• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • हम श्रेष्ठ योद्धा की भूमिका निबाहें
    • जब जाग जाती हैं अतींद्रिय शक्तियाँ तब
    • क्या स्वप्न अचेतन का भटकाव मात्र है
    • Quotation
    • आत्मावलम्बन (Kahani)
    • सदी के अंतिम स्वतंत्रता दिवस पर करें कुछ आत्मचिंतन
    • Quotation
    • आरुणि की परीक्षा (Kahani)
    • ध्यान से बड़ा नहीं-कोई भी नशा
    • कुरूप कुबेर (Kahani)
    • लिखालिखी की है नहीं, देखादेखी बात
    • Quotation
    • वास्तुशास्त्र में ईशान कोण की महत्ता
    • Quotation
    • आत्मावलम्बी (Kahani)
    • नई सदी की भाग्य विधात्री होगी नारी
    • सूक्ष्मीकरण साधना (Kahani)
    • डरिए मत भूतों से, उनका अस्तित्व तो है ही
    • Quotation
    • आत्मा यथार्थ में पवित्र है (Kahani)
    • हँसिए-हँसाइए नहीं तो रोग आ घेरेगा
    • श्रावणी (28 अगस्त) पर विशेष - चमक उठे राष्ट्रीय स्वाभिमान का महासूर्य इस पर्व पर
    • जन हितैषी मनुष्य (Kahani)
    • बुद्धिमान मनुष्य की मूर्खता का परिणाम भोग रहे हैं हम
    • बिंदु में सिंधु समाया
    • गणेश दत्त सिंह (Kahani)
    • एक साहसिक भिड़ंत, जिसकी परिणति सुखद हुई
    • रामशास्त्री की ईमानदारी (Kahani)
    • कैसा हो हमारा आहार?
    • सच्चा विश्वास (kahani)
    • युगपुरुष की लेखनी से - पं. श्रीराम शर्मा आचार्य वांग्मय-अमृत कलश
    • VigyapanSuchana
    • युगशिल्पी अहमन्यता के विषपान से बचें
    • श्रावणी पर्व का माहात्म्य एवं प्रेरणाएँ
    • VigyapanSuchana
    • युग गीता-4 - सद्गुरु के रूप में भगवान का वरण
    • VigyapanSuchana
    • हीरक जयंती की पूर्व वेला में श्रावण का संदेश - अमृतवाणी
    • गुरु- कथामृत- 1 - ‘पाती’ जिससे इसे मिशन की नींव रखी गई
    • उत्तम संपत्ति (Kahani)
    • यह हमारे राष्ट्र की अग्निपरीक्षा का है।
    • राष्ट्रधर्म पर युगद्रष्टा का चिंतन
    • Quotation
    • संस्कार एक औषधि
    • संस्कार एक औषधि (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • हम श्रेष्ठ योद्धा की भूमिका निबाहें
    • जब जाग जाती हैं अतींद्रिय शक्तियाँ तब
    • क्या स्वप्न अचेतन का भटकाव मात्र है
    • Quotation
    • आत्मावलम्बन (Kahani)
    • सदी के अंतिम स्वतंत्रता दिवस पर करें कुछ आत्मचिंतन
    • Quotation
    • आरुणि की परीक्षा (Kahani)
    • ध्यान से बड़ा नहीं-कोई भी नशा
    • कुरूप कुबेर (Kahani)
    • लिखालिखी की है नहीं, देखादेखी बात
    • Quotation
    • वास्तुशास्त्र में ईशान कोण की महत्ता
    • Quotation
    • आत्मावलम्बी (Kahani)
    • नई सदी की भाग्य विधात्री होगी नारी
    • सूक्ष्मीकरण साधना (Kahani)
    • डरिए मत भूतों से, उनका अस्तित्व तो है ही
    • Quotation
    • आत्मा यथार्थ में पवित्र है (Kahani)
    • हँसिए-हँसाइए नहीं तो रोग आ घेरेगा
    • श्रावणी (28 अगस्त) पर विशेष - चमक उठे राष्ट्रीय स्वाभिमान का महासूर्य इस पर्व पर
    • जन हितैषी मनुष्य (Kahani)
    • बुद्धिमान मनुष्य की मूर्खता का परिणाम भोग रहे हैं हम
    • बिंदु में सिंधु समाया
    • गणेश दत्त सिंह (Kahani)
    • एक साहसिक भिड़ंत, जिसकी परिणति सुखद हुई
    • रामशास्त्री की ईमानदारी (Kahani)
    • कैसा हो हमारा आहार?
    • सच्चा विश्वास (kahani)
    • युगपुरुष की लेखनी से - पं. श्रीराम शर्मा आचार्य वांग्मय-अमृत कलश
    • VigyapanSuchana
    • युगशिल्पी अहमन्यता के विषपान से बचें
    • श्रावणी पर्व का माहात्म्य एवं प्रेरणाएँ
    • VigyapanSuchana
    • युग गीता-4 - सद्गुरु के रूप में भगवान का वरण
    • VigyapanSuchana
    • हीरक जयंती की पूर्व वेला में श्रावण का संदेश - अमृतवाणी
    • गुरु- कथामृत- 1 - ‘पाती’ जिससे इसे मिशन की नींव रखी गई
    • उत्तम संपत्ति (Kahani)
    • यह हमारे राष्ट्र की अग्निपरीक्षा का है।
    • राष्ट्रधर्म पर युगद्रष्टा का चिंतन
    • Quotation
    • संस्कार एक औषधि
    • संस्कार एक औषधि (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1999 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


नई सदी की भाग्य विधात्री होगी नारी

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 15 17 Last
शताब्दियों की पराधीनता, आत्मविस्मृति और निद्रा के बाद नारी चेतना अंततः जाग उठी है और उत्तरोत्तर प्रगति के नए पग बढ़ा रही है, जो मानव समाज के उज्ज्वल भविष्य का शुभ संकेत है। पश्चिम में उग्र पुरुष विरोधी रूप में उभरा अपनी स्वतंत्रता एवं अधिकारों का उद्घोषक नारी मुक्ति संघर्ष अब मानवीय मूल्यों के व्यापक मुद्दों को समेटते हुए अपने प्रगतिपथ पर अग्रसर है। नारी जागरण की इस लहर से विश्व के पिछड़े देश भी अछूते नहीं हैं। अंतर्राष्ट्रीय महिला संगठन के अंतर्गत विश्वभर के सभी देश हर साल छह मार्च को महिला जागरण दिवस मनाने का सार्थक उपक्रम करते हैं। भारत में 11वीं सदी के अंतिम दशकों में सामाजिक एवं साँस्कृतिक पुनर्जागरण से प्रारंभ नारी जाग्रति का दौर स्वतंत्रता प्राप्ति व उसके बाद अब तक एक लंबी यात्रा तय कर चुका है। वस्तुतः 20वीं सदी के प्रथमार्द्ध को नारी जाग्रति एवं उत्तरार्द्ध को नारी-प्रगति का काल कहा जा सकता है।

इसी के परिणामस्वरूप नारी आज घर की बंद चारदीवारी के बाहर खुली हवा में साँस ले पा रही है। शिक्षा स्वावलंबन के महत्वपूर्ण पाठ पढ़ते हुए अपने अधिकारों एवं स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत है और जीवन के हर क्षेत्र में पदार्पण कर रही है। शिक्षण-चिकित्सा से लेकर प्रशासन-राजनीति व उद्योग व्यवसाय, वकालत से लेकर पर्वतारोहण सैन्य सुरक्षा जैसे चुनौती भरे एवं पुरुषों के एकाधिकार वाले क्षेत्र कोई भी उससे अछूते नहीं रहे। प्रगति की इस दौड़ में कही-कही तो वह पुरुष से भी दो कदम आगे बढ़ चली है। ऐसा प्रतीत होता है कि वह अब अपने उस गौरवशाली पद पर प्रतिष्ठित होकर ही दम लेगी, जहाँ उसे कभी मनुष्य में देवत्व का जागरण कर धरती पर स्वर्गोपम वातावरण के सृजन का सौभाग्य प्राप्त था। तब साँस्कृतिक चेतना की संवाहक होने के कारण ही वह देवी के रूप में पूजित एवं वंदित थी। उन दिनों का समाज भी ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्यते तत्र देवता’ का उद्घोष कर रहा था।

कालक्रम में अवसान के क्षणों में जब अपनी गौरव-गरिमा विस्मृत हुई तो समाज भी घोर-घने अंधकार में जकड़ता चला गया। नारी चेतना के लोभ के साथ ही राष्ट्र-समाज का जड़ता के घोर तमस् में पड़ जाना और विदेशी शासकों की लंबी पराधीनता इसका स्वाभाविक किंतु दुखद पहलू है। अब फिर से समय ने करवट ली है और नारी जाग्रति का दौर शुरू हुआ। जाग्रति के साथ सुगति की दिशा में अग्रसर नारी के पग समाज, संस्कृति और राष्ट्र के उज्ज्वल भविष्य को आशान्वित करते प्रतीत होते हैं। किन्तु इस अवस्था में भ्रम की मृग-मरीचिका भटकाव के घुमावदार मोड़, पतन के खाई-खंदक भी कम नहीं हैं, जो कि उसके जागरण, मुक्ति व स्वतंत्रता, प्रगति के आदर्श एवं दिशा पर सवालिया निशान लगाते हैं। इन चुनौतियों से जूझे बिना, इनका समुचित समाधान किए बिना उसके संघर्ष एवं प्रगति के मायने अधूरे बने रहेंगे।

भटकाव का प्रथम मोड़ है - अपनी मौलिक साँस्कृतिक गरिमा को भुलाकर पाश्चात्य अंधानुकरण की प्रवृत्ति जिसके अंतर्गत नारी-पुरुष से प्रतिद्वंद्विता एवं संघर्ष का आक्रामक रुख अख़्तियार कर अपने अधिकारों के प्रति अत्यधिक सचेत है किन्तु कर्तव्य के प्रति उदासीन। परिणाम आपसी कटुता, विवाद एवं अशान्ति के रूप में सामने है। इसी के कारण संयुक्त परिवार के बिखराव के बाद आजकल परिवारों में भी दरारें पड़ने लगी हैं। बढ़ते पारिवारिक कलह, तलाक, हिंसा, अपराध एवं आत्महत्याओं की घटनाएँ इसकी घातकता के गंभीर संकेत दे रहे हैं। इसमें नारी ही प्रधानतया दोषी है- कहना न्यायसंगत तो नहीं होगा, परन्तु समानता अधिकार का अत्याग्रह एवं कर्तव्य विमुखता इसका एक बड़ा कारण अवश्य है।

पश्चिम में तो इस मानसिकता के चलते परिवार एवं विवाह संस्थाओं की धज्जियां उड़ चुकी है। इस समय यूरोप में दो करोड़ दंपत्ति तलाकशुदा जीवन जी रहे हैं। जिनके 70 लाख बच्चे अनाथों का सा जीवन जीने के लिए विवश हैं। अमेरिका में यह उक्ति प्रचलित है कि वहाँ शादी एवं तलाक में करवट बदलने से अधिक समय नहीं लगता। वैयक्तिक एवं पारिवारिक सामाजिक जीवन में इसके घातक दुष्परिणामों को देखते हुए अमेरिका में स्वयं को नारीवादी न कहलाने वाली महिलाओं की संख्या में तीव्रता से बढ़ोत्तरी हो रही है। 1989 में जिनकी संख्या 58 प्रतिशत थी, आज वे 70 फीसदी से भी अधिक बढ़ चुकी है।

वास्तव में पश्चिमी महिलाओं के उग्र पुरुष विरोधी रवैये की जड़े गहरी हैं। वहाँ की संस्कृति एवं दर्शन ने नारी को पुरुष से सदैव हीन माना है और उसे अमानवीय एवं पाशविक यंत्रणाओं को सहने के लिए मजबूर किया है। उनके धर्मग्रन्थों में उसे शैतान की कृति माना है, जो सृष्टि में ईश्वर की एकमात्र प्रतिकृति पुरुष को नष्ट करने, स्वर्ग से पृथ्वी पर धकेलने का कारण थी। पृथ्वी पर प्रथम पाप एवं अपराध उसी ने किया। वर्तमान पोप जाँन पाँल के अनुसार स्त्रियाँ पुरोहित नहीं हो सकती, क्योंकि उनमें शारीरिक समानता नहीं होती। इन्हीं धारणाओं के चलते वह सदैव उपेक्षित ही नहीं घोर यंत्रणा, जुगुप्सित प्रताड़ना और वंचना की शिकार रही।

वहाँ 5वीं सदी से लेकर 20 वीं सदी कि शुरुआत तक तो यही चर्चा का विषय बना रहा कि नारी मानव है भी या नहीं। शताब्दियों के पाशविक दमन एवं यातनाओं के कारण ही पश्चिम की नारी अभी भी आत्मदैन्य, आत्मधिक्कार के तहत कभी फैशन के नाम पर स्वयं को निर्वस्त्र करती है, कभी डायटिंग के नाम पर स्वयं को भूखा मारती है। पुरुष के साथ बराबरी के नाम पर उसका व्यवहार कभी अमर्यादित तो कभी विवेक की सीमा पार कर जाता है। उसके शरीर मन व अस्तित्व पर अत्याचार घोर दमन व यातना के इतने नासूर है कि उसका पुरुष विरोधी स्वरूप स्वतंत्रता एवं अधिकारों के लिए आक्रामक संघर्ष बड़ा ही स्वाभाविक जान पड़ता है, किंतु अब वह भी अपने कर्तव्यविमुख एकांगी संघर्ष के दुष्परिणामों से परिचित होकर उसे और अधिक मानवीय रूप देने को तत्पर है। इसी करण वहाँ नारी आंदोलन अब अधिकार व बराबरी की माँगों से ऊपर उठकर विकास से भागीदारी नीति निर्धारण में भागीदारी, स्वास्थ्य, शिक्षा, समाज, कल्याण, शोषण, मुक्ति, हिंसा मुक्त समाज और युद्धरहित विश्व जैसे मानवीय पक्षों को समेट रहा है।

पश्चिम से सर्वथा भिन्न हमारे यहाँ के साँस्कृतिक एवं दार्शनिक मूल में नारी का गौरवपूर्ण एवं पुरुष से श्रेष्ठतर स्थान रहा है। मध्ययुगीन अंधेर काल के अतिरिक्त सदैव ही नारी के प्रति बराबरी एवं सम्मान का भाव रहा है। भारतीय वांग्मय में बल न स्त्री पर है न पुरुष पर, वह तो इन सबसे परे है। यहाँ तो आदिकाल से ही भगवान को देवी रूप में, माता के रूप में पूजा गया है। अर्द्धनारीश्वर जैसी परिकल्पना भी कही अन्यत्र नहीं ही मिलेगी। इसका वैज्ञानिक आधार भी स्वयं में परिपुष्ट है। भारतीय दर्शन में प्रकृति पुरुष इन दोनों तत्वों को सृष्टि का आधार माना है, केवल पुरुष को नहीं। दोनों तत्व परस्पर सहयोगी एवं पूरक है। दोनों ही एक-दूसरे के बिना अधूरे है। इस दृष्टि से समाज में नारी को दोयम दर्जा देने का कोई दार्शनिक आधार नहीं मिलता हमारे प्राचीनकाल में था भी नहीं। स्त्री यहाँ ऋषिका थी और पुरोहित भी। घर परिवार में वह गृह स्वामिनी के रूप में गृहिणी, पुरुष की अभिन्न सहचरी के रूप में अर्द्धांगिनी, गृह की श्री समृद्धि के रूप में गृहलक्ष्मी आदि अलंकारों से सुशोभित थी। कोई भी अनुष्ठान, अभियान एवं कर्म उसके बिना पूरा नहीं माना जाता था।

नारी प्रगति के वर्तमान चरण में पुरुष उसके सही दिशा में बढ़ते कदमों को गति व सहयोग न दे ऐसा कोई कारण नहीं है। 11वीं सदी के अंतिम दशकों में नारी को शताब्दियों के पारिवारिक प्रतिरोधों से मुक्त करवाने का बीड़ा राजाराममोहनराय, स्वामी दयानंद स्वामी विवेकानन्द जैसे उदारचेता सुधारकों एवं संस्कृति पुरुषों ने ही उठाया था। रवीन्द्रनाथ टैगोर, शरतचंद्र चट्टोपाध्याय, प्रेमचंद्र प्रसाद पंत, निराला, जैसे साहित्यकारों ने ‘नारी हो स्वतंत्र नारी जैसे नर’ की उद्घोषणा की थी। नारी को शक्ति और तेज की साक्षात प्रतिमा कहकर नारी जागरण का संदेश दिया था। नर-नारी के समान अधिकार की घोषणा करते हुए युगद्रष्टा कवि प्रसाद ने कहा था।

“तुम भूल गए पुरुषत्व मोह में कुछ सत्ता है नारी की समरसता है संबंध बनी, अधिकार और अधिकारी की।”

इन्हीं प्रयासों को गति दी थी, डॉ. कर्वे और महात्मा गाँधी जैसे मनस्वियों ने, जिसके परिणामस्वरूप हजारों महिलाएँ राष्ट्रीय स्वतंत्रता के अभियान में कूद पड़ी।

इक्कीसवीं सदी की नारी को समाज-नियंता बनने के लिए अपने अधिकार माँगने की नहीं, अर्जित करने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में आरक्षण की बैसाखियाँ उसे प्राथमिक चरणों में सहारा हो सकती है, किन्तु अधिक दूर तक नहीं ले जा सकती। अर्जित अधिकार ही उसका वास्तविक सहारा एवं संपत्ति होगी। जिसे कोई छीन नहीं सकता। अर्जित तेज के आगे हर किसी को झुकना पड़ता है। किन्तु अधिकारों के संघर्ष में पुरुष से बराबरी के नाम पर स्त्रियोचित गुणों एवं कर्तव्यों का बलिदान उचित नहीं है। वह ममता वात्सल्य उदारता, सहिष्णुता जैसे नारी सुलभ गुणों के कारण ही पुरुषों की सहयोगिनी ही नहीं उसकी जीवनदायिनी एवं प्रेरणाशक्ति सिद्ध हुई है। इन्हीं विशेषताओं के कारण ही उसका दर्जा पुरुषों की तुलना में श्रेष्ठ सिद्ध होता है। इसी उदात्त गुणकारी नारी के विषय में काययिनीकार प्रसाद यह कहने के लिए विवश हुए थे कि -

नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नभ पद तल में पीयूष स्रोत-सी बहा करो, जीवन के सुँदर सममतल में।

नारीमुक्ति के नाम पर उच्छृंखलता को स्वतंत्रता का पर्याय मान बैठना व स्त्रियोचित मर्यादाओं एवं आदर्शों को ताक पर रखकर उन्मुक्त आचरण करना भ्रम की मृगमरीचिका में भटकाव का दूसरा मोड़ है। आधुनिकता के नाम पर जिस पाश्चात्य सभ्यता के पीछे वह आँखें मूँदकर भाग रही है, वह कितनी खतरनाक सिद्ध हो सकती है, यह तभी ज्ञात होता है जब जारी किसी हादसे का शिकार होती है। स्वतंत्रता, नारीमुक्ति का यह अर्थ नहीं कि वह विवेक की सारी सीमाएँ तोड़कर ऐसे आगे बढ़ें कि उसका समूचा जीवन ही अंधकारमय हो जाए।

भौतिकता प्रधान इस युग में सौंदर्य की परिभाषा भी शरीर तक ही सिमट कर रह गयी है, जिसे भुनाने में बाजारू व्यवस्था कोई कसर नहीं छोड़ रही है। विज्ञापनों में इसके अश्लील एवं उत्तेजक व्यवसाय के अच्छे-खासे दर्शन किए जा सकते हैं। टी.वी. फिल्म व अन्य संचार माध्यम भी इस दौड़ में पीछे नहीं हैं। नारी को मात्र एक भोग्य वस्तु के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।

यह सब युवा पीढ़ी एवं मासूम मस्तिष्कों पर किन संस्कारों की छाप डाल रहे हैं व जीवन में किस तरह का जहर घोल रहे हैं, इसकी कल्पना कंपा देने वाली है। नई पीढ़ी को गढ़ने वाली, उसकी श्रेष्ठ संस्कार देने वाली, नारी किस तरह अपनी स्वतंत्रता मुक्ति के नाम पर उसकी जड़ों पर कुठाराघात करने वाली की भूमिका में आ गई है, इसे देखकर गहरी पीड़ा होती है। नारी को इस रूप में प्रस्तुत करने में पुरुष के अपने स्वार्थ हो सकते हैं, किन्तु यह सब बिना नारी समझौते के संभव नहीं है।

आज नारी-स्वतंत्रता के नाम पर उच्छृंखलता को स्वतंत्रता मान बैठने और अपनी देह को अधिकाधिक उत्तेजक रूप में प्रस्तुत करने एवं स्वयं को बोल्ड मानने की पाश्चात्य धारणा प्रबल है। नारी-गरिमा का यह कुत्सित एवं घातक प्रचलन तथाकथित प्रगतिशील समाज में अधिक देखा जा सकता है। यद्यपि कस्बे, गाँव-देहात भी इससे अछूते नहीं रह पाए है। इसी हवा के चलते आज युवतियों के आदर्श हॉलीवुड-बॉलीवुड की कलानेत्रियों एवं फैशन मॉडलों के दायरे में ही जा सिमटे हैं। झाँसी की रानी, सिस्टर निवेदिता जैसे आदर्शों को तो उन्होंने पिछड़ेपन एवं हीनता का पर्याय मान लिया है।

इस कुप्रचलन ने नारीसुलभ संस्कारों की जड़ों पर बुरी तरह से कुठाराघात किया है। वहीं इससे विवाह एवं परिवार संस्था भी चरमराई है। आज दाम्पत्य जीवन अविश्वास, कलह एवं अशान्ति की नरकाग्नि में झुलस रहा है। नई पीढ़ी असुरक्षित एवं भ्रमित है। इससे उबरने का उपाय यही है कि नारी भोगवादी संस्कृति के कुचक्र से मुक्त हो। स्वतंत्रता की जो अनमोल निधि उसे वर्षों के घोर संघर्ष के बाद मिली है, उसे पाश्चात्य अंधानुकरण के नाम पर दाँव पर नहीं लगाया जाना चाहिए। इस अमूल्य धरोहर को सहेज कर रखना ही उचित है। अपनी स्त्रियोचित मर्यादा एवं गरिमा के अंतर्गत उसे अपनी संस्कृतिवाही चेतना में ही उसे स्वयं की पहचान खोजनी होगी। तभी विवाह संस्था की पवित्रता एवं परिवार संस्था की गरिमा बनी रह सकेगी।

अपनी प्रगति के साथ जाग्रत नारी को लाखों पिछड़ी बहिनों को भी साथ लेकर चलना होगा। उनके दुख-दर्द को बाँटकर उन्हें भी प्रगति की राह पर चलना सिखाना होगा। उन्हें स्वास्थ्य, शिक्षा के प्रति जागरूक करना होगा। आर्थिक स्वावलंबन का पाठ पढ़ाना होगा। यदि प्रगति की दिशा में अग्रसर जाग्रत नारी इतना कर पाई तभी उसकी स्वतंत्रता मुक्ति एवं अधिकारों का संघर्ष सीधा उस लक्ष्य का संधान करेगा। जो नियति ने उसके लिए सुरक्षित रखा है। यही पर प्रतिष्ठित होकर उसे 21वीं सदी में परिवार एवं समाज ही नहीं समूची मानवजाति की निर्मात्री, भाग्यविधात्री का महिमामय दायित्व निभाना है।

First 15 17 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • हम श्रेष्ठ योद्धा की भूमिका निबाहें
  • जब जाग जाती हैं अतींद्रिय शक्तियाँ तब
  • क्या स्वप्न अचेतन का भटकाव मात्र है
  • Quotation
  • आत्मावलम्बन (Kahani)
  • सदी के अंतिम स्वतंत्रता दिवस पर करें कुछ आत्मचिंतन
  • Quotation
  • आरुणि की परीक्षा (Kahani)
  • ध्यान से बड़ा नहीं-कोई भी नशा
  • कुरूप कुबेर (Kahani)
  • लिखालिखी की है नहीं, देखादेखी बात
  • Quotation
  • वास्तुशास्त्र में ईशान कोण की महत्ता
  • Quotation
  • आत्मावलम्बी (Kahani)
  • नई सदी की भाग्य विधात्री होगी नारी
  • सूक्ष्मीकरण साधना (Kahani)
  • डरिए मत भूतों से, उनका अस्तित्व तो है ही
  • Quotation
  • आत्मा यथार्थ में पवित्र है (Kahani)
  • हँसिए-हँसाइए नहीं तो रोग आ घेरेगा
  • श्रावणी (28 अगस्त) पर विशेष - चमक उठे राष्ट्रीय स्वाभिमान का महासूर्य इस पर्व पर
  • जन हितैषी मनुष्य (Kahani)
  • बुद्धिमान मनुष्य की मूर्खता का परिणाम भोग रहे हैं हम
  • बिंदु में सिंधु समाया
  • गणेश दत्त सिंह (Kahani)
  • एक साहसिक भिड़ंत, जिसकी परिणति सुखद हुई
  • रामशास्त्री की ईमानदारी (Kahani)
  • कैसा हो हमारा आहार?
  • सच्चा विश्वास (kahani)
  • युगपुरुष की लेखनी से - पं. श्रीराम शर्मा आचार्य वांग्मय-अमृत कलश
  • VigyapanSuchana
  • युगशिल्पी अहमन्यता के विषपान से बचें
  • श्रावणी पर्व का माहात्म्य एवं प्रेरणाएँ
  • VigyapanSuchana
  • युग गीता-4 - सद्गुरु के रूप में भगवान का वरण
  • VigyapanSuchana
  • हीरक जयंती की पूर्व वेला में श्रावण का संदेश - अमृतवाणी
  • गुरु- कथामृत- 1 - ‘पाती’ जिससे इसे मिशन की नींव रखी गई
  • उत्तम संपत्ति (Kahani)
  • यह हमारे राष्ट्र की अग्निपरीक्षा का है।
  • राष्ट्रधर्म पर युगद्रष्टा का चिंतन
  • Quotation
  • संस्कार एक औषधि
  • संस्कार एक औषधि (Kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj