
छूत अछूत का भेद
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महात्मा प्रतिदिन जेल जाते और एक बन्दी को उपनिषद् पढ़ाया करते। बंदी काल कोठरी में था तो भी उसके जीवन में अपूर्व मस्ती, विलक्षण ओज झलक रहा था मानो वह उपनिषद् नहीं पढ़ रहा था सोम-रस का पान कर रहा था।
चढ़ाव-चढ़ाव हों, उतार न हों तो जीवन क्या ? संकल्प-विकल्प, शान्ति-संघर्ष, उतार और चढ़ाव का नाम ही तो जीवन है एक सी स्थिति होती तो संसार में गति न होकर केवल शून्यता होती। बन्दी का जीवन उसकी प्रकार बीत रहा था, महात्मा नियमपूर्वक उसे उपनिषद् पढ़ाने जाते रहते।
एक दिन वह आया जब उन महात्मा ने अपने शिष्य के मन में शान्ति आर प्रसन्नता का अभाव ही नहीं पाया, देखा कि उसके मन में कोई भय समा गया है, देखने से लगता था वह रात भर सोया नहीं था। महात्मा ने पूछा- तात् ! ऐसी क्या बात हो गई चिन्तातुर क्यों दिखाई दे रहे हो-उपनिषद् पढ़कर भी जो व्यक्ति शाँति न पाये समझना चाहिये उसके लिये संसार में और कहीं शान्ति नहीं।
आप ठीक कहते हैं गुरुवर ! बन्दी ने अत्यन्त विनीत से भाव से उत्तर दिया। किन्तु न जाने क्यों आज रात भर एक भयंकर स्वप्न ने मुझे पीड़ित करके रखा, नींद टूट गई तब से उस स्वप्न की भयंकरता मन से दूर नहीं होती ?
क्या था वह स्वप्न संन्यासी ने अगला प्रश्न किया- उस प्रश्न का उत्तर युवक एक गांव के कच्चे मकान में पाया। एक कोठरी दिखाई दी जिसमें मेरी मां बाल खोले बैठी-बालों को सुखा रही थी तभी मैं हाथ में तलवार लिये अन्दर चला गया और मां के बाल पकड़ कर उसे कोठरी से घसीटता हुआ बाहर बरामदे में ले आया। मां चिल्लाती रही मैंने छोड़ा नहीं--सहन में आकर मैंने तलवार से उसका वध कर दिया। ‘‘ आप जानते है अपनी मां को कितना प्यार करता हूं, मेरी मां मुझे कितना स्नेह करती है, जो बात मेरी कल्पना में भी नहीं आई स्वप्न में कैसे आ गई ? यह भयंकर स्वप्न रात कई बार देखा उसी कारण मन उदास है।
महात्मा ने कुछ विचार किया--पूछा कल खाना बनाया, बाहर से मंगाकर तो कुछ नहीं खाया। युवक ने उत्तर दिया नहीं गुरुदेव पर हां कल का खाना पहले से स्वादिष्ट अवश्य था लगता था किसी नये रसोइये ने बनाया हो। महात्मा जी ने कुछ पूछे बिना-बन्दीगृह के कारी के पास जाकर पूछा क्या कल किसी नये भोजन पकाया ? कारागृह अधिकारी न कहा हां-उसके साथ साथ ही उसका रिकार्ड मंगाकर तो पता चला कि वह गांव का रहने वाला है अपनी मां की हत्या के अपराध में आजीवन सजा आया है। हत्या की परिस्थितियां ठीक वहीं थी जो ने स्वप्न में देखी थी। महात्मा के कहने से उसे काम से छुट्टी दे दी गई।
महात्मा फिर अपने शिष्य के पास आये और बात समझाते हुये बोले-वत्स ! व्यक्ति के मानसिक स्पर्श मात्र से दूसरों को कितना प्रभावित कर सकता यह उसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। पूर्वजों ने छूत-अछूत भेद अच्छे बुरे कर्मों के आधार पर बनाया था न कि से ही छूत-अछूत होने का सिद्धान्त, उसका कारण इस से समझ गये होगे।
युवक सन्तुष्ट हो गया, रसोइया बदल जाने से उसने वह स्वप्न भी नहीं देखा। यह कथा पौराणिक कल्पना नहीं सत्य घटना है जो महात्मा आनन्द जीवन में तब घटी जब वे रणवीर को जेल में पढ़ाने जाया करते थे। इसे उपनिषदों के सार में उन्होंने प्रकाशित किया है।