत नहीं होती। भाव-मिश्र कैकदय राजबल्लभ और मदनपाल आदि भेषजज्ञों ने इसे हृदय के लिये लाभदायक, त्वचा के रोगों को मिटाने में समर्थ पेशाब की जलन दूर करने वाली, उल्टी बमन रोकने वाली बताया है। अन्य औषधियों के साथ मिलाकर तो यह दूसरे भी रोगों को नष्ट करती वह औषधियोँ के प्रभाव को बढ़ा देती है पर इसका सबसे बड़ा लाभ आने समीप वर्ती वातावरण को शुद्ध रखना है जिसके लिये इसे रोपना, मिट्टी देना, पानी डालना, काटते-छांटते रहकर उसके विकास में मदद भर देना होता है। सायंकाल घृत दीप रख दिया जाये तो घृत मिश्रित वायु रात में निकलने वाले अनेक रोग कीटाणुओं को, दूर भागने के लिये विवश करती है।
आधाशीशी, जुकाम, बेहोशी, कान, नाक, सिरदर्द आदि में तुलसी बहुत लाभदायक होती है। विदेशों में उपयोग में आने वाली-”रिंग फार्माकोपिआ आफ इण्डिया” और कुछ नहीं तुलसी की ही नस्वार है जिसे जुकाम में रामबाण मानते हैं। तुलसी मंजरी का धुआँ खाँसी में लाभदायक होता है। बीज वीर्य रोगों के लिये लाभदायक होता है। लंका में इसे पान में रखकर खाते हैं इन दिनों चाय का प्रचलन बहुत अधिक हो गया है जिससे भूख न लगना, हृदय और वीर्य संखलन की अनेक बीमारियाँ बढ़ रही है उसके विकल्प के रूप में गुरुकुल काँगड़ी ने एक चाय बनाई है जो तुलसी से ही बनती है। हृदय और मस्तिष्क को शीतलता देने में तुलसी अमृतोपम है। पद्मपुराण में लिखा है-
तुलसी मृत्तिका लिप्तं ललाट यस्मदृश्यते।
कुलं स्पृशति नो तस्य कलिर्भुनिवरोत्तम॥
अर्थात्- चन्दन की तरह तुलसी की मिट्टी या लकड़ी को घिस कर माथे में लगाने से वंश परम्परा के (अनुवाँशिक) रोग भी अच्छे हो जाते हैं। मलेरिया प्रजनन, बच्चों और स्त्रियों के रोगों में तुलसी का भारी महत्व है। चरक, सुश्रुत, तुलसी रहस्योपनिषद् राघवानुभव, गरुड़ स्कन्द, वायु और पद्मपुराण वृहत्स्तोत्र रत्नाकर गौरीतंत्र त्रिपाद् विभूति महानारायणोपनिषद्, हारीत संहिता, कैयदेव निघण्टु, भाव प्रकाश, वनौषधि प्रकाश, अड़यार पुस्तकालय की सामरहस्योपनिषद् धन्वन्तरि निधण्टु, राजमार्तण्ड आदि ग्रन्थ तुलसी की महान् व्याख्याओं और गुणों से भरे पड़े है।
पाश्चात् राजयनज्ञ भी अब इधर आकर्षित हुये है। प्रारम्भिक जाँच से पता चला है कि तुलसी के पत्तों में हल्के पीले तथा हरे रंग का एक उड़न शील तेल पाया जाता है जो दूसरे सभी पौधों से भिन्न होता है थोड़ी देर रखा रहने से वह स्फटिक आकार का हो जाता है इसे ”बेसी काम्फ्र” कहते हैं। इसे ही तुलसी कपूर कहते हैं। इसमें “तारपीन” भी होता है। यह कृमि कीटों के नाश में बड़े सहायक होते हैं। साथ ही उस क्षेत्र में रहने वालों को प्राण-जनित ऊष्मा प्रदान करते रहते हैं। इन लाभों को देखते हुए ही तुलसी को हर घर में प्रतिष्ठित किया गया था। आज तो उसकी उपयोगिता और भी बढ़ गई है। जगह-जगह तुलसी बन, तुलसी सैनेटोरियम, तुलसी वृन्दावन बनने चाहिये अर नहीं तो प्रत्येक घर में आँगन में कम से कम एक तुलसी का पौधा तो अवश्य ही रहे।