• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • मन्त्र पूत जल का कमाल
    • ऐसे थे पूज्य गुरुदेव
    • घट-घट में बसै गुरु की चेतना
    • गुरु चिन्तन से मिली कारागार से मुक्ति
    • एक ही दिन में मिले तीन जीवनदान
    • मृत महिला को मिला नया जीवन
    • माँ के लहूलुहान हाथ
    • इसी बुड्ढे ने बचाई थी मेरी जान
    • काल के गाल से निकाला महाकाल ने
    • ईसाई चिकित्सक को दिव्य दिशा निर्देश
    • पल भर में सुनी गई अबला की पुकार
    • आस्था से मिली संकट से मुक्ति
    • चुटकियों में हुआ ब्लड कैंसर का इलाज
    • और वह तबादला वरदान बन गया!
    • नतमस्तक हो गये वनवासी लुटेरे
    • तुम सदा रहते साथ हमारे
    • फलित हुआ माँ का आश्वासन
    • ..और आखिर गुरुदेव ने सुनी उनकी बात
    • खण्डित होने से बचा समयदान का संकल्प
    • शक्तिपात से पल मात्र में हुआ कायाकल्प
    • मैं अभागन उन्हें पहचान न पाई
    • गुरुदेव ने मेरी दृष्टि बदल दी
    • तीर के वार से भी कुछ नहीं बिगड़ा
    • निर्मूल सिद्ध हुई डॉक्टरों की आशंका
    • आसान होता गया शान्तिकुञ्ज का सफर
    • जागृत हुई गाँव की सामूहिक शक्ति
    • मुँह की खानी पड़ी नाचती हुई मौत को
    • दलदल से निकाल कर दिखाई थी राह
    • संजीवनी साधना से मिला जीवनदान
    • कलियुग के सूर को मिले भगवान
    • तबादला स्थगित हुआ
    • महाकाल ने सुनी माता की उलाहना
    • बदली हुई दृष्टि ने जीवन बदल दिया
    • दीपयज्ञ ने दिया बेटी को जीवन दान
    • बच्चे को मिली ऑपरेशन से मुक्ति
    • ...तब भी मैं अकेली नहीं थी
    • सूक्ष्म शरीर से दिया आश्वासन
    • करोगे याद हमको पास अपने शीघ्र पाओगे
    • विनम्रता से विगलित हुआ अहंकार
    • गंगा में डूबने से बचाया एक बालक ने
    • गुरुर्वाक्यं ब्रह्मवाक्यं
    • आँखें फट पड़ीं आँखों के डाक्टर की
    • जहर की पुड़िया रखी रह गई
    • दो माह में दूर हुआ अल्सरेटिव कोलाइटिस
    • गुरु गायत्री दोऊ खड़े प्रारब्ध करे पार
    • याद करते ही आ पहुँचे शान्तिकुंज के देवदूत
    • परीक्षा के दिन हुआ बीमारी से बचाव
    • गुरुकार्य में साधनों की कमी नहीं रहती
    • पूरा हुआ शक्तिपीठ की स्थापना का संकल्प
    • योगक्षेमं वहाम्यहम्
    • प्रसाद में छिपा था पोलियो का इलाज
    • जाँच रिपोर्ट से चिकित्सक भी चकित
    • गायत्री महाविज्ञान है अवसाद की औषधि
    • तुम मेरा काम करो हम तुम्हारा काम करेंगे
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • मन्त्र पूत जल का कमाल
    • ऐसे थे पूज्य गुरुदेव
    • घट-घट में बसै गुरु की चेतना
    • गुरु चिन्तन से मिली कारागार से मुक्ति
    • एक ही दिन में मिले तीन जीवनदान
    • मृत महिला को मिला नया जीवन
    • माँ के लहूलुहान हाथ
    • इसी बुड्ढे ने बचाई थी मेरी जान
    • काल के गाल से निकाला महाकाल ने
    • ईसाई चिकित्सक को दिव्य दिशा निर्देश
    • पल भर में सुनी गई अबला की पुकार
    • आस्था से मिली संकट से मुक्ति
    • चुटकियों में हुआ ब्लड कैंसर का इलाज
    • और वह तबादला वरदान बन गया!
    • नतमस्तक हो गये वनवासी लुटेरे
    • तुम सदा रहते साथ हमारे
    • फलित हुआ माँ का आश्वासन
    • ..और आखिर गुरुदेव ने सुनी उनकी बात
    • खण्डित होने से बचा समयदान का संकल्प
    • शक्तिपात से पल मात्र में हुआ कायाकल्प
    • मैं अभागन उन्हें पहचान न पाई
    • गुरुदेव ने मेरी दृष्टि बदल दी
    • तीर के वार से भी कुछ नहीं बिगड़ा
    • निर्मूल सिद्ध हुई डॉक्टरों की आशंका
    • आसान होता गया शान्तिकुञ्ज का सफर
    • जागृत हुई गाँव की सामूहिक शक्ति
    • मुँह की खानी पड़ी नाचती हुई मौत को
    • दलदल से निकाल कर दिखाई थी राह
    • संजीवनी साधना से मिला जीवनदान
    • कलियुग के सूर को मिले भगवान
    • तबादला स्थगित हुआ
    • महाकाल ने सुनी माता की उलाहना
    • बदली हुई दृष्टि ने जीवन बदल दिया
    • दीपयज्ञ ने दिया बेटी को जीवन दान
    • बच्चे को मिली ऑपरेशन से मुक्ति
    • ...तब भी मैं अकेली नहीं थी
    • सूक्ष्म शरीर से दिया आश्वासन
    • करोगे याद हमको पास अपने शीघ्र पाओगे
    • विनम्रता से विगलित हुआ अहंकार
    • गंगा में डूबने से बचाया एक बालक ने
    • गुरुर्वाक्यं ब्रह्मवाक्यं
    • आँखें फट पड़ीं आँखों के डाक्टर की
    • जहर की पुड़िया रखी रह गई
    • दो माह में दूर हुआ अल्सरेटिव कोलाइटिस
    • गुरु गायत्री दोऊ खड़े प्रारब्ध करे पार
    • याद करते ही आ पहुँचे शान्तिकुंज के देवदूत
    • परीक्षा के दिन हुआ बीमारी से बचाव
    • गुरुकार्य में साधनों की कमी नहीं रहती
    • पूरा हुआ शक्तिपीठ की स्थापना का संकल्प
    • योगक्षेमं वहाम्यहम्
    • प्रसाद में छिपा था पोलियो का इलाज
    • जाँच रिपोर्ट से चिकित्सक भी चकित
    • गायत्री महाविज्ञान है अवसाद की औषधि
    • तुम मेरा काम करो हम तुम्हारा काम करेंगे
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य -1

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT TEXT TEXT


दलदल से निकाल कर दिखाई थी राह

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 27 29 Last
        सन् १९७१ई. में मैंने गायत्री महामंत्र की दीक्षा तो ले ली, पर दीक्षा के समय परम पूज्य गुरुदेव के दर्शन नहीं हो सके। उन दिनों वे हिमालय प्रवास में थे। अगले साल हिमालय से वापस आने के बाद उनके दर्शन का सौभाग्य मिला।

        दीक्षा के पाँच वर्षों बाद एक बार फिर शांतिकुंज पहुँचा, एक विशेष साधना सत्र में शामिल होने के लिए। सत्र शुरू होने के पहले जब मैं गुरुदेव को प्रणाम करने गया तो देखा कि पंक्ति में पहले से ही काफी लोग खड़े थे। मैं सोचने लगा कि ऐसी परिस्थिति में कुछ व्यक्तिगत बातें करना चाहूँ, तो कैसे करूँ।

        जब मैं पूज्य गुरुदेव के सम्मुख पहुँचा तो मुझे एक नजर देखकर ही मेरी मनःस्थिति समझ गए। स्नेहिल स्वर में पूछा- अकेले में बात करना चाहते हो? मैंने सिर हिलाते हुए हामी भरी। उन्होंने कहा- तुम मुझसे अकेले में मिलकर जो कुछ कहना चाहते हो वह सब मैं सुन चुका हूँ। चिन्ता मत करो। तुम्हारा काम हो जायेगा। पर क्या तुम मेरा काम करोगे?

        खुशी के मारे मैं कुछ बोल नहीं सका। मैंने उसी क्षण मन ही मन संकल्प लिया कि पूज्य गुरुदेव की आज्ञा का पालन जीवन भर करता रहूँगा। तभी से मिशन का काम कर रहा हूँ। बात सन् १९८१ ई. की है। सुपौल से लगभग ७- ८ कि.मी. की दूरी पर एक गाँव है- गोरामानसिंह। वहाँ के मुखिया ने गायत्री महायज्ञ के आयोजन का आग्रह किया था। मेरे घर पर जब महायज्ञ के लिए दिन, समय आदि तय हो रहा था, तो मैंने रास्ते के बारे में पूछा।

        आसपास के गाँव में यज्ञ कराने मैं प्रायः साइकिल से जाया करता था, इसलिए यह भी जानना चाहा कि बीच में कोई नदी तो नहीं है। लेकिन उनका ध्यान इस तरफ लगा हुआ था कि यज्ञ में कैसे क्या तैयारियाँ करनी होंगी, इसलिए नदी की बात उनके ध्यान से उतर गई। मैं भी बातचीत के प्रवाह में नदी के बारे में दुबारा पूछना भूल गया और मुखिया जी कार्यक्रम तय करके वापस चले गए।

        मैं निर्धारित तिथि के एक दिन पूर्व घर से चला। पर रास्ते में ही शाम हो गई। सूर्यास्त के बाद आवाजाही कुछ कम पड़ने लगी। शाम के कुछ और गहरा जाने के बाद रास्ता सुनसान पड़ गया। आगे की बस्ती में कच्ची सड़क के किनारे कुछ लोग खड़े- खड़े आपस में बातचीत कर रहे थे। उन्होंने मुझे रोककर पूछा- कहाँ तक जाना है पंडित जी? मैंने कहा- गोरामानसिंह।

        गाँव का नाम सुनते ही उनमें से एक बोल पड़ा- पंडित जी, गोरामानसिंह तो यहाँ से बहुत दूर है। आगे का इलाका भी ठीक नहीं है। रास्ते में कहीं लूट- पाट, छीना- झपटी करने वालों से सामना हो जाए, तो क्या करेंगे? अच्छा यही होगा कि आप हमारे यहाँ ही रात्रि विश्राम कर लें। पर मुझे तो पूज्य गुरुदेव के काम से जाना था, उन सबको समझा बुझाकर, धन्यवाद देकर आगे बढ़ चला।

        आगे चलकर एक गाँव मिला- रजवा। वहाँ पहुँचकर देखा सामने एक बड़ी- सी नदी है। नदी के किनारे पहुँचकर देखा एक नाव लगी है। मैंने इधर- उधर नजर दौड़ाई। दाहिनी ओर थोड़ी ही दूरी पर घुटने भर की धोती पहने एक ग्रामीण खड़ा था। मैंने पास जाकर पूछा- यह नाव किसकी है?

        उसने कहा- नाव तो मेरी ही है। कहिए, क्या बात है?

        मैं बोला- भैया, मुझे गोरामानसिंह जाना है। क्या आप मुझे नदी के उस पार पहुँचा देंगे? उसने लापरवाही से जवाब दिया- इतने कम पानी में नाव नहीं चल पाएगी, उतरकर पार होना पड़ेगा। मैं गुरुदेव का नाम लेकर साइकिल के साथ ही नदी में उतर गया। पानी कमर से कुछ ही ऊपर तक था, लेकिन फिर भी साइकिल आगे बढ़ाने के लिए काफी जोर लगाना पड़ रहा था।
        अभी नदी का चौथाई हिस्सा ही पार कर सका था कि एक- एक कर मेरे दोनों पैर दलदल में जा धँसे। बाहर निकलने के लिए जितना ही जोर लगाता था, उतना ही अन्दर धँसता चला जा रहा था। जब जाँघ तक का हिस्सा कीचड़ में धँस गया तो मेरी हिम्मत जवाब देने लगी। भयाक्रान्त मन भी यह मान चुका था कि अब किसी भी पल मेरी जीवन लीला समाप्त हो सकती है।

        व्यक्ति को अपने जीवन के अन्तिम क्षण में किस प्रकार की अनुभूति होती है, इसका आभास मुझे उन पलों में होने लग गया था। सारे शरीर में जैसे बिजली सी कौंध गई थी। पिछला पूरा जीवन एकबारगी आँखों के आगे नाच उठा। कितने सारे काम पड़े हैं- मेरे मर जाने के बाद उन छोटे- छोटे बच्चों का क्या होगा?

        हताशा के इस दौर में पूज्य गुरुदेव की बात याद आयी। उन्होंने कहा था कि वे हमेशा हमारे आगे पीछे रहेंगे, विपत्तियों से हमारी रक्षा करेंगे। दूसरे पल मन में यह विचार उठा कि संत स्वभाव के हैं, इसलिए दिलासा दे दिया होगा। अब इतनी दूर वे बचाव के लिए कैसे आ सकते हैं?

        कीचड़ अब कमर से ऊपर आ चुका था। तभी दो लोग दूर से आते दिखाई पड़े। उनमें से एक ने ऊँची आवाज में पूछा- सुनो भाई, क्या तुम किसी खतरे में पड़े हो? मैंने जोर- जोर से हाथ हिलाते हुए कहा- जी हाँ भाईसाहब! मैं भयानक दलदल में फँस गया हूँ। कृपा करके मुझे बचा लीजिए।

        मेरी बात सुनकर वह अपने साथी को पीछे छोड़कर तेजी से दौड़ पड़ा। पास पहुँचकर उसने एक हाथ से लगभग पूरी तरह से डूब चुकी साइकिल थामी और दूसरे हाथ से मुझे एक ही झटके में कीचड़ से बाहर निकालकर किनारे की ओर बढ़ चला।

        ऊपर से दुबले- पतले दिखने वाले उस आदमी की अन्दरूनी ताकत देखकर मैं मन ही मन उसकी प्रशंसा कर रहा था। किनारे पर पहुँचकर मैंने उसे हृदय से धन्यवाद दिया। थोड़ी देर बाद मेरे सहज होने पर उसने पूछा- कहाँ से आए हैं...कहाँ जाना है...क्या काम है...?

        मैंने उसे बताया कि मुझे गोरामानसिंह के मुखिया जी के यहाँ यज्ञ कराने जाना है। उसने कहा- चलिए, मैं आपको वहाँ तक छोड़ देता हूँ।

        वह अपने मित्र के साथ आगे- आगे चल रहा था। उनके पीछे- पीछे चलते हुए मैंने जिज्ञासावश जब उनका परिचय पूछा तो मेरी जीवन रक्षा करने वाले ने अपना और अपने गाँव का नाम बताकर कहा कि उसका गाँव गोरामानसिंह के पास ही है। रास्ते भर इधर- उधर की बातें करते हुए आखिरकार हम लोग गोरामानसिंह पहुँच गए। एक बड़े से मकान के पास पहुँचकर वे दोनों रुके और उँगली से इशारा करते हुए कहा, यही मुखिया जी का घर है। अब आप हमें आज्ञा दीजिए। कृतज्ञता के भाव से भरकर मैंने हाथ जोड़ते हुए कहा- आपका यह उपकार मैं कभी नहीं भूलूँगा। आप दोनों कल के यज्ञ में आएँगे, तो मुझे बड़ी प्रसन्नता होगी। उन्होंने सहमति सूचक मुद्रा में गर्दन हिलायी और आगे बढ़ चले।

        मैं मुखिया जी के घर की ओर बढ़ा। मुखिया जी अपने दालान पर बैठे मेरी ही राह देख रहे थे। मुझे देखते ही उन्होंने उठकर मेरा स्वागत करते हुए कहा- मैं शाम से ही आपकी राह देख रहा था। रास्ते में कहीं कोई दिक्कत तो नहीं हुई? उनका इतना पूछना भर था कि मैं बोल पड़ा- मैं तो आज मरते- मरते बचा हूँ मुखिया जी।

        मुखिया जी ने अचकचाकर पूछा- क्यों क्या हुआ? मैंने भयानक दलदल से उबरने का अपना सारा वृत्तान्त एक ही साँस में कह सुनाया। मुझे बचाने वाले उस व्यक्ति का तथा उसके गाँव का नाम सुनकर मुखिया जी चौंक पड़े।

        उन्होंने कहा- यहाँ न तो इस नाम का कोई गाँव ही है और न आसपास के गाँव में ऐसा कोई आदमी। मुखिया जी को इस बात पर भी घोर आश्चर्य हो रहा था कि उस व्यक्ति से मेरी सारी बातचीत हिन्दी में होती रही। जब मुखिया जी ने मुझे यह बताया कि आसपास के किसी भी गाँव में एक भी व्यक्ति खड़ी बोली का जानकार नहीं है, तो मेरे भी आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा।

        सोचने की मुद्रा में मेरी आँखें बन्द हो गईं। मुझे लगा कि सामने परम पूज्य गुरुदेव खड़े हैं। मन्द- मन्द मुस्कराते हुए कह रहे हैं- तुम जहाँ भी जाते हो मैं तुम्हारे आगे- पीछे मौजूद रहता हूँ। आगे से अनजान राहों पर कुसमय में मत चला करना। भाव लोक में विचरण करते हुए गुरुदेव की इस प्यार भरी झिड़की से मेरी आँखें नम होती चली गईं।
               
प्रस्तुतिः चन्द्र किशोर सिंह
आरा बगीचा, मुंगेर (बिहार)    
First 27 29 Last


Other Version of this book



अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य -2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अदभुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य -3
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books



प्रज्ञावतार की विस्तार प्रक्रिया
Type: SCAN
Language: EN
...

प्रज्ञावतार की विस्तार प्रक्रिया
Type: SCAN
Language: EN
...

प्रज्ञावतार की विस्तार प्रक्रिया
Type: SCAN
Language: EN
...

प्रज्ञावतार की विस्तार प्रक्रिया
Type: SCAN
Language: EN
...

युग यज्ञ पद्धति - दीप यज्ञ
Type: SCAN
Language: HINDI
...

युग यज्ञ पद्धति - दीप यज्ञ
Type: SCAN
Language: HINDI
...

युग यज्ञ पद्धति - दीप यज्ञ
Type: SCAN
Language: HINDI
...

युग यज्ञ पद्धति - दीप यज्ञ
Type: SCAN
Language: HINDI
...

सुनसान के सहचर
Type: SCAN
Language: EN
...

सुनसान के सहचर
Type: SCAN
Language: EN
...

सुनसान के सहचर
Type: SCAN
Language: EN
...

सुनसान के सहचर
Type: SCAN
Language: EN
...

सुनसान के सहचर
Type: SCAN
Language: EN
...

हमारी वसीयत और विरासत
Type: SCAN
Language: EN
...

हमारी वसीयत और विरासत
Type: SCAN
Language: EN
...

हमारी वसीयत और विरासत
Type: SCAN
Language: EN
...

हमारी वसीयत और विरासत
Type: SCAN
Language: EN
...

हमारी वसीयत और विरासत
Type: SCAN
Language: EN
...

अमर वाणी - १
Type: SCAN
Language: HINDI
...

अमर वाणी - १
Type: SCAN
Language: HINDI
...

अमर वाणी - १
Type: SCAN
Language: HINDI
...

अमर वाणी - १
Type: SCAN
Language: HINDI
...

अमर वाणी - १
Type: SCAN
Language: HINDI
...

प्रज्ञावतार की विस्तार प्रक्रिया
Type: SCAN
Language: EN
...

Articles of Books

  • मन्त्र पूत जल का कमाल
  • ऐसे थे पूज्य गुरुदेव
  • घट-घट में बसै गुरु की चेतना
  • गुरु चिन्तन से मिली कारागार से मुक्ति
  • एक ही दिन में मिले तीन जीवनदान
  • मृत महिला को मिला नया जीवन
  • माँ के लहूलुहान हाथ
  • इसी बुड्ढे ने बचाई थी मेरी जान
  • काल के गाल से निकाला महाकाल ने
  • ईसाई चिकित्सक को दिव्य दिशा निर्देश
  • पल भर में सुनी गई अबला की पुकार
  • आस्था से मिली संकट से मुक्ति
  • चुटकियों में हुआ ब्लड कैंसर का इलाज
  • और वह तबादला वरदान बन गया!
  • नतमस्तक हो गये वनवासी लुटेरे
  • तुम सदा रहते साथ हमारे
  • फलित हुआ माँ का आश्वासन
  • ..और आखिर गुरुदेव ने सुनी उनकी बात
  • खण्डित होने से बचा समयदान का संकल्प
  • शक्तिपात से पल मात्र में हुआ कायाकल्प
  • मैं अभागन उन्हें पहचान न पाई
  • गुरुदेव ने मेरी दृष्टि बदल दी
  • तीर के वार से भी कुछ नहीं बिगड़ा
  • निर्मूल सिद्ध हुई डॉक्टरों की आशंका
  • आसान होता गया शान्तिकुञ्ज का सफर
  • जागृत हुई गाँव की सामूहिक शक्ति
  • मुँह की खानी पड़ी नाचती हुई मौत को
  • दलदल से निकाल कर दिखाई थी राह
  • संजीवनी साधना से मिला जीवनदान
  • कलियुग के सूर को मिले भगवान
  • तबादला स्थगित हुआ
  • महाकाल ने सुनी माता की उलाहना
  • बदली हुई दृष्टि ने जीवन बदल दिया
  • दीपयज्ञ ने दिया बेटी को जीवन दान
  • बच्चे को मिली ऑपरेशन से मुक्ति
  • ...तब भी मैं अकेली नहीं थी
  • सूक्ष्म शरीर से दिया आश्वासन
  • करोगे याद हमको पास अपने शीघ्र पाओगे
  • विनम्रता से विगलित हुआ अहंकार
  • गंगा में डूबने से बचाया एक बालक ने
  • गुरुर्वाक्यं ब्रह्मवाक्यं
  • आँखें फट पड़ीं आँखों के डाक्टर की
  • जहर की पुड़िया रखी रह गई
  • दो माह में दूर हुआ अल्सरेटिव कोलाइटिस
  • गुरु गायत्री दोऊ खड़े प्रारब्ध करे पार
  • याद करते ही आ पहुँचे शान्तिकुंज के देवदूत
  • परीक्षा के दिन हुआ बीमारी से बचाव
  • गुरुकार्य में साधनों की कमी नहीं रहती
  • पूरा हुआ शक्तिपीठ की स्थापना का संकल्प
  • योगक्षेमं वहाम्यहम्
  • प्रसाद में छिपा था पोलियो का इलाज
  • जाँच रिपोर्ट से चिकित्सक भी चकित
  • गायत्री महाविज्ञान है अवसाद की औषधि
  • तुम मेरा काम करो हम तुम्हारा काम करेंगे
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj