
प्रवेश हेतु पात्रता के परीक्षण की कसौटियाँ
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विश्वविद्यालय में प्रवेश की प्रक्रिया से गुजरना सभी प्रवेशार्थियों के लिए अनिवार्य है। देव संस्कृति विश्वविद्यालय में अध्ययन के इच्छुक छात्र-छात्राओं को इस कसौटी पर अपने को खरा साबित करना होगा। यह पात्रता के परीक्षण की कसौटी है। इसके द्वारा विद्यार्थी का देव संस्कृति के प्रति अनुराग, अध्ययन के लिए चुने गए विषय के प्रति रुचि, उस विषय का ज्ञान, छात्र या छात्रा की भविष्यत् संकल्पनाएँ आदि सभी बिन्दुओं को जाँचा-परखा जाएगा। यह प्रवेश प्रक्रिया बहुआयामी और व्यापक होगी। इसके मानदण्ड भी अन्य विश्वविद्यालयों से काफी अलग होंगे। यहाँ अध्ययन करने के इच्छुक छात्र या छात्रा के लिए बौद्धिक प्रतिभाशाली या अपने विशेष विषय के ज्ञान में निपुण होना भर पर्याप्त नहीं है। ऋषि संस्कृति के इस विद्या साधना केन्द्र में प्रवेश के लिए उनके समग्र व्यक्तित्व का इसके अनुरूप होना जरूरी है।
प्राचीन काल में भी ऋषिगण अपने यहाँ अध्ययन के लिए आने वाले छात्र-छात्राओं की प्रवेश परीक्षा लिया करते थे। यह प्रक्रिया लिखित-मौखिक होने के साथ प्रयोगात्मक भी होती थी। वैदिक साहित्य की आख्यायिकाओं से पता चलता है कि ऋभु और कल्पक को महर्षियों ने प्रवेश देने से पहले कई तरह की परीक्षाओं से गुजारा। उन्हें अनेकों कसौटियों पर कसा। सत्यकाम जाबाल की मौखिक परीक्षा का प्रसंग तो सर्वविख्यात है। महर्षि गौतम ने उसकी परीक्षा से सन्तुष्ट होकर ही विद्या प्राप्ति का अधिकारी माना। यह प्रवेश परीक्षा जितनी महत्त्वपूर्ण छात्रों के लिए थी, उतनी ही छात्राओं के लिए भी थी। घोषा काक्षीवती, चित्रमहा, गौपायना, अदिति दाक्षायणी जैसी अनगिन छात्राओं के प्रवेश परीक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के अनेकों प्रसंग मिलते हैं। न केवल प्रवेश प्रक्रिया में बल्कि अपने अध्ययन काल में ये सभी छात्राएँ प्रखर मेधा का परिचय देती रहीं। इनमें से कुछ तो अपने सहपाठी छात्रों से काफी आगे रहीं।
प्रवेश प्रक्रिया की कसौटियाँ ऐतिहासिक युग में भी बनी रही। सुविख्यात इतिहासवेत्ता प्रो. ए.एस. अल्तेकर, डॉ. राजबली पाण्डेय, प्रो. आर.सी. मजूमदार, डॉ. भण्डारकर आदि ने इस सम्बन्ध में काफी प्रमाण जुटाए हैं। पुराविद् अलेक्जैंडर कनिंघम, सर जॉन मार्शल एवं मार्टीमर व्हीलर ने भी कई अभिलेखों के आधार पर इसे प्रमाणित किया है। प्राप्त विवरण के आधार पर यह सुनिश्चित रूप से कहा जा सकता है कि तक्षशिला, नालन्दा, विक्रमशिला, वलभी, उड्डयन्तपुर आदि सभी प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में छात्रों की प्रवेश परीक्षा ली जाती थी। यहाँ प्रवेश किसी जाति भेद के आधार और अधिकार से नहीं विषय और व्यक्तित्व की योग्यता प्रमाणित होने पर मिलता था।
ऐतिहासिक विवरण के अनुसार विक्रमशील विश्वविद्यालय में छः संकाय थे। इनमें से प्रत्येक संकाय एक महाविद्यालय के रूप में विकसित था। इस तरह इस विश्वविद्यालय के परिसर में छः संकाय के छः महाविद्यालय स्थित थे। इनमें प्रवेश के लिए विश्वविद्यालय में छः द्वार थे। इनमें से प्रत्येक द्वार पर एक द्वार पण्डित होता था। वह प्रवेशार्थी की योग्यता की परीक्षा लेकर उनको विश्वविद्यालय के किसी विशेष संकाय में प्रवेश की अनुमति देता था। छात्रावासों की प्रबन्ध व्यवस्था की देखभाल करना भी इन द्वार पण्डितों का कार्य था। ये छः द्वार केन्द्रीय सभागार में थे। इनका एक-एक द्वार एक-एक महाविद्यालय में खुलता था।
प्रो. अल्तेकर द्वारा दिए गए विवरण के अनुसार राजा चनक (955-963 ई.) के समय में छः द्वार पण्डित इस प्रकार थे-
1. पूर्वीद्वार- आचार्य रत्नाकर शान्ति
2. पश्चिमी द्वार- आचार्य वागीश्वर कीर्ति
3. उत्तरी द्वार- आचार्य नरोप
4. दक्षिणी द्वार- आचार्य प्रज्ञाकर मति
5. प्रथम मध्यद्वार- आचार्य रत्नबज्र
6. द्वितीय मध्यद्वार- आचार्य ज्ञानश्री मित्र
ये सभी आचार्य अपने-अपने संकायों की प्रवेश प्रक्रिया के प्रभारी थे। इनके आधीन दूसरे सहआचार्य एवं सहायक आचार्य कार्य करते थे। जो इन प्रभारी आचार्यों को सहयोग देते थे। ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि प्रवेश प्रक्रिया लिखित मौखिक और प्रायोगिक परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने पर ही पूरी होती थी। इसमें समग्र व्यक्तित्व का आँकलन किया जाता था।
देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रवेश मानदण्ड भी अपने भारत देश के इन साँस्कृतिक आदर्शों के अनुरूप ही है। यहाँ पर देश-विदेश से आने वाले छात्र और छात्राएँ प्रवेश प्रक्रिया के लिए विविध परीक्षाओं से गुजरेंगे। इन परीक्षाओं में सबसे पहली परीक्षा देव संस्कृति के प्रति अभिरुचि एवं साँस्कृतिक ज्ञान के बारे में होगी। भारत की सनातन संस्कृति के आदर्शों, मूल्यों, प्रयोगों एवं परम्पराओं के बारे में विद्यार्थी का ज्ञान बहुत आवश्यक है। इस प्रथम परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर अन्य परीक्षा की उत्तर पुस्तिकाओं की जाँच की जाएगी। यह दूसरी परीक्षा अध्ययन विषय से सम्बन्धित होगी। इसमें विषय के प्रति लगाव एवं उसके ज्ञान को परखा जाएगा।
इसके बाद प्रवेशार्थियों का व्यक्तित्व परीक्षण होगा। व्यक्तित्व के समग्र आँकलन के लिए सार्थक और कारगर मनोवैज्ञानिक परीक्षण उपयोग में लाए जाएंगे। इन परीक्षणों से छात्र-छात्राओं के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को जाँचा, परखा और जाना जाएगा। छात्र की जीवन नीति क्या है? उसके जिन्दगी के आदर्श क्या हैं? वह भविष्य में क्या बनने का इच्छुक है? उसकी कल्पनाएँ और मान्यताएँ क्या हैं? आदि सभी सवालों को ढूंढ़कर ही प्रवेशार्थियों का प्रवेश सुनिश्चित किया जाएगा।
विश्वविद्यालय के संकायाध्यक्ष, विभागाध्यक्ष एवं आचार्य जब भली भाँति प्रवेशार्थी से सन्तुष्ट होंगे, तभी वह यहाँ अध्ययन का अधिकारी होगा। इसी प्रकार विद्यार्थी को भी विश्वविद्यालय के आदर्शों, उद्देश्यों एवं क्रियाकलापों को जानने का अधिकार है। अच्छा यही है कि प्रवेशार्थी इन्हें भली-भाँति जानकर और जाँच-परखकर ही प्रवेश के लिए आवेदन करें। यह विश्वविद्यालय सचमुच ही विश्वभर का विद्यालय है। इसे देव संस्कृति के अन्तर्राष्ट्रीय अध्ययन केन्द्र के रूप में विकसित किया जा रहा है। यहाँ की गतिविधियों के सभी मानदण्ड आधुनिक अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं। यहाँ विश्व मानव की सभी समस्याओं के हल विश्वभर के छात्र मिल-जुलकर खोजेंगे।
इन बड़े उद्देश्यों का भार सत्पात्र ही उठा सकेंगे। हल्के मन वाले, शिक्षा को केवल धन कमाने का जरिया समझने वाले, मनोविनोद के लिए या भाँति-भाँति के उपाधियों को बटोरने के लिए पढ़ने वाले छात्रों के लिए यह स्थान नहीं है। ऐसे लोग न सुपात्र हैं और न सत्पात्र। इसलिए उनका प्रवेश भी यहाँ सम्भव नहीं। यहाँ पढ़ने के लिए ज्ञान साधना के प्रति प्रबल अनुराग चाहिए। यहाँ प्रवेश के लिए जरूरी है, स्वयं के व्यक्तित्व को विकसित करने की तीव्रतम चाहत। जो यहाँ प्रवेश चाहते हैं उनमें संस्कृति-साधना के लिए भावभरा समर्पण होना चाहिए। यह सब होने पर ही यहाँ प्रवेश सम्भव है। उत्कृष्ट बीज ही यहाँ की ऋषि भूमि में बोए जाएँगे। उन्हें खाद-पानी जुटाने का हर आवश्यक जतन किया जाएगा। और फिर महान् व्यक्तित्व के पौधों की कतारें यहाँ पनपेगी। जिन्हें बाद में उनके नियति विधान के अनुसार विश्व के विभिन्न भू-भागों में रोपा जाएगा। यहाँ जो होगा वह अक्षरों का नहीं, अनुभूति का विषय है। इससे लाभान्वित होने के लिए पुण्यवान, तप परायण एवं मेधावान प्रवेशार्थी ही चयनित होंगे। उन्हें ही इस विश्वविद्यालय के वातावरण में रहकर विद्या साधना करने का सुयोग सुअवसर मिल पाएगा।