
मृत महिला को मिला नया जीवन
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घटना दिसम्बर सन् 1969 की है। युगऋषि पं. श्रीराम शर्मा आचार्य यज्ञ कराने प्रथमतः पटना पहुँचे। इस यज्ञ में शामिल होने के लिए मेरे पिताजी श्री विजय कुमार शर्मा अपनी माता जी- मेरी दादी- के साथ जमालपुर से आकर यज्ञ में शामिल हुए। विशाल जन- समूह के बीच हर्षोल्लास के साथ वैदिक रीति से यज्ञ का शुभारम्भ हुआ। यज्ञ की समाप्ति पर सभी अपने- अपने घर की ओर चल पड़े। पिताजी भी दादी जी के साथ मुंगेर की वापसी की ट्रेन पकड़ने पटना रेलवे स्टेशन पर आए। वहाँ पहुँचते ही दादी के पेट में अचानक बहुत तेज दर्द शुरू हुआ। लम्बी यात्रा और दिन भर की थकान से पेट में गैस बन जाने की आशंका को लेकर पिताजी ने दादी को नींबू- पानी पिलाया। दादी की तबीयत बजाय सुधरने के और भी बिगड़ती चली गई। दादी के मुँह से झाग निकलना शुरू हुआ और कुछ ही देर बाद दादी ने दम तोड़ दिया।
दादी को मरे हुए चार घण्टे गुजर चुके थे। चेहरे पर मक्खियाँ भिनभिनाने लगी थीं। लाश के चारों ओर भीड़ इकट्ठी हो गई थी। स्टेशन मास्टर रेलवे स्टेशन के अन्य कर्मचारियों के साथ लाश को जमालपुर भेजने की तैयारी में व्यस्त थे।
तभी प्लेटफार्म नं.४ के जन- समुदाय ने नारा लगाया- गुरुजी की जय...... गायत्री माता की जय.....। पिताजी प्लेटफार्म नम्बर- १ पर थे। नारे की ऊँची आवाज से उनका ध्यान प्लेटफार्म नं.४ पर गया। उन्होंने दूर से गुरुजी को देखा। दौड़कर रेल की पटरियों को फलाँगते हुए प्लेटफार्म नं.४ पर पहुँचे। पिताजी की आँखों के आँसू रुक नहीं रहे थे। उन्होंने कँपकँपाती हुई आवाज में गुरुजी से कहा- गुरुजी! मेरी माँ मर गई। उन्हें ......। आगे के शब्द पिताजी के गले में ही अटके रह गए। वे फूट- फूटकर रोने लगे। गुरुदेव ने पिताजी के कंधे पर हाथ रखा और साथ लेकर दो नं. प्लेटफार्म पर जाने के लिए पुल की ओर बढ़े। भीड़ पीछे- पीछे चल पड़ी। क्षण भर के लिए गुरुजी ने दादी की लाश को देखा और मुस्कुराते हुए बोल पड़े- उठा..उठा..माँ को उठा। पिता जी किंकर्तव्यविमूढ़ से खड़े रहे।
गुरुदेव के दुबारा कहने पर उन्होंने यंत्रवत माँ को उठाने की चेष्टा की। ...और आश्चर्य! दादी माँ सचमुच उठकर बैठ गईं। उस वक्त दादी की उम्र प्रौढ़ावस्था की दहलीज पर खड़ी थी। गुरुदेव ने पिताजी से कहा- माता जी को घर ले जा, अब इनकी उम्र दो गुनी हो चुकी है। पिताजी, दादी जी को लेकर खुशी- खुशी वापस जमालपुर पहुँचे। तभी से पूरा परिवार गुरुदेव को भगवान मानकर उनके युग परिवर्तन के अनुपम अभियान में जुट गया। युगऋषि का कथन अक्षरशः सत्य हुआ। दादी माँ गुरु- कृपा से उनकी दी हुई दोगुनी उम्र (80 वर्षों) तक आनन्दपूर्वक लोकसेवा करती रहीं और अन्ततः ऋषि सत्ता में विलीन हो गईं।
प्रस्तुतिः सुदर्शन कुमार
देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार, (उत्तराखण्ड)
दादी को मरे हुए चार घण्टे गुजर चुके थे। चेहरे पर मक्खियाँ भिनभिनाने लगी थीं। लाश के चारों ओर भीड़ इकट्ठी हो गई थी। स्टेशन मास्टर रेलवे स्टेशन के अन्य कर्मचारियों के साथ लाश को जमालपुर भेजने की तैयारी में व्यस्त थे।
तभी प्लेटफार्म नं.४ के जन- समुदाय ने नारा लगाया- गुरुजी की जय...... गायत्री माता की जय.....। पिताजी प्लेटफार्म नम्बर- १ पर थे। नारे की ऊँची आवाज से उनका ध्यान प्लेटफार्म नं.४ पर गया। उन्होंने दूर से गुरुजी को देखा। दौड़कर रेल की पटरियों को फलाँगते हुए प्लेटफार्म नं.४ पर पहुँचे। पिताजी की आँखों के आँसू रुक नहीं रहे थे। उन्होंने कँपकँपाती हुई आवाज में गुरुजी से कहा- गुरुजी! मेरी माँ मर गई। उन्हें ......। आगे के शब्द पिताजी के गले में ही अटके रह गए। वे फूट- फूटकर रोने लगे। गुरुदेव ने पिताजी के कंधे पर हाथ रखा और साथ लेकर दो नं. प्लेटफार्म पर जाने के लिए पुल की ओर बढ़े। भीड़ पीछे- पीछे चल पड़ी। क्षण भर के लिए गुरुजी ने दादी की लाश को देखा और मुस्कुराते हुए बोल पड़े- उठा..उठा..माँ को उठा। पिता जी किंकर्तव्यविमूढ़ से खड़े रहे।
गुरुदेव के दुबारा कहने पर उन्होंने यंत्रवत माँ को उठाने की चेष्टा की। ...और आश्चर्य! दादी माँ सचमुच उठकर बैठ गईं। उस वक्त दादी की उम्र प्रौढ़ावस्था की दहलीज पर खड़ी थी। गुरुदेव ने पिताजी से कहा- माता जी को घर ले जा, अब इनकी उम्र दो गुनी हो चुकी है। पिताजी, दादी जी को लेकर खुशी- खुशी वापस जमालपुर पहुँचे। तभी से पूरा परिवार गुरुदेव को भगवान मानकर उनके युग परिवर्तन के अनुपम अभियान में जुट गया। युगऋषि का कथन अक्षरशः सत्य हुआ। दादी माँ गुरु- कृपा से उनकी दी हुई दोगुनी उम्र (80 वर्षों) तक आनन्दपूर्वक लोकसेवा करती रहीं और अन्ततः ऋषि सत्ता में विलीन हो गईं।
प्रस्तुतिः सुदर्शन कुमार
देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार, (उत्तराखण्ड)