• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • हम श्रेष्ठ योद्धा की भूमिका निबाहें
    • जब जाग जाती हैं अतींद्रिय शक्तियाँ तब
    • क्या स्वप्न अचेतन का भटकाव मात्र है
    • Quotation
    • आत्मावलम्बन (Kahani)
    • सदी के अंतिम स्वतंत्रता दिवस पर करें कुछ आत्मचिंतन
    • Quotation
    • आरुणि की परीक्षा (Kahani)
    • ध्यान से बड़ा नहीं-कोई भी नशा
    • कुरूप कुबेर (Kahani)
    • लिखालिखी की है नहीं, देखादेखी बात
    • Quotation
    • वास्तुशास्त्र में ईशान कोण की महत्ता
    • Quotation
    • आत्मावलम्बी (Kahani)
    • नई सदी की भाग्य विधात्री होगी नारी
    • सूक्ष्मीकरण साधना (Kahani)
    • डरिए मत भूतों से, उनका अस्तित्व तो है ही
    • Quotation
    • आत्मा यथार्थ में पवित्र है (Kahani)
    • हँसिए-हँसाइए नहीं तो रोग आ घेरेगा
    • श्रावणी (28 अगस्त) पर विशेष - चमक उठे राष्ट्रीय स्वाभिमान का महासूर्य इस पर्व पर
    • जन हितैषी मनुष्य (Kahani)
    • बुद्धिमान मनुष्य की मूर्खता का परिणाम भोग रहे हैं हम
    • बिंदु में सिंधु समाया
    • गणेश दत्त सिंह (Kahani)
    • एक साहसिक भिड़ंत, जिसकी परिणति सुखद हुई
    • रामशास्त्री की ईमानदारी (Kahani)
    • कैसा हो हमारा आहार?
    • सच्चा विश्वास (kahani)
    • युगपुरुष की लेखनी से - पं. श्रीराम शर्मा आचार्य वांग्मय-अमृत कलश
    • VigyapanSuchana
    • युगशिल्पी अहमन्यता के विषपान से बचें
    • श्रावणी पर्व का माहात्म्य एवं प्रेरणाएँ
    • VigyapanSuchana
    • युग गीता-4 - सद्गुरु के रूप में भगवान का वरण
    • VigyapanSuchana
    • हीरक जयंती की पूर्व वेला में श्रावण का संदेश - अमृतवाणी
    • गुरु- कथामृत- 1 - ‘पाती’ जिससे इसे मिशन की नींव रखी गई
    • उत्तम संपत्ति (Kahani)
    • यह हमारे राष्ट्र की अग्निपरीक्षा का है।
    • राष्ट्रधर्म पर युगद्रष्टा का चिंतन
    • Quotation
    • संस्कार एक औषधि
    • संस्कार एक औषधि (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • हम श्रेष्ठ योद्धा की भूमिका निबाहें
    • जब जाग जाती हैं अतींद्रिय शक्तियाँ तब
    • क्या स्वप्न अचेतन का भटकाव मात्र है
    • Quotation
    • आत्मावलम्बन (Kahani)
    • सदी के अंतिम स्वतंत्रता दिवस पर करें कुछ आत्मचिंतन
    • Quotation
    • आरुणि की परीक्षा (Kahani)
    • ध्यान से बड़ा नहीं-कोई भी नशा
    • कुरूप कुबेर (Kahani)
    • लिखालिखी की है नहीं, देखादेखी बात
    • Quotation
    • वास्तुशास्त्र में ईशान कोण की महत्ता
    • Quotation
    • आत्मावलम्बी (Kahani)
    • नई सदी की भाग्य विधात्री होगी नारी
    • सूक्ष्मीकरण साधना (Kahani)
    • डरिए मत भूतों से, उनका अस्तित्व तो है ही
    • Quotation
    • आत्मा यथार्थ में पवित्र है (Kahani)
    • हँसिए-हँसाइए नहीं तो रोग आ घेरेगा
    • श्रावणी (28 अगस्त) पर विशेष - चमक उठे राष्ट्रीय स्वाभिमान का महासूर्य इस पर्व पर
    • जन हितैषी मनुष्य (Kahani)
    • बुद्धिमान मनुष्य की मूर्खता का परिणाम भोग रहे हैं हम
    • बिंदु में सिंधु समाया
    • गणेश दत्त सिंह (Kahani)
    • एक साहसिक भिड़ंत, जिसकी परिणति सुखद हुई
    • रामशास्त्री की ईमानदारी (Kahani)
    • कैसा हो हमारा आहार?
    • सच्चा विश्वास (kahani)
    • युगपुरुष की लेखनी से - पं. श्रीराम शर्मा आचार्य वांग्मय-अमृत कलश
    • VigyapanSuchana
    • युगशिल्पी अहमन्यता के विषपान से बचें
    • श्रावणी पर्व का माहात्म्य एवं प्रेरणाएँ
    • VigyapanSuchana
    • युग गीता-4 - सद्गुरु के रूप में भगवान का वरण
    • VigyapanSuchana
    • हीरक जयंती की पूर्व वेला में श्रावण का संदेश - अमृतवाणी
    • गुरु- कथामृत- 1 - ‘पाती’ जिससे इसे मिशन की नींव रखी गई
    • उत्तम संपत्ति (Kahani)
    • यह हमारे राष्ट्र की अग्निपरीक्षा का है।
    • राष्ट्रधर्म पर युगद्रष्टा का चिंतन
    • Quotation
    • संस्कार एक औषधि
    • संस्कार एक औषधि (Kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1999 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


यह हमारे राष्ट्र की अग्निपरीक्षा का है।

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 40 42 Last
जिस समय ये पंक्तियाँ लिखी जा रही हैं, भारत की सीमा पर दुश्मन की छल भरी घुसपैठ से हमारे रणबाँकुरे पंद्रह हजार से अठारह हजार फीट की ऊँचाई पर डटकर मोर्चा ले रहे है। नगाधिराज हिमालय जो इस बृहत्तर भारत का मुकुट है, कभी तपश्चर्या की स्थली था, उसकी बर्फीली चोटियाँ इस भारतभूमि का श्रृंगार करती थीं। आज वे रक्तरंजित है। एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत विघटनकारी ताकते जुटी हुई हैं। स्वर्ग जैसे हमारे कश्मीर क्षेत्र में अतिक्रमण करने को, न केवल वे भारत सीमा में प्रवेश कर हमारे योद्धा सैनिकों को धोखे से मारने का पाप कर चुकी है जेहाद के नाम पर उन्होंने युद्धोन्माद को चरम परिणति पर पहुँचा दिया है। कारगिल, दरास बटालिया, सियाचिन, लेह आदि क्षेत्रों से हमारे विघटित चीन व पाक में बाँटे आधे-अधूरे कश्मीर व लद्दाख क्षेत्र की उत्तरी सीमाओं की रक्षा की जाती है। हमारे सीमाओं की रक्षा की जाती है। हमारे नागरिक व सैनिक इन चोटियों से लगे राष्ट्रीय राजमार्ग एक से श्रीनगर से लेह की यात्रा करते हैं, इसी से पर्यटक भी जाते है। व रसद तथा खाद्य आदि भी इसी मार्ग से जाती हैं इसी मार्ग राजमार्ग पर विगत कई वर्षों से पाकिस्तान हमले करता रहा हैं। ताकि इस क्षेत्र के नागरिक पलायन कर जाएँ। किन्तु हमारे सैनिकों ने बहादुरी के साथ लड़कर प्रायः उन सभी स्थानों को मुक्त कराने में सफलता पाई हैं, जो हमारी नियंत्रण सीमारेखा के भीतर दुश्मन के अवैध कब्जे में थे।

जब भारत-पाक दोनों विगत वर्ष ही परमाणु बमों का परीक्षण कर चुकें हों, तब आशंका होती है। कि कहीं यह स्थिति नियंत्रण से बाहर हो एक विनाशकारी व विध्वंसकारी महायुद्ध में संभवतः तीसरे विश्वयुद्ध स्वाभाविक है क्योंकि भविष्यवक्ताओं के पूर्व कथन भी कुछ ऐसे ही बात कहते आए है। साधनाकाल का एक बड़ा ही महत्वपूर्ण मोड़ है यह। ऐसे में दक्षिण एशिया का प्रस्तुत महायुद्ध अब मात्र छिटपुट छापामार लड़ाई तक ही सीमित नहीं रह गया हैं। इसका भावी स्वरूप एवं विश्व समुदाय पर इसके परिणाम निश्चित ही अति महत्वपूर्ण होंगे, यह भली−भाँति समझ लिया जाना चाहिए।

युद्धोन्माद का वातावरण जब भी बनता है, यह प्रगति की दिशा में अग्रसर विश्वभर के मानव समुदाय के लिए न केवल एक अवरोध का काम करता, एक अनिश्चितता, आशंका तनावभरी सामूहिक मन स्थिति को भी जन्म देता है। इसी सदी के आरम्भ से हम सब युद्ध झेलते रहे हैं- छोटे या बड़े। प्रथम विश्वयुद्ध (1914.18) से लेकर खाड़ी युद्ध (1990.91) तक ग्यारह युद्धों में करीब तीन लाख अरब रुपये स्वाहा हो चुके हैं। इसमें दो विश्वयुद्धों में खर्च राशि प्रायः दो लाख अरब रुपये है। इस बीच विश्वभर में हुए आंतरिक छिटपुट स्तर के झगड़ों आदि में करीब साज हजार अरब रुपयों को होली जल चुकी है। इस विशाल हानि को देखते हुए सोचना चाहिए कि क्या वास्तव में युद्ध जरूरी है?

युद्ध का मूल आधार घृणा है, गाँधी व गौतम बुद्ध के सिद्धांतों के विपरीत हिंसा हैं। बावजूद इस भयावह परिणति की जानकारी के मानव ने युद्ध का आज तक कोई भी विकल्प न विकसित किया है, न उसका कोई प्रयास ही किया न विकल्प की आवश्यकता को स्वीकार किया है। हम जिस समय में जी रहे है। उसमें युद्ध से बेखबर रह कंदराओं में बैठ जाना, तटस्थ रहने का प्रयास करना नितांत असंभव है। आज का यह युद्ध लड़ा तो कश्मीर की उत्तर की पहाड़ियों पर जा रहा है, पर प्रतिक्षण- प्रतिपल हम सब को प्रभावित कर रहा है। हर आने वाली खबर के साथ, जो टेलीविजन या रेडियो पर आती हैं, हर उस बुलावे के साथ जो सैनिकों को रणभूमि की तैयारी का आमंत्रण देती है, हर उस आहट के साथ जो अपने साथ खबर लिए आती है कि आज कितने रणबाँकुरे मोर्चे पर शहीद हो गए एवं हर उस वृत्तांत के साथ जो उन रणबाँकुरे परिवारों से जुड़ा अख़बार के पन्नों पर रंगा आता, हमारे हृदय को विदीर्ण करता चला जाता है। हम सभी प्रभावित हो रहे हैं। ऐसे में हमारा कर्तव्य क्या हों?

परमपूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने वांग्मय क्र. 64 के पृष्ठ 5ण्65 पर लिखा है - क्या हमारे उचित होगा कि आक्रमणों को चुपचाप आँखें बन्द करके देखते रहें? अख़बार में खबरें मात्र पढ़ लेने से संतुष्ट हो जाएँ अथवा यह सोचे कि लड़ाई का काम फौजी सिपाहियों का है, वे जाने उनका काम जाने, हम क्या कर सकते हैं? ऐसा सोचता किसी भी प्रकार से उचित न होगा, क्योंकि अब युद्ध केवल सैनिकों के माध्यम से नहीं लड़े जाते। इस जमाने में गोला-बारूद से ही विजय प्राप्त नहीं होती वरन् युद्धरत देशों के हर नागरिक को लड़ाई में अपना योगदान देना होता है। इसी योगदान के ऊपर अंतिम हार-जीत निर्भर रहती है। देशभक्ति की भावनाओं से ओत−प्रोत नागरिक भी आज के जमाने में युद्ध मोर्चे पर लड़ने वाले सैनिकों की तरह ही महत्वपूर्ण सिद्ध होते है।

इसी प्रकार पूज्यवर ने अपने अन्दर एक हिला देने वाली लेखनी से ‘ अखण्ड ज्योति’ (1962) के दिसम्बर अंक के पृष्ठ 51 पर लिखा था- “असत्य सदा हारता है। अन्याय की अंत में पराजय होती है। इतिहास साक्षी हैं कि अनेक नृशंस आततायी अपने-अपने समय में कुछ दिनों के लिए आतंक उत्पन्न कर सकें हैं, पर अंत में उनका पाप और अन्याय उन्हें ही खा गया है। दूसरे देशों पर आधिपत्य जमाने और शोषण करने की साम्राज्यवादी नीति में कोई सफल नहीं हो सकेगा। हिटलर, सिकंदर नेपोलियन कहाँ सफल हुए थे। राष्ट्र रक्षा के कार्यों में हममें से हर एक को एक मन होकर जुट जाना चाहिए। परस्पर विरोध उत्पन्न करने वाली चर्चाएँ इस समय बन्द रहनी चाहिए। इसी में देश व राष्ट्र का भविष्य उज्ज्वल है।

अपने समय में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में श्रीराम मत्त नाम से प्रख्यात परमपूज्य गुरुदेव का चीन युद्ध के समय राष्ट्र के नागरिकों के प्रति यह आह्वान बताता है कि धर्मतंत्र के पुरोधा होते हुए भी वे राष्ट्रधर्म के प्रति कितने सजग थे। उपर्युक्त दोनों उद्धरण ने केवल उन्हें एक युगद्रष्टा-राष्ट्र संत के रूप में स्थापित करते हैं इस समय युगधर्म क्या हैं इस संबन्ध में हमारा सही-सही मार्गदर्शक भी करते है।

आज जो भी प्रत्यक्ष जगत में घट रहा है। उसकी पृष्ठभूमि परोक्ष जगत में काफी पूर्व बन चुकी थी एवं सभी एक मत से यह अब स्वीकार कर रहे है। कि अदृश्य जगत की हलचलें ही स्थूल दृश्यमान जगत के सो क्रिया–कलापों का निर्धारण करती है प्रस्तुत समय विषम ही नहीं विषमतम हैं एवं संक्रमण काल की पराकाष्ठा का समय है। इस अवधि के कितनी ही उथल पुथल होने की संभावनाएँ है। समस्त विश्व को नया प्रकाश देने और सृजनात्मक प्रवृत्तियों को अग्रगामी बनाने हेतु नियति द्वारा निर्धारित भारतवर्ष को इस संघर्ष से क्यों जूझना पड़ रहा है, यह जानना हो तो परोक्ष को व समय विषमता को समझना होगा। यही नहीं, इन दिनों सौर लपटों की बढ़ती प्रखरता एवं सौर−कलंकों की बाढ़ भी यही बताती है कि विश्व के लिए यह आगामी डेढ़ वर्ष की अवधि बड़ी निर्णायक सिद्ध होगी।

जो भी कुछ हो युद्ध की मानसिकता कोई बड़े सर्वनाश का रूप ले, इससे पूर्व एक सशक्त मुहिम चलाना पूरी दुनिया की जिम्मेदारी है। प्रश्न मात्र यह नहीं कि कारगिल की रक्षा होनी हैं, रक्षा पूरी की मनुष्य-जाति की होनी है। भारत की इस वर्तमान माहौल में विजय इस तथ्य पर निर्भर करती है कि वह युद्ध की पोषक मानसिकता और उस मानसिकता का फैलाव करने वाली प्रवृत्तियों के खिलाफ किस तरह अपनी रणनीति बनाता है।

युद्ध युद्ध है। यह एक मनुष्य के मन में दूसरे के प्रति, एक जाति के अंतस् में दूसरी जाति के प्रति, एक संप्रदाय के मन में दूसरे के प्रति तथा एक देश के मन में दूसरे देश के प्रति नफरत के रूप में बिना थमे सतत् जारी रहता है। यही युद्ध अंततः प्रत्यक्ष रूप में हथियारों के युद्ध के बदल जाता है। ये हथियार पुराने जमाने की, आमने सामने की लड़ाई की तरह नहीं आज कंप्यूटर चालित अत्याधुनिक यंत्रों द्वारा लड़े जाते है। जैविक वैचारिक एवं रासायनिक स्तर पर भी युद्ध अब होने लगे हैं। उद्देश्य यही होता है कि विजय किसी भी कीमत पर हो। पर्यावरण से लेकर लोकजीवन पर इसका क्या प्रभाव हो रहा है यह चिंता न हुक्मरानो को होती है, न तथाकथित महाशक्तियों को। परमाणु बम की नागासाकी-हिरोशिमा वाली विभीषिका के बावजूद आज हम उसी भवितव्यता के द्वार पर खड़े हैं कि कब कोई तानाशाह सिपहसालार, सेनापति अपने विवेक दे जिससे तबाही कुछ ही क्षणों में अंजाम लेती दीखने लगे। हमारे राष्ट्र ने परमाणु परीक्षण महाशक्तियों को चुनौती देने के किया था जो अपनी बपौती सारी विश्ववसुधा पर मानती थीं। किन्तु बदले में अपनी सारी जनता पर करोड़ों का कर्ज लादकर, उन्हें भूखा मरने छोड़कर हमारे दुश्मन राष्ट्र ने क्या सोचकर परीक्षण किया यह परिणाम निकालना कठिन नहीं होगा। भस्मासुर की तरह से सब कुछ मिटा देने को संकल्पित हमारा पड़ोसी राष्ट्र जिस तरह से वर्तमान छल युद्ध लड़ रहा है, इससे दिनोंदिन यह आशंका बढ़ती जा रही है कि बंदर के हाथ लगी तलवार कहीं चल न जाए।

इस युद्ध के दौरान कूटनीतिक दृष्टि से भारत ने एक विजय निश्चित हासिल की है कि उसने अपने पड़ोसी राष्ट्र को अलग-थलग कर एक प्रकार से उस पर मानसिक दबाव बना व बढ़ा दिया है किन्तु सारी महाशक्तियों की कथनी-में अन्तर इतना अधिक है कि यह उल्लास कब तक बना रहे, कुछ कहा नहीं जा सकता। इन्हीं दिनों जब सब राष्ट्रों के बयान पाकिस्तान को अपने कदम पीछे हटाने के लिए आ रहे थे, तभी उस महाशक्ति द्वारा आधुनिकतम पनडुब्बियाँ व विमानों का बेड़ा दिए जाने जा सकता है कि यह सौदा पूर्व से चला रहा था, उसकी परिणति अभी हुई है, पर क्या इसे दबाव डालने के लिए कुछ दिन आगे नहीं बढ़ाया जा सकता था।

थोड़ा आँकड़ों की भाषा में देखें तो ज्ञात होता है कि (1) सारे विश्व का रक्षाव्यय तकरीबन प्रतिवर्ष चालीस हजार अरब रुपये है। इसमें से मष्य और दक्षिण एशिया का रक्षा व्यय आठ सौ तीस अरब रुपये प्रतिवर्ष है, जो कि लगभग 2 प्रतिशत के बराबर होता है। (2) जहाँ अमेरिका प्रति व्यक्ति 1018 मिलियन डॉलर खर्च करता है। वहाँ चीन लगभग तीस मिलियन डॉलर इजराइल 1917 फ्राँस 708 ब्रिटेन 611, सं अरब अमीरात 978 सउदी अरब 1071 रूस 434 पाकिस्तान 26 एवं भारत 13 मिलियन डॉलर प्रति व्यक्ति खर्च करते है। इससे पता लगता है कि हर देश की प्राथमिकताएँ क्या हैं। (3) दोनों विश्वयुद्धों के बाद सशस्त्र संघर्षों में 1945 से 1994 के बीच प्रायः दो करोड़ लोग मारे जा चुके है। यह संख्या प्रथम व द्वितीय विश्वयुद्ध में मारी गई विराट जनहानि एवं विगत चार वर्षों में सर्बिया हर्जगोविना-कोसोवों गृहयुद्ध में मारे-विस्थापित व्यक्तियों के अतिरिक्त है। (4) महाशक्तियों की अर्थ व्यवस्था हथियारों की बिक्री पर प्रायः अस्सी प्रतिशत टिकी हुई है। इतनी भयावह जानकारी के बाद क्या यह माना जाए कि अब तीसरे विश्वयुद्ध की भूमिका बन रही है लगता यह है कि नियति यह चाहती है समस्त मानव समुदाय सबक ले एवं इस डेढ़ वर्ष की उथल-पुथल के बाद नई सदी में नई विश्वसभ्यता का नए सिरे से निर्माण करे। इसीलिए यह महाविनाशक युद्ध होने की संभावना नहीं के बराबर है। कश्मीर जो भारत का अविभाज्य अंग रहा है एवं जिनका एक भाग पाकिस्तान ने तो दूसरा अक्साई क्षेत्र चीन ने हड़प रखा है, किसी भी स्थिति में आजाद होकर अखण्ड भारत का एक अंग बनेगा एवं पड़ोसी राष्ट्र तीन टुकड़ों में विभाजित हो, बृहत्तर भारत का एक अंग बनेगा। यह भवितव्यता काफी पूर्व से लिखी जाती रही हैं, अब इसके साकार होने का समय आ गया है। कैसे यह होगा, यह सारा विश्व देखेगा पर भारत के मुकुटमणि से खिलवाड़ का यह दंड तो नियति के अनुसार पड़ोसी राष्ट्र को भुगतना ही होगा, क्योंकि यही महाकाल की भी इच्छा है।

युद्ध-युद्ध नहीं मिटते किंतु निश्चित ही धर्म के नाम पर जेहाद के नाम पर फैलाए उन्माद को मिटाया ही जाना चाहिए और इसके लिए युद्ध करना पड़े तो भारत को करना चाहिए। यह एक बड़ी प्रसन्नता की बात है कि ऐसे आड़े समय में सारे राष्ट्र ने एकजुटता दिखाई है। सभी संप्रदायों ने एक होकर-एक आवाज लगाई है कि हम किसी भी स्थिति में अपनी सीमा से खिलवाड़ नहीं होने देंगे। अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में अद्भुत शौर्य और पराक्रम का परिचय देते हुए भारतीय सेना के जवानों भारतीय सेना के जवानों ने लड़ाई लड़ी व आत्माहुति दी है, उससे सारा राष्ट्र अभूत है- नतमस्तक है। आज जहाँ देखें रेलों में जम्मू जा रहे सैनिकों का स्वागत हो रहा है, रक्तदान शिविरों की लहर-सी उमड़ पड़ी है ओर राष्ट्र के रिक्त होते कोष के लिए धन-संग्रह हो रहा है। कोई भूखा रहकर, व्रत रखकर राशि बचा रहा है तो कोई एक दिन के वेतन की राशि राष्ट्रीय सुरक्षा कोष में दे रहा है।

युद्ध के दौरान घायल-विकलांग जनों के लिए न केवल सहानुभूति की लहर उमड़ी है- सरकारी, गैरसरकारी दोनों स्तर पर उनके लिए सहायता बढ़-चढ़कर आई है।

ये सभी शुभ लक्षण हैं। अब होना यह चाहिए कि युद्धकाल में जो उत्साह उमड़ा है, वह बबूले की तरह ठंडा न पड़े जाए। हम राष्ट्र एकता-अखण्डता के लिए सतत् प्रयासरत रहने के लिए संकल्पित हों कम से कम इस युगसंधि की वेला में एक संकल्प ले लें कि जब तक सारे विश्व शांति नहीं हो जाती, हम फिजूल-खर्ची विवाहों में दिखावा, अपव्यय दहेज रूपी दानव से दूर रहेंगे एवं सादगी भरे विवाहों का का प्रचलन कर बचत की राशि राष्ट्र - निर्माण में लगाएँगे। प्रतिदिन सौ से दो सौ करोड़ रुपये जिस राष्ट्र में अभी व्यय हो रहा है इन छोटे-छोटे संकल्पों से काफी कुछ मदद राष्ट्र के निर्माण व आर्थिक उन्नयन की दिशा में हो सकती है। हम जितना संवेदनशील सैनिकों व अन्य आश्रितों के प्रति हैं क्या युद्ध के समापन के बाद वैसे ही बने रह सकते हैं? यदि ऐसा हो सके तो वीर सैनिक सम्मानपूर्वक व आशाभरी अपेक्षाओं के साथ मोर्चा लेने जाते रह सकेंगे। यह इस लिए कहा जा रहा है कि जिन दिनों यह उत्साह का माहौल बना है, तभी अखबारों में देखने को मिलता है कि 1164 के कतिपय शहीद सैनिकों के आश्रित परिवारजन बड़ी विपरीत परिस्थितियों में अपना निर्वाह कर रहे हैं। क्योंकि आश्वासन पूरे नहीं हुए। हमें किसी भी सैनिक व शहीद के परिवार को उपेक्षित नहीं करना है, यह संकल्प सभी को प्रस्तुत श्रावणी पर लेना चाहिए। आध्यात्मिक मोर्चे पर हम सभी गायत्री मंत्र की एक माला विशिष्ट आहुतियों के साथ तथा साप्ताहिक दीपयज्ञ व अग्निहोत्र में विशिष्ट आहुतियों को (इसी अंकम उद्धत) देने का क्रम जारी रखें।

धन जन की तन-मन की सहायताएँ चारों ओर से जुटाए जाने पर राष्ट्र की पराक्रमी शक्ति प्रखरता को प्राप्त होती है और उसी के बल पर विजय की संभावना सुनिश्चित बनती है। देशभक्ति की परीक्षा के ये समय कभी-कभी आते हैं। जो इस समय में स्वार्थ और व्यामोह में पड़े रह जाएँगे वे अवसर चूक जाएँगे, राष्ट्रद्रोही कहलायेंगे और पीछे पश्चात्ताप ही हाथ लगेगा।

प्रस्तुत परिस्थितियों के लिए विशिष्ट आहुतियाँ

॥ सैन्य विजय- प्राप्त्यर्थं आहुतिः॥

कारगिल सीमा पर डटे अपने सैनिकों का मनोबल निरंतर ऊँचा रह, वे अपने प्रयास में सफल हों, शत्रुओं को शीघ्र परस्त करके उन्हें खदेड़ सके। इस निमित्त यह आहुति देवराज इन्द्र को समर्पित की जा रही है।

ॐ इन्द्रः सेनां मोहयतु,मरुतो घ्नन्तु ओजसा। च्क्षूंषि अग्निरादत्तं, पुनरेतु पराजिता, स्वाहा॥

इदं इन्द्राय इदं न मम।

॥हुतात्मलः शान्त्यर्थ आहुतिः॥

भारतीय सीमाओं के सजग प्रहरी, अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए, अपने प्राणों की आहुति देने वाले रणबाँकुरों की आत्मा की शाँति तथा उनके घर - परिवार के आत्मीयजनों को इस वज्राघात से राहत एवं सर्वत्र शान्ति विराजमान् हो- इस निमित्त यह आहुति समर्पित है॥

ॐ शन्नो मिश्रः शं वरुणः शन्नो भवर्त्वयमा। शन्त इन्द्रो बृहस्पतिः शन्नो विष्णुरुरुक्रमः स्वाहा॥

इदं हुतात्मनः शान्त्यर्थ इदं न मम॥

First 40 42 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • हम श्रेष्ठ योद्धा की भूमिका निबाहें
  • जब जाग जाती हैं अतींद्रिय शक्तियाँ तब
  • क्या स्वप्न अचेतन का भटकाव मात्र है
  • Quotation
  • आत्मावलम्बन (Kahani)
  • सदी के अंतिम स्वतंत्रता दिवस पर करें कुछ आत्मचिंतन
  • Quotation
  • आरुणि की परीक्षा (Kahani)
  • ध्यान से बड़ा नहीं-कोई भी नशा
  • कुरूप कुबेर (Kahani)
  • लिखालिखी की है नहीं, देखादेखी बात
  • Quotation
  • वास्तुशास्त्र में ईशान कोण की महत्ता
  • Quotation
  • आत्मावलम्बी (Kahani)
  • नई सदी की भाग्य विधात्री होगी नारी
  • सूक्ष्मीकरण साधना (Kahani)
  • डरिए मत भूतों से, उनका अस्तित्व तो है ही
  • Quotation
  • आत्मा यथार्थ में पवित्र है (Kahani)
  • हँसिए-हँसाइए नहीं तो रोग आ घेरेगा
  • श्रावणी (28 अगस्त) पर विशेष - चमक उठे राष्ट्रीय स्वाभिमान का महासूर्य इस पर्व पर
  • जन हितैषी मनुष्य (Kahani)
  • बुद्धिमान मनुष्य की मूर्खता का परिणाम भोग रहे हैं हम
  • बिंदु में सिंधु समाया
  • गणेश दत्त सिंह (Kahani)
  • एक साहसिक भिड़ंत, जिसकी परिणति सुखद हुई
  • रामशास्त्री की ईमानदारी (Kahani)
  • कैसा हो हमारा आहार?
  • सच्चा विश्वास (kahani)
  • युगपुरुष की लेखनी से - पं. श्रीराम शर्मा आचार्य वांग्मय-अमृत कलश
  • VigyapanSuchana
  • युगशिल्पी अहमन्यता के विषपान से बचें
  • श्रावणी पर्व का माहात्म्य एवं प्रेरणाएँ
  • VigyapanSuchana
  • युग गीता-4 - सद्गुरु के रूप में भगवान का वरण
  • VigyapanSuchana
  • हीरक जयंती की पूर्व वेला में श्रावण का संदेश - अमृतवाणी
  • गुरु- कथामृत- 1 - ‘पाती’ जिससे इसे मिशन की नींव रखी गई
  • उत्तम संपत्ति (Kahani)
  • यह हमारे राष्ट्र की अग्निपरीक्षा का है।
  • राष्ट्रधर्म पर युगद्रष्टा का चिंतन
  • Quotation
  • संस्कार एक औषधि
  • संस्कार एक औषधि (Kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj