• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • जीवन विद्या का आलोक केन्द्र
    • देव संस्कृति एवं उसके निहितार्थ
    • द्रष्टा ने देखा एक दिव्य स्वप्न
    • केन्द्र, जहाँ से पाया संस्कृति−संवेदना ने विश्व विस्तार
    • ऋषि दृष्टि से होगी यह क्रान्ति
    • विश्व दृष्टि ही उबारेगी आज की संकीर्ण सोच से
    • देव संस्कृति का साधना मंदिर विश्वविद्यालय का भवन
    • विराट व्यवस्था तन्त्र एवं उसकी बारीकियां
    • जीवनदृष्टि से ओतप्रोत विद्याप्रधान पाठ्यक्रम
    • विद्या विस्तार की धुरी- पाठ्यक्रम निर्मात्री परिषद
    • देव संस्कृति के ज्योति स्तंभ बनेंगे ये संकाय
    • ऋषिकल्प जीवन के अभिलाषियों के लिए साधना संकाय
    • समग्र एवं सम्पूर्ण स्वास्थ्य पर विज्ञानसम्मत अध्ययन-अध्यापन
    • सृजन संवेदना की दिव्यता का शिक्षण देने वाला संकाय
    • सद्गुणों का समुचित प्रबंधन सिखाएगा स्वावलंबन संकाय
    • ऋषित्व की प्रगाढ़ अनुभूति की परिचायक शोध साधना
    • विद्या साधना का दिव्य मंदिर-ग्रंथालय
    • ऋषि संस्कृति का बहुआयामी स्वरूप दर्शाएगा प्रशासन तंत्र
    • संस्कृति सृजन में निपुण तपःपूज शिल्पी बनेंगे आचार्य
    • दिशावान, तनावमुक्त, व्यक्तित्ववान विद्यार्थी ही होगा मूल केन्द्र में
    • प्रवेश हेतु पात्रता के परीक्षण की कसौटियाँ
    • दिव्य वातावरण में नवयुग का संस्कृति सृजन
    • अनुबंधों-व्रतबंधों की अनुशासन मर्यादाएँ
    • शिक्षण प्रक्रिया की मौलिकता-अज्ञान का निवारण
    • ज्ञान की उपलब्धियों का संगोष्टी द्वारा पारस्परिक वितरण
    • तप और विद्या के अर्जन की मौलिक मूल्याँकन विधियाँ
    • विद्या एवं सेवा का एक अद्भुत संगम
    • राष्ट्रधर्म की दीक्षा देना प्रथम कर्तव्य
    • संबद्ध केन्द्र बनाएंगे विश्व वसुधा को देव कुटुँब
    • नवयुग को जीवन देने वाले संस्कृति दूत यहाँ गढ़े जायेंगे
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • जीवन विद्या का आलोक केन्द्र
    • देव संस्कृति एवं उसके निहितार्थ
    • द्रष्टा ने देखा एक दिव्य स्वप्न
    • केन्द्र, जहाँ से पाया संस्कृति−संवेदना ने विश्व विस्तार
    • ऋषि दृष्टि से होगी यह क्रान्ति
    • विश्व दृष्टि ही उबारेगी आज की संकीर्ण सोच से
    • देव संस्कृति का साधना मंदिर विश्वविद्यालय का भवन
    • विराट व्यवस्था तन्त्र एवं उसकी बारीकियां
    • जीवनदृष्टि से ओतप्रोत विद्याप्रधान पाठ्यक्रम
    • विद्या विस्तार की धुरी- पाठ्यक्रम निर्मात्री परिषद
    • देव संस्कृति के ज्योति स्तंभ बनेंगे ये संकाय
    • ऋषिकल्प जीवन के अभिलाषियों के लिए साधना संकाय
    • समग्र एवं सम्पूर्ण स्वास्थ्य पर विज्ञानसम्मत अध्ययन-अध्यापन
    • सृजन संवेदना की दिव्यता का शिक्षण देने वाला संकाय
    • सद्गुणों का समुचित प्रबंधन सिखाएगा स्वावलंबन संकाय
    • ऋषित्व की प्रगाढ़ अनुभूति की परिचायक शोध साधना
    • विद्या साधना का दिव्य मंदिर-ग्रंथालय
    • ऋषि संस्कृति का बहुआयामी स्वरूप दर्शाएगा प्रशासन तंत्र
    • संस्कृति सृजन में निपुण तपःपूज शिल्पी बनेंगे आचार्य
    • दिशावान, तनावमुक्त, व्यक्तित्ववान विद्यार्थी ही होगा मूल केन्द्र में
    • प्रवेश हेतु पात्रता के परीक्षण की कसौटियाँ
    • दिव्य वातावरण में नवयुग का संस्कृति सृजन
    • अनुबंधों-व्रतबंधों की अनुशासन मर्यादाएँ
    • शिक्षण प्रक्रिया की मौलिकता-अज्ञान का निवारण
    • ज्ञान की उपलब्धियों का संगोष्टी द्वारा पारस्परिक वितरण
    • तप और विद्या के अर्जन की मौलिक मूल्याँकन विधियाँ
    • विद्या एवं सेवा का एक अद्भुत संगम
    • राष्ट्रधर्म की दीक्षा देना प्रथम कर्तव्य
    • संबद्ध केन्द्र बनाएंगे विश्व वसुधा को देव कुटुँब
    • नवयुग को जीवन देने वाले संस्कृति दूत यहाँ गढ़े जायेंगे
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 2002 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


विराट व्यवस्था तन्त्र एवं उसकी बारीकियां

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 7 9 Last
विश्वविद्यालय की व्यवस्था में भावी सम्भावनाएँ समायी हैं। व्यवस्था का स्थान कहीं भी किसी भी संस्था में महत्त्वपूर्ण होता है। इसके स्वरूप और क्रियाविधि पर संस्थाओं का जीवन निर्भर करता है। इसमें उलट-फेर होने से संस्थाओं के ढाँचे बदल जाते हैं। यह विचारों और आदर्शों को क्रियान्वित करने वाला तन्त्र है। व्यवस्था के माध्यम से ही विचार और आदर्श अभिव्यक्त होते हैं, मूर्त होते हैं और साकार रूप लेते हैं। इसमें छोटी सी गड़बड़ी विचारों एवं आदर्शों को विकृत करने के लिए पर्याप्त है। इसी से संस्था के हर छोटे-बड़े हिस्से को जीवन एवं प्राण मिलते हैं। प्राण पनपते कहीं हों, पर उसके प्रवाह को संस्था की रग-रग में पहुँचाने की जिम्मेदारी व्यवस्था की है। इसमें थोड़ी सी ढिलाई होने पर संस्था के अंग-अवयव सूखने, मुरझाने और मरने लगते हैं।

देव संस्कृति विश्वविद्यालय में इसका महत्त्व और भी अधिक है। क्योंकि यहाँ तथ्य विचारों और आदर्शों की अभिव्यक्ति तक सीमित नहीं है। यहाँ तो आदर्श गढ़े जाने हैं। बात सिर्फ विश्वविद्यालय के सुचारु संचालन की नहीं है, यहाँ की व्यवस्था पर जिम्मेदारी कहीं अधिक है। उस पर प्रतिभाओं के अन्वेषण एवं सुनियोजन के साथ उत्पादन और अभिवर्धन का भी भार है। यहाँ की व्यवस्था को देव संस्कृति के सनातन मूल्यों को प्रकट ही नहीं करना है, इन्हें प्रकट करने लायक व्यक्तियों को गढ़ना है। आज के मूल्य विहीन दौर में यह काम आसान नहीं है। जब सब ओर आपा-धापी मची है, व्यवस्था शासन और सत्ता के सुख का पर्याय बनकर रह गयी है, ऐसे में आदर्श और सेवा परायण व्यवस्था का गठन गंगा अवतरण के समान दुःसाध्य कर्म है।

इस भगीरथ श्रम को करने की जिम्मेदारी शान्तिकुञ्ज ने स्वयं उठायी है। शान्तिकुञ्ज के लोक हितकारी क्रियाकलापों से अभिभूत होकर शासन ने भी इसमें सहमति प्रदान की है। सभी की सोच यही है कि यह विश्वविद्यालय अन्य सभी सरकारी विश्वविद्यालयों से अलग ही हटकर हो। इसमें राष्ट्रहित, समाजहित और विश्वहित की ऐसी पौध उगायी जाए, जो अन्य स्थानों पर किन्हीं कारणों वश नहीं उग पाती है। शान्तिकुञ्ज-शासन सहित अपने परिजनों, देशवासियों, प्रवासी भारतीयों एवं विश्व भर के भारत और भारतीय संस्कृति के अनुरागियों की इस अपेक्षा को पूरी करने के लिए प्रतिबद्ध है। तभी उसने देव संस्कृति विश्वविद्यालय की स्थापना के साथ इसकी व्यवस्था के संचालन का जिम्मा स्वयं लिया है।

शान्तिकुञ्ज के प्रतिनिधि के रूप में विश्वविद्यालय की व्यवस्था के प्रमुख का दायित्व इस पत्रिका के सम्पादक ने सम्हालने का जिम्मा लिया है। शासन की सहमति व अनुरोध से डॉ. प्रणव पण्ड्या देव संस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति या चान्सलर बनाए गए हैं। सामान्यतया विश्वविद्यालयों में इस पद का भार प्रदेश के महामहिम राज्यपाल सम्हालते हैं। पर यहाँ सब कुछ शान्तिकुञ्ज को सम्हालना एवं चलाना है। शान्तिकुञ्ज की प्रतिष्ठ, गरिमा एवं आदर्शनिष्ठ को परखते हुए इसमें शासन की सहर्ष स्वीकृति एवं सहमति है। कुलाधिपति की अध्यक्षता में उन्हीं के द्वारा विश्वविद्यालय की शासन परिषद या बोर्ड ऑफ गवर्नर्स का गठन किया जाएगा। यह परिषद ही एक विशिष्ट पैनल की अनुशंसा एवं कुलाधिपति की सहमति व निर्देश से विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति करेगी। नियुक्त किए कुलपति भी इस परिषद के सदस्य होंगे। शासन परिषद के अन्य सदस्यों में शान्तिकुञ्ज के श्री वेदमाता गायत्री ट्रस्ट द्वारा मनोनीत पाँच प्रतिनिधि तथा कुलाधिपति द्वारा मनोनीत किए गए दो विशेषज्ञ विद्वान् होंगे। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग तथा उत्तराँचल शासन द्वारा नामाँकित एक-एक सदस्य भी इस शासन परिषद के सदस्य होंगे। यह परिषद देव संस्कृति विश्वविद्यालय की नीति-निर्मात्री तथा विशिष्ट अधिकारों से सम्पन्न सर्वोच्च परिषद होगी।

इसके आधीन देव संस्कृति विश्वविद्यालय की प्रबन्ध परिषद का गठन होगा। इस प्रबन्ध परिषद के अध्यक्ष विश्वविद्यालय के कुलपति होंगे। प्रबन्ध परिषद के सदस्यों में शान्तिकुञ्ज के श्री वेदमाता गायत्री ट्रस्ट द्वारा मनोनीत पाँच प्रतिनिधियों के साथ, विश्वविद्यालय के दो वरिष्ठ आचार्य, कुलाधिपति द्वारा मनोनीत किए गए विश्वविद्यालय के दो संकायाध्यक्ष (डीन) और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग एवं उत्तराँचल शासन का एक-एक नामाँकित प्रतिनिधि होगा। विश्वविद्यालय के कुल सचिव (रजिस्ट्रार) इस प्रबन्ध परिषद के सचिव होने के साथ इसके सदस्य भी होंगे। यह प्रबन्ध परिषद विश्वविद्यालय की सभी व्यवस्थाओं को प्रत्यक्ष रूप से सम्हालेंगी। और समय-समय पर अपने कार्यों का समस्त ब्यौरा शासन परिषद को देगी और उससे उचित निर्देश प्राप्त करेंगी।

विश्वविद्यालय की व्यवस्था का संचालन करने वाली यही दो प्रमुख परिषदें होंगी। मुख्य रूप से इन्हीं पर व्यवस्था को आदर्शपूर्ण एवं उद्देश्यनिष्ठ बनाए रखने का दायित्व होगा। इनमें से प्रबन्ध परिषद का विश्वविद्यालय के सभी छोटे-बड़े कार्यों में प्रत्यक्ष नियंत्रण होगा। इस प्रबन्ध परिषद का नियंत्रण शासन परिषद करेगी। जिसके प्रमुख कुलाधिपति स्वयं होंगे। बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की सहमति एवं स्वीकृति से प्रबन्ध परिषद विश्वविद्यालय की अन्य समितियों, परिषदों का गठन करेगी। इनमें से दो मुख्य होगी, प्रथम विद्या परिषद एवं द्वितीय वित्त परिषद। इन दोनों के ही अध्यक्ष विश्वविद्यालय के कुलपति होंगे। इनमें से विद्या परिषद अध्ययन-अध्यापन सम्बन्धी कार्यों की नीति-निर्मात्री समिति होगी। वित्त परिषद का कार्य विश्वविद्यालय की वित्तीय आवश्यकताओं एवं कार्यों का नियंत्रण एवं नियमन करना होगा। इसके अलावा भी अन्य छोटी-बड़ी समितियाँ एवं उपसमितियाँ होंगी, जो विश्वविद्यालय की व्यवस्था सम्बन्धी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए गठित की जाएगी।

व्यवस्था का कोई पहलू छोटा हो या बड़ा, किसी भी परिषद की कोई सदस्यता हो, इसमें वही व्यक्ति भागीदार होंगे, जिनके लिए सुविधा नहीं, सेवा महत्त्वपूर्ण है। इसके लिए चार मानदण्ड निर्धारित किए गए हैं। जिनमें पहला है- विनम्रता। इसका तात्पर्य व्यक्ति के इस गुण से है, जो उसे उत्तेजना, कठिनाई एवं आपत्ति के क्षणों में भी सहनशील बनाता है। उसके अन्दर औरों को सम्मान देने की, दूसरों से मृदु व्यवहार की वृत्ति को विकसित करता है। दूसरा मानदण्ड- प्रामाणिकता है। प्रामाणिकता का मतलब है- धन एवं चरित्र के मामले में ईमानदार रहना। वह व्यक्ति प्रामाणिक है, जिसे लोभ डिगा न पाए, आसक्ति लुभा न पाए। इसका एक अर्थ दृष्टि एवं जीवन की पवित्रता भी है। परिस्थितियाँ कुछ भी हों, पर जीवन में पवित्रता वैसी ही चमकती-दमकती रहे। मन को, जीवन को किसी भी कलुष की कालिमा न छूने पाए।

विश्वविद्यालय की व्यवस्था के सभी सदस्यों के लिए तीसरा अनिवार्य मानदण्ड कर्मनिष्ठ रखा गया है। व्यवस्था के किसी भी स्तर में वे व्यक्ति भागीदार बनाए जाएँगे, जिनके लिए विश्वविद्यालय का कोई भी छोटा-बड़ा काम श्रेष्ठ है। जो अपनी सुविधाओं को भूलकर कभी भी, किसी भी समय विश्वविद्यालय के उद्देश्यों के लिए समर्पित भाव से कर्मरत रहें। यह कर्मनिष्ठ विश्वविद्यालय की केन्द्रीय परिभाषा बनेगी। व्यवस्था के सदस्यों के लिए चौथे अनिवार्य मानदण्ड के रूप में त्यागवृत्ति है। त्याग का अर्थ है- न्यूनतम में जीवन जीने की आदत। इसे कठोर तपस्वी जीवन भी कहा जा सकता है। सुविधाओं के लिए ललचाने और तरसने वाले व्यक्ति ऋषियों के जीवन सन्देश का प्रसार करने में सहायक नहीं हो सकते। संक्षेप में ये चारों ही मानदण्ड ऋषि जीवन के अनुशासन हैं। इन अनुशासनों को प्रसन्न भाव से स्वीकारने वाले व्यक्ति ही विश्वविद्यालय की व्यवस्था के सदस्य होंगे। ऐसे निरहंकार, निराभिमानी, सच्चरित्र, कर्मनिष्ठ एवं ऋषिकल्प जीवन वाले व्यक्ति ही विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों की दृष्टि एवं दिशा तय करेंगे।

First 7 9 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • जीवन विद्या का आलोक केन्द्र
  • देव संस्कृति एवं उसके निहितार्थ
  • द्रष्टा ने देखा एक दिव्य स्वप्न
  • केन्द्र, जहाँ से पाया संस्कृति−संवेदना ने विश्व विस्तार
  • ऋषि दृष्टि से होगी यह क्रान्ति
  • विश्व दृष्टि ही उबारेगी आज की संकीर्ण सोच से
  • देव संस्कृति का साधना मंदिर विश्वविद्यालय का भवन
  • विराट व्यवस्था तन्त्र एवं उसकी बारीकियां
  • जीवनदृष्टि से ओतप्रोत विद्याप्रधान पाठ्यक्रम
  • विद्या विस्तार की धुरी- पाठ्यक्रम निर्मात्री परिषद
  • देव संस्कृति के ज्योति स्तंभ बनेंगे ये संकाय
  • ऋषिकल्प जीवन के अभिलाषियों के लिए साधना संकाय
  • समग्र एवं सम्पूर्ण स्वास्थ्य पर विज्ञानसम्मत अध्ययन-अध्यापन
  • सृजन संवेदना की दिव्यता का शिक्षण देने वाला संकाय
  • सद्गुणों का समुचित प्रबंधन सिखाएगा स्वावलंबन संकाय
  • ऋषित्व की प्रगाढ़ अनुभूति की परिचायक शोध साधना
  • विद्या साधना का दिव्य मंदिर-ग्रंथालय
  • ऋषि संस्कृति का बहुआयामी स्वरूप दर्शाएगा प्रशासन तंत्र
  • संस्कृति सृजन में निपुण तपःपूज शिल्पी बनेंगे आचार्य
  • दिशावान, तनावमुक्त, व्यक्तित्ववान विद्यार्थी ही होगा मूल केन्द्र में
  • प्रवेश हेतु पात्रता के परीक्षण की कसौटियाँ
  • दिव्य वातावरण में नवयुग का संस्कृति सृजन
  • अनुबंधों-व्रतबंधों की अनुशासन मर्यादाएँ
  • शिक्षण प्रक्रिया की मौलिकता-अज्ञान का निवारण
  • ज्ञान की उपलब्धियों का संगोष्टी द्वारा पारस्परिक वितरण
  • तप और विद्या के अर्जन की मौलिक मूल्याँकन विधियाँ
  • विद्या एवं सेवा का एक अद्भुत संगम
  • राष्ट्रधर्म की दीक्षा देना प्रथम कर्तव्य
  • संबद्ध केन्द्र बनाएंगे विश्व वसुधा को देव कुटुँब
  • नवयुग को जीवन देने वाले संस्कृति दूत यहाँ गढ़े जायेंगे
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj