
क्रान्ति विश्वव्यापी होगी-होगी किन्तु बौद्धिक
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“द्वितीय महायुद्ध हुआ उस समय शनि सायण वृष राशि तथा मिथुन राशि पर भ्रमण कर रहा था। गुरु वृष राशि के साथ मेष में भी था। ग्रह मानव जीवन पर अपनी-अपनी तरह से प्रभाव डालते हैं। शनि युद्ध कलह और रक्तपात का, साम्यवाद का प्रतीक है वृष और मिथुन राशि पर होना योरोप में व्यापक युद्ध का प्रतीक था गुरु बुद्धि और विद्या का प्रतीक है शनि के साथ बृहस्पति की युति इस बात का प्रतीक होती है कि युद्ध में बुद्धि कौशल भी साथ देगा- द्वितीय महायुद्ध के दौरान बिल्कुल यही बात हुई। युद्ध हुआ और नये-नये आयुधों उपकरणों के साथ उससे युद्ध प्रियता की शक्तियाँ बढ़ीं, साम्यवाद बढ़ा उस समय जो हिंसा का ताँडव हुआ वह तब से छुट-पुट चलता ही आ रहा है।”
“इस समय शनि सायण वृष राशि पर है और वह शीघ्र ही मिथुन राशि पर भ्रमण करने जा रहा है इस बार बृहस्पति फिर उसी राशि पर है किन्तु उसकी गति प्रतियोग में अर्थात् उल्टी है इसलिए सन् 1972 से आगे 73 का समय एक महायुद्ध जैसी विश्व-व्यापी अन्तक्रान्ति का समय है इसमें एक ओर विनाशकारी युद्ध की परिस्थितियाँ जीभ लपलपायेंगी, कहीं-कहीं चोटें होंगी, अल्पकालीन किन्तु मानवता का दिल दहला देने वाले युद्ध होंगे किन्तु बृहस्पति के विपरीत योग होने के कारण युद्ध लम्बे नहीं होंगे वरन् वे बुद्धिमान लोगों द्वारा निबटायें जाते रहेंगे बृहस्पति के प्रतियोग में होने से महायुद्धों के समानान्तर एक बौद्धिक क्रान्ति होगी उसका नेतृत्व भारत करेगा धर्म और संस्कृति का तेजी से विकास होगा जिसका प्रभाव महायुद्ध के समान ही व्यापक होगा।”
यह विचार अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के भारतीय ज्योतिषी श्री राधेश्याम श्री रावल जी ने टंकार पत्रिका के नवम्बर सन् 1968 अंक में प्रस्तुत किये। सौराष्ट्र निवासी श्री रावल जी की अनेक भविष्यवाणियां 25-26 जुलाई सन् 1968 के दैनिक जागरण, दैनिक विश्व मित्र में छपीं।
दोनों दैनिक पत्र कानपुर से निकलते हैं। लखनऊ से प्रकाशित ज्ञान भारती में भी उनकी महत्वपूर्ण भविष्यवाणियां छपी है उनकी सहायता ने श्री रावलजी के भविष्य दर्शन की ओर बुद्धिजीवियों का व्यापक ध्यान आकर्षित किया है।
ज्ञान भारती मासिक के 1963 के फरवरी अंक पृष्ठ 120 में श्री रावल जी की भविष्य वाणी थी-”अगले दिनों देश के अनेक राज्यों से मिली-जुली सरकारें स्थापित होंगी 65 के अन्त तक भारत-पाक युद्ध होगा उसमें भारत अपनी पाकिस्तान के अधिकार में गई बहुत-सी सीमा वापस लौटा लेगा किन्तु फिर बात चीत द्वारा समझौता हो जायेगा।” इन भविष्यवाणियों को सभी ने सच होते देखा। ताशकंद समझौते के बाद लोगों का ध्यान पिछली भविष्य वाणियों की और आकर्षित हुआ तो उनसे फिर आगे की बातें पूछी गई। तब उन्होंने 1966 में टंकार पत्रिका में लिखा-”पाकिस्तान ताशकंद समझौते का पालन नहीं करेगा बंगाल में हिंसक घटनायें बढ़ेंगी और साम्यवाद में उग्र संघर्ष होगा जिसमें विजय समाजवाद की होगी। बैंकों का पूर्ण राष्ट्रीकरण होगा, विद्यार्थियों के आन्दोलन होंगे विश्व-विद्यालय बन्द रहेंगे। साम्प्रदायिक दंगे बढ़ेंगे। काँग्रेस दो गुटों में विभाजित होंगी। वित्त मन्त्री मुरारजी त्याग पत्र देंगे।” इन भविष्यवाणियों को उस समय कौतूहल पूर्वक सुना गया किन्तु शीघ्र ही उनकी सत्यता सामने आती गई और आज तक यह सभी भविष्य-वाणियाँ सच हुई।
इन्हीं दिनों मौरुस वुडरफ की भविष्य वाणी छपी तथा टेलीविजन पर भी उन्होंने घोषणा की थी कि 1968 में इन्दिरा का पतन हो जायेगा। यह भविष्य वाणी श्री रावल ने पढ़ी और उसकी प्रतिक्रिया कानपुर से छपने वाले साप्ताहिक टंकार में इस प्रकार छापी-इन्दिरा गाँधी का पतन नहीं होगा, वरन् उन्हें जनता का सुदृढ़ समर्थन मिलेगा और मौरुस वुडरफ की भविष्य वाणी गलत होगी- ऐसा हुआ भी 1971 के चुनावों ने तो इस स्थिति को और भी साफ कर दिया है।
श्री रावल की अन्य भविष्यवाणियां जो अब तक सत्य हुई वह इस प्रकार है-
पूर्वी बंगाल (पूर्वी पाकिस्तान) में प्राकृतिक प्रकोप और अन्तर्क्रान्ति होगी जिससे वहां के निवासी बहुत कष्ट उठायेंगे 70 में नासिर की मृत्यु हो जायेगी जॉनसन दुबारा राष्ट्रपति नहीं होंगे, रूस की राजनीतिक चालों के बावजूद भी इज़राइल जीती हुई भूमि नहीं छोड़ेगा। अयूब खां का पतन और श्री लंका में व्यापक राजनैतिक हलचलें होंगी। यह सभी भविष्यवाणियां सच हुई।
सन् 1972 और उससे आगे के ग्रह-चक्रों का विवरण देते हुए श्री रावल जी ने लिखा है-
शिक्षा संस्थानों में उठने वाले आन्दोलन के फलस्वरूप शिक्षा के स्वरूप पर नये सिरे से विचार होगा। भारत और नेपाल, भारत और रूस के सम्बन्धों में बिगाड़ पैदा होगा। एक ओर जातिवाद उग्र होगा दूसरी ओर साम्प्रदायिक दंगे होंगे। आज जो बरसाती मेंढ़कों की तरह हजारों राजनैतिक दल उमड़ पड़े है उनमें से अधिकाँश लुप्त होकर अधिक से अधिक 4 राजनैतिक पार्टियाँ शेष रह जायेंगी। फिर भी राज्यों में स्थिरता नहीं आयेगी और बार-बार राष्ट्रपति शासन लागू होते रहेंगे। अमरीका और रूस के सम्बन्धों में भयंकर बिगाड़ होंगे। देश में नक्सलवादी उत्पात कम न होंगे, दलबन्दी के कारण एकबार फिर मध्यावधि चुनाव हो सकता है। संविधान में साधारण हेर-फेर तो होगा पर किसी व्यापक परिवर्तन की बात नहीं होगी। प्रिवीपर्स समाप्त हो जायेंगे। पूर्ण राशनिंग की सम्भावना है। टैक्स बढ़ने से जनता भी परेशान होगी, व्यापारी भी। शहरी सम्पत्ति का परिसीमन होगा, वस्तुओं के मूल्य बढ़ेंगे। नौकरशाही का प्रभाव कम न होगा। रिश्वत, मिलावट और महंगाई बराबर बढ़ती रहेगी। अपराध बढ़ेंगे, उत्तरी सीमा पर भारत के लिए युद्ध का खतरा रहेगा और समुद्री तथा प्राकृतिक उत्पात सारी दुनिया में बढ़ेंगे।”
जहां इतना सब होगा मानव जाति पीड़ित होगी वहां श्री रावल जी की धारणा है कि भारतवर्ष में कृषि और विज्ञान की तीव्र प्रगति होगी। कुछ ऐसी वैज्ञानिक खोजें भारतवर्ष करेगा जिससे दुनिया के वैज्ञानिक हतप्रभ रह जायेंगे। यहां की सैन्य शक्ति बढ़ेगी और सत्ता में धर्म का हस्तक्षेप भी। नारी जाति को सम्मान मिलेगा। एकबार तो विश्व-व्यापी युद्ध की लपटें उठेंगी और उसे देखकर मानव जाति कांप जायेगी तब सारे देश भारतवर्ष की ओर मुंह ताकेंगे। भारत के प्रयत्नों से युद्ध तो नहीं होगा पर अन्तर्क्रान्ति किसी के भी रोके न रुकेगी, राष्ट्र संघ असफल रहेगा पर मानव के भाई-चारे की भावना का निश्चित विकास होगा। संसार एक धर्म, एक संस्कृति और एक समान विचारधारा पर अग्रसर होने के लिए बाध्य होगा।