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Magazine - Year 1999 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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डरिए मत भूतों से, उनका अस्तित्व तो है ही

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First 17 19 Last
भूतों की सत्ता और वास्तविकता के संबंध में अब तक जो शोध अनुसंधान हुए हैं, उनसे यह बात निर्विवाद रूप से सत्य सिद्ध हो गई है कि मरने के उपरांत भी मनुष्य के अस्तित्व का सर्वथा लीप नहीं हो जाता। वह तब भी बना रहता और पुनः पुनः जन्म धारण करता है। मरने और जन्मने के इस मध्यवर्ती अंतराल में कुछ जीवात्माएं भटकती रहती और तरह तरह के उपद्रव करती है। यही भूत हैं।

प्रेतों के संबंध में अब तक जो घटनाएँ देखने-सुनने में आई हैं, उनमें से अधिकाँश रोमांचकारी एवं भयोत्पादक होती है। कई बार तो सामने वाला इनसे इतनी बुरी तरह भयाक्रान्त होता है कि पागल होने से लेकर मृत्यु तक की घटनाएँ घटती देखी जाती है। इसमें प्रेत की उतनी भूमिका नहीं जितनी स्वयं के हीन मनोबल की होता है। अधिकतर मामलों में दुर्घटना भयवश घटती है।

आए दिन इस प्रकार के प्रसंग प्रकाश में आते रहते हैं। एक घटना स्पेन की है। कोरडोबा शहर के निकट बेलमेज के समीप के एक गाँव में एक वृद्ध महिला रहती थी। एक दिन वह अपने चार वर्षीय पौत्र के साथ अपने भोजनालय में कुछ कर रही थी। इतने में लड़के की तेज चीख निकल गई। वृद्ध ने चौंकते हुए उसकी ओर देखा और करण जानना चाहा। भयभीत बालक ने अंगुली के इशारे से फर्श की ओर संकेत किया। दृष्टि वहाँ पड़ते ही वह बुढ़िया भी डर गई। गुलाबी ईंटों से बने फर्श में एक दुखी और संतप्त चेहरे की आकृति झाँक रही थी। पहले तो उसने इसे आँखों का भ्रम माना, पर बार-बार आँखें मलने पर भी जब वह ज्यों की त्यों बनी रही, तो सोचा कि शायद चलने फिरने से रगड़वश मुखाकृति जैसा आकार उभर आया हो। उसने उसे घिसकर मिटाना चाहा, किंतु उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा, जब देखा कि रगड़ने से मिटने के स्थान पर चेहरा और अधिक सुस्पष्ट होता गया। उसमें विवाद और उदासी की रेखाएँ और गहराती चली गई। अब वह अंदर से बुरी तरह डर गई और कुछ अनहोनी की आशंका से तत्काल वहाँ से बाहर निकल गई। मकान मालिक को सूचित कर अविलम्ब बुलवाया गया। संपूर्ण वृत्तांत सुनने के बाद उसने ईंटों का फर्श उखड़वाकर कंक्रीट का फर्श बनवा दिया। चार दिन में वह बनकर तैयार हो गया। वृद्धा अब निश्चित थी कि उस अप्रिय प्रसंग से मुक्ति मिली, लेकिन तभी तीन सप्ताह भी नहीं बीते थे कि वह विपदा पुनः आ धमकी। इस बार भिन्न मुखाकृति थी। स्थानीय पुलिस को इसकी सूचना दी गई। उन्होंने वहाँ की जमीन खुदवाई, तो एक मध्ययुगीन कब्र के अवशेष मिले। अब रसोईघर के सम्पूर्ण फर्श पर एक के बाद दूसरी और फिर समूह में आकृतियाँ उभरने लगी। इसके पश्चात् उसे ताला लगाकर सील कर दिया गया। अब दूसरे कमरे में चार अन्य आकृतियाँ उभरी। पड़ताल कर्ताओं ने तब कुछ अति संवेदनशील माइक्रोफोन वहाँ लगाए। यह जानकर उन्हें अचंभा हुआ कि यंत्रों ने कुछ ऐसी कर्णातीत ध्वनियाँ रिकार्ड की है, जिनमें तड़पनयुक्त विलाप के साथ-साथ अजनबी भाषा में वार्तालाप भी थे। कुछ दिन उपरांत उनका यह उपद्रव आश्चर्य जनक ढंग से शाँत हो गया। वे जिस प्रकार अकस्मात् प्रकट हुई थी, वैसे ही अचानक गायब भी हो गई, किन्तु यह अब तक नहीं जाना जा सका कि इसके पीछे उनका प्रयोजन क्या था?

सूरा स्थिति रोमन राजदूत प्लीनी ने अपने अभिलेखों में एथेंस स्थित एक ऐसे भुतहे मकान की चर्चा की है, जो प्रेत के उत्पातों के लिए कुख्यात था। प्रसिद्ध रोमन दार्शनिक एथेनोडोरस ने भी अपनी रचनाओं में यत्र-तत्र उसका उल्लेख किया है। वे स्वयं भी उसके उपद्रवों को देख चुके थे। एक बार जब वे उस मकान में गए, तो देखा कि एक प्रेत भारी-भरकम जंजीर खींच रहा है। थोड़ी देर उसे इधर-उधर खींचने के पश्चात् वह आँगन में एक स्थान पर आकर खड़ा हो गया। इसके उपरांत देखते-देखते अदृश्य हो गया। उस स्थान की उन्होंने पहचान कर ली और अगले दिन वहाँ खुदाई करवायी। खुदाई में जंजीरों में जकड़ा एक कंकाल मिला। उसका धार्मिक रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार कर देने के बाद फिर वह प्रेत वहाँ कभी नहीं दिखाई पड़ा। कदाचित उसकी मुक्ति हो गई हो।

लंदन टावर, जो कि सदियों से अगणित रक्तपात का साक्षी रहा है, वह भी प्रेतों के कारनामों से अछूता नहीं है। वहाँ जिस महिला का प्रेत अधिकतर देखा जाता है, वह है -एनी बोलेन का। एनी हेनरी अष्टम की पत्नी थी, जो लंदन के इसी दुर्ग में कैद कर ली गई थी और बाद में वही सन् 1836 में उसे फाँसी दे दी गई। तब से अब तक वह समय समय पर कभी लंदन दुर्ग में, तो कभी संट पीटर एड विक्युलर के प्रार्थनालय में दिखाई पड़ती है। उल्लेखनीय है कि उसकी कब्र यहीं पर है। संभवतः वह अभी भी भटक ही रही है। अभी विगत कुछ वर्ष पूर्व की ही एक घटना है। एक रात प्रार्थनालय का पहरेदार वहाँ एक तीव्र प्रकाश देखकर चौंक पड़ा। कारण जानने के लिए जब उसने कमरे की खिड़की से बाहर निहारा, तो दंग रह गया। उस प्रकाश में एक जुलूस वहाँ से धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था, जिसका नेतृत्व स्वयं एनी कर रही थी। कुछ क्षण बाद दृश्य तिरोहित हो गया। अब न तो वहाँ कोई रोशनी थी, न भीड़ ही। प्रार्थनालय ने निविड़ अंधकार व्याप्त था।

एक अन्य अवसर पर वह लंदन दुर्ग में दिखाई पड़ी। यह 1864 की बात है। एक रात वहाँ का संतरी पहरा देते हुए मूर्च्छित हो गया, उस पर आरोप यह लगा कि वह सुरक्षा ड्यूटी के दौरान सो जाता है। उसका कोर्टमार्शल हो गया। उसमें अपनी ओर से सफाई देते हुए कहा कि वह वास्तव में सोया नहीं, बेहोश हो गया था। इसके पश्चात् उसने रात्रि का संपूर्ण वृत्तांत कह सुनाया। उसका कहना था कि पहरा देते समय उसने एक श्वेत वस्त्रधारी आकृति देखी। वह किले में इधर-उधर घूम रही थी। उसने एक अनूठे ढंग की टोपी पहन रखी थी। विचित्र बात यह थी कि उस टोपी के नीचे उसका सिर गायब था। पहले तो उसने उसे ललकारा, पर आकृति पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह यथावत घूमती रही। संतरी ने कई आवाजें लगाई, लेकिन हर बार उस ओर से अपेक्षा होते वह उसके समीप पहुँचा और संगीन उसके शरीर में अंदर तक घुसा दिया। इसके साथ ही एक लपलपाती ज्वाला उसकी ओर तेजी से बढ़ी। फिर उसे कुछ भी ज्ञात नहीं कि क्या हुआ। वह संज्ञाशून्य बनकर गिर पड़ा। अधिकारियों ने जब देखा, तब वह इसी स्थिति में पड़ा हुआ था। दूसरी रात उसके इस कथन की जाँच की गई, जिसमें वह सत्य साबित हुआ और उसे बरी कर दिया गया।

कई अवसरों पर एनी अपने बचपन के नाँरफाँर स्थित मकान में भी उपस्थित हो जाती थी। उसे जब-जब वहाँ देखा गया, तब-तब वह एक भूतही गाड़ी में सवार थी। अनेक बार लंदन टावर में अभियुक्तों के फाँसी के दौरान भी वह अपनी विद्यमानता दर्शा जाती। अंतिम बार उसको बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में देखा गया।

मार्टिन दुर्ग से भी कुछ इसी प्रकार के प्रसंग जुड़े हुए हैं। एडवर्ड स्वीफ्टे वहाँ के आभूषण कक्ष का रक्षक था। वह परिवार सहित मार्टिन टावर में ही रहता था। एक बार बज वे लोग भोजन कर रहे थे, तो खाने की मेज़ के ऊपर काँच की एक मोटी नली मंडराती दिखलाई पड़ी। उसमें नीला-श्वेत द्रव भरा हुआ था। एडवर्ड ने जब उसे पकड़ने की कोशिश की, तो हाथ से छिटककर वह दूर जा गिरा और फर्श से टकराकर चकनाचूर हो गया। अंदर का द्रव जमीन पर फैलकर उसे नीली बना दिया। एडवर्ड कुर्सी से उठकर जब वहाँ पहुँचा, तो वह ठगा सा रह गया। वहाँ न तो काँच का कोई टुकड़ा था न कोई रंगीन द्रव। वह इसे आँखों का भ्रम भी मानने को तैयार नहीं, कारण कि धोखा किसी एक को हो सकता है, पूरे परिवार को नहीं। अंततः उसे भूत का उपद्रव मान लिया गया, जो अक्सर वहाँ होता रहता था।

कुछ दिन बाद एक अन्त संतरी ने देखा कि जवाहरात कक्ष में बगल के कमरे से एक भालू चला आ रहा है। वह अभी दरवाजे के करीब ही था कि पहरेदार उस पर झपटा और अपना संगीन दे मारा, पर उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा, जब उसने देखा कि उसकी संगीन दरवाजे की लकड़ी से जा टकराई और वहाँ कुछ भी नहीं है। अभी वह इसी उधेड़बुन में था कि एक जो का अट्टहास सुनायी पड़ा। वह बुरी तरह घबरा गया और डरकर बाहर की ओर भागा। थोड़ी देर में सब कुछ सामान्य हो गया।

ऐसे ही एक अनुभव का उल्लेख करते हुए ब्रिटेन के नेशनल लेबोरेट्री ऑफ साइकिकल रिसर्च के संस्थापक एवं प्रेत प्रसंगों के अनुसंधानकर्ता हैरी प्राइस कहते है कि एक बार वे अपनी टीम के साथ प्रयोगशाला में प्रवेश कर रहे थे, तो उन्होंने वहाँ के तापमान में अत्यधिक गिरावट महसूस की। नापने पर ज्ञात हुआ कि अंदर का तापमान बाहर से दस डिग्री कम था। यह बहुत ही आश्चर्यजनक और हैरानी वाली बात थी, कारण कि कमरे के भीतर का तापक्रम हमेशा बाहर की तुलना में कुछ ज्यादा ही होता है, किन्तु यहाँ तो बात बिलकुल उलटी थी। वे इस बारे में अभी विचार कर ही रहे थे कि प्रयोगशाला में अगरबत्ती जलने जैसी खुशबू आने लगी। इसके साथ ही पत्थरों और साबुन की टिकियाओं की बौछार शुरू हो गई। पुस्तकें इधर से उधर स्वतः होने लगी। आए दिन होने वाले इस प्रकार के उत्पातों से परेशान होकर हैरी प्राइस ने एक दिन एक सयाने को बुलाया। वह उपद्रव शाँत करने के लिए अपना ताँत्रिक उपचार कर ही रहा था कि एक पत्थर उसके सिर पर आकर लगा। खून का फव्वारा फूट पड़ा और वह अपना कर्मकाँड अधूरा छोड़कर ही वहाँ से चला गया।

लंदन के भूतहे इतिहास में 50, बर्कले स्क्वायर का मकान सबसे दुर्भाग्यशाली सिद्ध हुआ है, कारण कि वहाँ ठहरने वालों में से अधिकाँश की या तो मौत हो गई या फिर वे पागल हो गए, इसलिए वहाँ के उपद्रवों के बारे में कुछ ठीक-ठीक नहीं जाना जा सका है। अब तक केवल एक ही व्यक्ति वहाँ से सुरक्षित निकल सका, वह है-रॉबर्ट मार्टन। वह अपना लोमहर्षक अनुभव सुनाते हुए कहता है कि उस रात जब वह और उसका मित्र एडवर्ड ब्लेडेन उक्त मकान की ऊपरी मंजिल के एक कमरे में पहुँचे तब सब कुछ सामान्य था। मकान चूँकि बिकाऊ और खाली था, अतः उन्होंने ऊपरी मंजिल का उक्त कमरा, जो कि तनिक साफ-सुथरा था, उसमें अपने बिस्तर लगा लिए। मार्टिन अधिक थका हुआ था, अस्तु जल्द ही उसे नींद आ गई, पर वहाँ की असामान्य गतिविधियों के कारण एडवर्डग की नींद न आ सकी। इसी बीच अपने कमरे की ओर आते हुए कुछ अज्ञात कदमों की आहट उसे सुनाई पड़ी। वह भयभीत हो गया और मार्टिन को जगाया। थोड़ी ही देर में धीरे से कमरे का दरवाजा खुला और उसमें एक विचित्र आकृति अंदर आती दिखाई पड़ी। दोनों चीख पड़े और बाहर भागने का प्रयास करने लगे। मार्टिन उसे धक्का देकर बाहर निकल गया, पर एडवर्ड कदाचित उसकी पकड़ में आ गया और भाग न सका। जल्द ही जब मार्टिन एक पुलिस वाले के साथ वहाँ आया, तो एडवर्ड की मौत हो चुकी थी। शरीर क्षत-विक्षत अवस्था में पड़ा था और गर्दन टूटी हुई थी। दोनों ने मिलकर सारे कमरों की छानबीन की, पर वहाँ कोई भी नहीं मिला।

प्रेत कई बार परोपकारी प्रवृत्ति वाले भी होते है और सताने की जगह लोगों की सहायता करते हैं। ऐसी ही एक घटना टेली सैवेलेस के साथ घटी। वह एक टी.वी. कलाकार था। एक रात्रि न्यूयार्क के लाँग आइलैण्ड नामक ग्रामीण क्षेत्र से गुजर रहा था कि गाड़ी का पेट्रोल समाप्त हो गया। तब रात का तीसरा प्रहर खत्म हो रहा था। वह एक किलोमीटर दूर पेट्रोल पम्प की ओर बढ़ ही रहा था कि किसी ने पीछे से आवाज लगाई कि उस लिफ्ट तो नहीं चाहिए? मुड़कर देखा तो पास ही एक फोर्ड कार खड़ी थी। वह उसमें बैठ गया। गाड़ी वाले ने उसे पेट्रोल पंप तक छोड़ दिया और कुछ पैसे भी दिए, ताकि पेट्रोल खरीद सके। पैसा लौटाने के लिए उसने उसका पता ले लिया। कुछ दिन बाद जब सैवेलेस ने उक्त पते पर फोन किया, तो दूसरी ओर एक महिला मिली। हैरी एगेनिस नामधारी उक्त व्यक्ति के बारे में जब उससे पूछताछ की, तो उसने कहा कि वह मेरे पति हैं, किन्तु अब वे इस दुनिया में नहीं रहे। तीन वर्ष पूर्व उनका देहांत हो चुका है। बाद में उस कागज के टुकड़े को भी सैवेलेस ने उसकी पत्नी को दिखाया, जिसमें एगेनिस ने स्वयं अपना पता लिखा था। उसकी पत्नी ने स्वीकार किया कि यह उसके पति की ही लिखावट है। जब पोशाक की चर्चा की, तो उसने बताया कि इसी ड्रेस में उन्हें दफनाया गया था। यह सुनकर सैवेलेस को रोमांच हो आया कि उसकी भेंट एक प्रेत से हुई थी। इस प्रकार की कितनी ही घटनाओं का वर्णन नीजेल ब्लंडेन ने अपनी रचना ‘दि वर्ल्डस ग्रेटेस्ट मिस्ट्रीज’ में किया है।

प्रेत वास्तव में भटकती आत्माएँ हैं। जो इच्छाएँ और कामनाएँ मनुष्य जीवित रहते पूरी नहीं कर पाता, वह मरणोत्तर जीवन में पूर्ण करने का प्रयास करता और इसी क्रम में भटकता रहता है। यदि हम स्वल्प में संतोष करें और आनंदपूर्वक जीवन जीना सीख लें, तो शायद हमारा मरणोत्तर जीवन सुधर जाए - ऐसा परलोक विद्या के आचार्यों का कथन है।

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