
गुरुकार्य में साधनों की कमी नहीं रहती
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आँवलखेड़ा में अर्ध महापूर्णाहुति का कार्यक्रम शुरू होने वाला था। निर्धारित समय से दो सप्ताह पूर्व हम आँवलखेड़ा गुरु ग्राम पहुँचे। कबीर नगर में आवास मिला। अगले दिन जितेन्द्र रघुवंशी भाई साहब ने उस आवास में ठहरे हुए सभी भाई बहिनों की गोष्ठी ली। वहाँ जौनपुर (उ.प्र.) के चौदह भाई एक साथ बैठे थे। मुझे जौनपुर के भाइयों के साथ टोली नायक बनाकर आगरा से पन्द्रह- बीस किलोमीटर दक्षिण उस स्थान पर जाने के लिए कहा गया, जहाँ से आँवलखेड़ा मार्ग जाता है। दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान से आने वाली बसें उसी स्थान से होकर गुजरती हैं।
हम सभी को वहाँ जाने हेतु एक जीप मिली थी। आगरा के भाई प्रमोद अग्रवाल जी के यहाँ से नाश्ते का पैकेट प्राप्त कर वहाँ जाना था। जिसमें हरियाणा, राजस्थान से आने वाले भाइयों- बहिनों को नास्ता कराकर आँवलखेड़ा के लिए मार्गदर्शन करना था। हम सभी भाई आगरा के अग्रवाल जी से एक दूसरी गाड़ी में ३५००० नाश्ते का पैकेट प्राप्त कर गन्तव्य स्थान में पहुँचे। दो पक्के कमरे सड़क के बगल में बने हुए थे। एक कमरे में नाश्ते के पैकेट रखे और एक में हम सभी ने अपने ठहरने विश्राम करने का स्थान बनाया। ४ बजे संध्या से अपना- अपना दायित्व सम्भाल लिया। चार भाइयों को नाश्ता हेतु बैठाने, चार को आने वाली बसों, गाड़ियों को रुकवाने, चार को नाश्ता लाने और दो भाइयों को यज्ञ स्थल जाने वालों के मार्गदर्शन का कार्य सौंपा गया। आने वाले भाइयों की संख्या और बस (गाड़ी) नं० रजिस्टर में दर्ज करने की जिम्मेवारी मैंने ली। तीसरे दिन शाम ४ बजे तक नाश्ते के पैकेट समाप्त होने लगा। एक भाई ने भण्डार गृह से आकर मुझे बतलाया- भाई साहब अब नाश्ते का लगभग दो ढाई हजार पैकेट बचे हुए हैं। मैंने राम प्रसाद गुप्ता जी को भेजकर अग्रवाल जी के यहाँ से ३५ हजार पैकेट और मँगवा लिए।
अगले दिन पुनः पैकेट घटने की सूचना पाकर मैंने गुप्ता जी को आगरा भेज दिया। लगभग ६ बजे शाम भण्डार गृह से दो भाइयों ने आकर बताया कि सौ डेढ़ सौ और पैकेट बचे हैं। उधर गुप्ता जी खाली हाथ लौट आए और बताया कि अग्रवाल भाई साहब ने हमें आगरा बुलाया है। हम ऐसी परिस्थिति के लिए कतई तैयार नहीं थे। नाश्ता समाप्त हो चला है। इतने लोगों को भूखे रखना पड़ेगा, सोचते ही खून सूखने लगा। इतने में भण्डार गृह के दोनों भाई मुझे और राम प्रसाद जी को बुलाकर ले गए ताकि परिस्थिति को हम सही रूप में जान सकें। भण्डार गृह पहुँचे तो वहाँ का दृश्य देखकर हम अवाक रह गए। कमरे में पैकेटों का अंबार लगा था। हम सभी की आँखों में आँसू आ गए। हे गुरु देव! आपने समय पर लाज रख ली। उसी दिन हमने इस बात को अनुभव किया कि गुरु देव के काम में कभी साधनों की कमी नहीं रहती।
प्रस्तुति :: परशुराम गुप्ता, पूर्वी जोन, शांतिकुंज (उत्तराखण्ड)
हम सभी को वहाँ जाने हेतु एक जीप मिली थी। आगरा के भाई प्रमोद अग्रवाल जी के यहाँ से नाश्ते का पैकेट प्राप्त कर वहाँ जाना था। जिसमें हरियाणा, राजस्थान से आने वाले भाइयों- बहिनों को नास्ता कराकर आँवलखेड़ा के लिए मार्गदर्शन करना था। हम सभी भाई आगरा के अग्रवाल जी से एक दूसरी गाड़ी में ३५००० नाश्ते का पैकेट प्राप्त कर गन्तव्य स्थान में पहुँचे। दो पक्के कमरे सड़क के बगल में बने हुए थे। एक कमरे में नाश्ते के पैकेट रखे और एक में हम सभी ने अपने ठहरने विश्राम करने का स्थान बनाया। ४ बजे संध्या से अपना- अपना दायित्व सम्भाल लिया। चार भाइयों को नाश्ता हेतु बैठाने, चार को आने वाली बसों, गाड़ियों को रुकवाने, चार को नाश्ता लाने और दो भाइयों को यज्ञ स्थल जाने वालों के मार्गदर्शन का कार्य सौंपा गया। आने वाले भाइयों की संख्या और बस (गाड़ी) नं० रजिस्टर में दर्ज करने की जिम्मेवारी मैंने ली। तीसरे दिन शाम ४ बजे तक नाश्ते के पैकेट समाप्त होने लगा। एक भाई ने भण्डार गृह से आकर मुझे बतलाया- भाई साहब अब नाश्ते का लगभग दो ढाई हजार पैकेट बचे हुए हैं। मैंने राम प्रसाद गुप्ता जी को भेजकर अग्रवाल जी के यहाँ से ३५ हजार पैकेट और मँगवा लिए।
अगले दिन पुनः पैकेट घटने की सूचना पाकर मैंने गुप्ता जी को आगरा भेज दिया। लगभग ६ बजे शाम भण्डार गृह से दो भाइयों ने आकर बताया कि सौ डेढ़ सौ और पैकेट बचे हैं। उधर गुप्ता जी खाली हाथ लौट आए और बताया कि अग्रवाल भाई साहब ने हमें आगरा बुलाया है। हम ऐसी परिस्थिति के लिए कतई तैयार नहीं थे। नाश्ता समाप्त हो चला है। इतने लोगों को भूखे रखना पड़ेगा, सोचते ही खून सूखने लगा। इतने में भण्डार गृह के दोनों भाई मुझे और राम प्रसाद जी को बुलाकर ले गए ताकि परिस्थिति को हम सही रूप में जान सकें। भण्डार गृह पहुँचे तो वहाँ का दृश्य देखकर हम अवाक रह गए। कमरे में पैकेटों का अंबार लगा था। हम सभी की आँखों में आँसू आ गए। हे गुरु देव! आपने समय पर लाज रख ली। उसी दिन हमने इस बात को अनुभव किया कि गुरु देव के काम में कभी साधनों की कमी नहीं रहती।
प्रस्तुति :: परशुराम गुप्ता, पूर्वी जोन, शांतिकुंज (उत्तराखण्ड)