
माँ के लहूलुहान हाथ
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मेरी धर्मपत्नी ने गुरुदेव के पास रहकर देव कन्याओं का शिविर किया था। विवाह के बाद उनके माध्यम से मैं भी गुरुदेव से जुड़ गया। पत्नी की पहली डिलीवरी के समय हम बहुत परेशान थे, वहाँ हमारे गाँव में न कोई साधन, न सहयोगी थे। उस परिस्थिति में हमारे पास प्रार्थना के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं था। डिलीवरी के दिन पत्नी बहुत तकलीफ में थीं। उनकी हालत देख मैं गुरु देव से प्रार्थना करने लगा। संयोग से समय पर एक नर्स मिल गई। उन्होंने बड़ी सहजता के साथ डिलीवरी करा दी। तब से गुरु देव के प्रति श्रद्धान्वित मैं कोई काम शुरू करने से पहले उनसे अवश्य पूछता हूँ।
सन् १९९१ में मैं राइस मिल चलाने जा रहा था। माताजी से आशीर्वाद लेने गया। राइस मिल की बात सुनकर माताजी गम्भीर हो गईं। बोलीं- दुकान पर तो बैठ रहा है, क्या दिक्कत है? मैंने कहा- भाई लोगों के पास काम नहीं है इसलिए मिल लगाना चाहता हूँ। माताजी ने अनुमति देते हुए कहा- ठीक है, जा मशीन लगा। मैंने राइस मिल ले ली। ठेका में काम शुरू किया। लेकिन साल भर में लगभग छः महीने मिल बंद रही। उसके बाद बहुत काम भी नहीं हुआ। फिर भी उस साल नुकसान नहीं हुआ।
दूसरे साल अच्छी तरह मिल चला सकें इसके लिए फिर आशीर्वाद लेने गया तो माताजी ने कहा इस साल चला ले, लेकिन अगले साल मिल मत चलाना। इस साल भी ज्यादा काम तो नहीं हुआ, लेकिन नुकसान भी नहीं हुआ। तीसरे साल यानि १९९३ में मैंने खुद अपने दम पर मिल चलाया। इस बार चार- पाँच गुना अधिक काम होने के बावजूद मेरा बहुत नुकसान हुआ। करीब बीस लाख रुपये का नुकसान हो गया। इसी साल मिल में एक दुर्घटना हुई। राइस मिल बॉयलर फट गया। लगभग २०- २५ मजदूर काम कर रहे थे किसी को कुछ नहीं हुआ। बॉयलर के टुकड़े बिखर कर आस- पास के घरों के ऊपर गिरे; रोड पर गिरे। किन्तु आश्चर्य की बात कि किसी को चोट नहीं आई।
उसी रात माताजी सपने में दिखाई दीं। उन्होंने कहा- मानता नहीं, देख मेरे हाथ लहूलुहान हो गए हैं। मैं देखकर सन्न रह गया। उनकी दोनों हथेलियाँ खून से लथपथ थीं। अब समझ में आया कि इतनी बड़ी दुर्घटना में किसी के हताहत न होने के पीछे माताजी का सक्रिय प्रयास था। मुझे अपनी मनमानी पर अफसोस होने लगा। माताजी ने पहले ही मना किया था। माँ के उस वत्सल रूप को देख मेरा हृदय गदगद हो गया। आज भी उस क्षण को याद करता हूँ तो आँखों में आँसू भर आते हैं।
प्रस्तुति :: पुरुषोत्तम सुल्तानिया
जानकी ज्यापा (छत्तीसगढ़)
सन् १९९१ में मैं राइस मिल चलाने जा रहा था। माताजी से आशीर्वाद लेने गया। राइस मिल की बात सुनकर माताजी गम्भीर हो गईं। बोलीं- दुकान पर तो बैठ रहा है, क्या दिक्कत है? मैंने कहा- भाई लोगों के पास काम नहीं है इसलिए मिल लगाना चाहता हूँ। माताजी ने अनुमति देते हुए कहा- ठीक है, जा मशीन लगा। मैंने राइस मिल ले ली। ठेका में काम शुरू किया। लेकिन साल भर में लगभग छः महीने मिल बंद रही। उसके बाद बहुत काम भी नहीं हुआ। फिर भी उस साल नुकसान नहीं हुआ।
दूसरे साल अच्छी तरह मिल चला सकें इसके लिए फिर आशीर्वाद लेने गया तो माताजी ने कहा इस साल चला ले, लेकिन अगले साल मिल मत चलाना। इस साल भी ज्यादा काम तो नहीं हुआ, लेकिन नुकसान भी नहीं हुआ। तीसरे साल यानि १९९३ में मैंने खुद अपने दम पर मिल चलाया। इस बार चार- पाँच गुना अधिक काम होने के बावजूद मेरा बहुत नुकसान हुआ। करीब बीस लाख रुपये का नुकसान हो गया। इसी साल मिल में एक दुर्घटना हुई। राइस मिल बॉयलर फट गया। लगभग २०- २५ मजदूर काम कर रहे थे किसी को कुछ नहीं हुआ। बॉयलर के टुकड़े बिखर कर आस- पास के घरों के ऊपर गिरे; रोड पर गिरे। किन्तु आश्चर्य की बात कि किसी को चोट नहीं आई।
उसी रात माताजी सपने में दिखाई दीं। उन्होंने कहा- मानता नहीं, देख मेरे हाथ लहूलुहान हो गए हैं। मैं देखकर सन्न रह गया। उनकी दोनों हथेलियाँ खून से लथपथ थीं। अब समझ में आया कि इतनी बड़ी दुर्घटना में किसी के हताहत न होने के पीछे माताजी का सक्रिय प्रयास था। मुझे अपनी मनमानी पर अफसोस होने लगा। माताजी ने पहले ही मना किया था। माँ के उस वत्सल रूप को देख मेरा हृदय गदगद हो गया। आज भी उस क्षण को याद करता हूँ तो आँखों में आँसू भर आते हैं।
प्रस्तुति :: पुरुषोत्तम सुल्तानिया
जानकी ज्यापा (छत्तीसगढ़)