
तुम मेरा काम करो हम तुम्हारा काम करेंगे
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मेरी पत्नी को प्रायः पेट में दर्द बना रहता था। उस समय मैं बिहार में सरकारी नौकरी कर रहा था। घटना सन् १९९० की है। एक दिन अचानक पत्नी के पेट में दर्द उठा, दर्द इतना असहनीय था कि घर के सभी लोग परेशान हो उठे। मैं उस समय ऑफिस में था। मेरा नाती घबराया हुआ मेरे पास आया और मुझसे बताया कि नानी की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गई है। आप जल्दी चलिए। मैं तुरन्त भागकर घर पहुँचा। पत्नी को लाकर अस्पताल में भर्ती करवा दिया। अस्पताल में दवा इलाज बराबर चलता रहा, लेकिन कोई राहत नहीं मिल रही थी। तीन दिन के बाद मैंने डॉक्टर से पत्नी को डिस्चार्ज करने की पेशकश की।
चूँकि सन् १९९० के श्रद्धांजलि समारोह में मुझे हरिद्वार जाना था। रिजर्वेशन पहले से ही करवा रखा था। इस वजह से मैं बहुत परेशान था कि पत्नी का इलाज कराऊँ या हरिद्वार जाऊँ। पशोपेश की स्थिति में दिन बीतते रहे और अन्ततः वह दिन भी आ पहुँचा, जिस दिन मेरी ट्रेन जालियाँवाला बाग से हरिद्वार के लिए थी। मैं बहुत सोच में पड़ गया था कि क्या करूँ। तभी याद आया, गुरुदेव माता जी के आश्वासन तुम्हारे घर- परिवार के कुशलक्षेम का हम ध्यान रखेंगे, तुम मेरा काम करो, हम तुम्हारा काम करेंगे। मैं जिनकी शरण में हूँ वे सर्वसमर्थ हैं इस बात का संज्ञान था फिर भी असमंजस की स्थिति ऐसी थी कि कुछ निर्णय नहीं कर पा रहा था।
अन्ततः निर्णय भवितव्य पर छोड़कर मैं वंदनीया माता जी का ध्यान करने बैठ गया। द्रौपदी, ग्राह- गजराज, ध्रुव- प्रह्लाद, सुदामा जैसे अनेकों उदाहरण चलचित्र की भाँति मस्तिष्क में उभरते रहे। ध्यान से उठा, तो हमारी बुद्धि निश्चयात्मक हो चुकी थी। मैंने अपनी पत्नी से बड़े विश्वास भरे शब्दों में कहा कि अब तुम्हारा सब रोग सामान्य हो जायेगा। मैं माताजी से तुम्हारे लिये प्रार्थना करूँगा। उन्होंने सहर्ष स्वीकृति प्रदान की। मैंने तुरन्त सामान उठाया तथा स्टेशन की ओर चल दिया।
दूसरे दिन हरिद्वार पहुँचकर जब माताजी से मिला तो पत्नी के बारे में सारी बातें बताई। माताजी ने पत्नी का नाम तथा रोग के बारे में लिखकर देने को कहा और बोलीं सब ठीक हो जाएगा। इसके बाद मैं श्रद्धांजलि समारोह के कार्यक्रमों में इस तरह तन- मन से रम गया कि घर परिवार का फिर ध्यान ही नहीं आया। कार्यक्रम समाप्त हुआ तो मैं घर वापस आने पर पत्नी से दर्द के बारे में पूछा तो वह बोली कि आपके जाने के बाद से न जाने दर्द कहाँ चला गया। आज लगभग २१ वर्ष बीत गए लेकिन अब तक वह बिल्कुल ठीक है, दर्द की कोई शिकायत नहीं है। इस घटना से मैं इस तरह प्रभावित हुआ कि मिशन के प्रति समर्पित हो गया तथा पूज्यवर की अपेक्षाओं के अनुरूप आत्म निर्माण और लोक कल्याण के कार्यों में निरंतर लगा रहता हूँ। आज भी इसी सेवा में समर्पित हूँ।
प्रस्तुति :: बालेश्वर प्रसाद, पूर्वी सिंहभूम (झारखण्ड)
चूँकि सन् १९९० के श्रद्धांजलि समारोह में मुझे हरिद्वार जाना था। रिजर्वेशन पहले से ही करवा रखा था। इस वजह से मैं बहुत परेशान था कि पत्नी का इलाज कराऊँ या हरिद्वार जाऊँ। पशोपेश की स्थिति में दिन बीतते रहे और अन्ततः वह दिन भी आ पहुँचा, जिस दिन मेरी ट्रेन जालियाँवाला बाग से हरिद्वार के लिए थी। मैं बहुत सोच में पड़ गया था कि क्या करूँ। तभी याद आया, गुरुदेव माता जी के आश्वासन तुम्हारे घर- परिवार के कुशलक्षेम का हम ध्यान रखेंगे, तुम मेरा काम करो, हम तुम्हारा काम करेंगे। मैं जिनकी शरण में हूँ वे सर्वसमर्थ हैं इस बात का संज्ञान था फिर भी असमंजस की स्थिति ऐसी थी कि कुछ निर्णय नहीं कर पा रहा था।
अन्ततः निर्णय भवितव्य पर छोड़कर मैं वंदनीया माता जी का ध्यान करने बैठ गया। द्रौपदी, ग्राह- गजराज, ध्रुव- प्रह्लाद, सुदामा जैसे अनेकों उदाहरण चलचित्र की भाँति मस्तिष्क में उभरते रहे। ध्यान से उठा, तो हमारी बुद्धि निश्चयात्मक हो चुकी थी। मैंने अपनी पत्नी से बड़े विश्वास भरे शब्दों में कहा कि अब तुम्हारा सब रोग सामान्य हो जायेगा। मैं माताजी से तुम्हारे लिये प्रार्थना करूँगा। उन्होंने सहर्ष स्वीकृति प्रदान की। मैंने तुरन्त सामान उठाया तथा स्टेशन की ओर चल दिया।
दूसरे दिन हरिद्वार पहुँचकर जब माताजी से मिला तो पत्नी के बारे में सारी बातें बताई। माताजी ने पत्नी का नाम तथा रोग के बारे में लिखकर देने को कहा और बोलीं सब ठीक हो जाएगा। इसके बाद मैं श्रद्धांजलि समारोह के कार्यक्रमों में इस तरह तन- मन से रम गया कि घर परिवार का फिर ध्यान ही नहीं आया। कार्यक्रम समाप्त हुआ तो मैं घर वापस आने पर पत्नी से दर्द के बारे में पूछा तो वह बोली कि आपके जाने के बाद से न जाने दर्द कहाँ चला गया। आज लगभग २१ वर्ष बीत गए लेकिन अब तक वह बिल्कुल ठीक है, दर्द की कोई शिकायत नहीं है। इस घटना से मैं इस तरह प्रभावित हुआ कि मिशन के प्रति समर्पित हो गया तथा पूज्यवर की अपेक्षाओं के अनुरूप आत्म निर्माण और लोक कल्याण के कार्यों में निरंतर लगा रहता हूँ। आज भी इसी सेवा में समर्पित हूँ।
प्रस्तुति :: बालेश्वर प्रसाद, पूर्वी सिंहभूम (झारखण्ड)