
Magazine - Year 1971 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
भगीरथ सुरसरि लाने चले (Kavita)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
भगीरथ सुरसरि लाने चले !
विश्व के अग्नि-कुण्ड में मग्न, मांगती है मानवता त्राण !
द्रवित सविता के तेजोवलय, हिमालय को पिघलाने चले !!
भगीरथ सुरसरि लाने चले !
घुमड़ कर कण्ठ-देश में रुद्ध, ऋचाओं का वह बादल-राग !
सुधा के मेघ मंद स्वर मौन, बुझेगी जिनसे युग की आग !
धधकते अधरों तक जो प्राण, बादलों से अंगड़ाने चले !!
भगीरथ सुरसरि लाने चले !
ऊषायें जग, इठलाने लगीं, निशाओं के कांपे है गात,
तिमिर का यह अन्तिम त्यौहार, सिहरती तारों की बारात !
खिला शतदल से जन-जन प्राण, अरुण-से, तप मुस्काने चले !!
भगीरथ सुरसरि लाने चले !
प्रभंजन बुझा सके कब ‘ज्योति’ प्रलय के सतत् उठे भूचाल,
प्रात का करने को अभिषेक, रात भर जलती रही मशाल !
परि-पलकों में रोके सिन्धु, लक्ष्य को अर्घ्य चढ़ाने चले !!
भगीरथ सुरसरि लाने चले !
प्राण का कन-कन देता रहा, मगर कब दानी बना दधीचि,
कल्पतरु के घर भूखी-भीड़ निरख, जो जगा दृगों को सींच !
खुलें, युग के अक्षय भंडार, दीनता-दुर्ग ढहाने चले !!
भगीरथ सुरसरि लाने चले !
कमंडल से ढुलका पीयूष, उमड़ते अंजलियों के ओक,
असंख्यों तृषित प्राण पी गये, बुझी कब तृषा, दुखी है लोक !
देव, इतने उदार हो गये, सिन्धु बनकर लहराने चले !!
भगीरथ सुरसरि लाने चले !
प्यार का पा अगाध स्पर्श, पिघलते गये प्राण-पाषाण,
नींद का उतरा नहीं खुमार, विदा के क्षण पहुंचे है आन !
मिलन का देकर मधु सामीप्य, विरह का ज्वार जगाने चले !!
भगीरथ सुरसरि लाने चले !
दानि, होगा जब हमसे दूर, दान होगा जब अपने पास !
दीनता जब होगी धनवान, प्राप्ति का तब होगा विश्वास !!
पास रहकर, जिससे थे दूर-दूर रह, पास बुलाने चले !
बिसूरेगी, बरसेगी याद, विरह-सुधियां सुलगाने चले !!
भगीरथ सुरसरि लाने चले !
*समाप्त*