• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • सत्य को तथ्य की स्थिति तक पहुंचाया जाय
    • विवेक का अनुशासन मानें
    • संयम बरतें सुखी रहें
    • कर्त्तव्य पालन का पुण्य परमार्थ
    • अनुशासन और संगठन
    • आदर्शों का निर्वाह-व्रतशीलता से
    • स्नेह-सौजन्य की मोदभरी प्रक्रिया
    • पराक्रम करें—पुरुषार्थ अपनायें
    • सहकारिता के अधिकाधिक विस्तार की आवश्यकता
    • परमार्थ की उदारता
    • अध्यात्म जगत के पंचशील
    • मानवी गरिमा के प्रति आस्था
    • मौलिक अधिकारों की मांग उभरे
    • न्यायनिष्ठा को क्षति न पहुंचे
    • आत्मोत्कर्ष के लिए ईश्वर आस्था
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • सत्य को तथ्य की स्थिति तक पहुंचाया जाय
    • विवेक का अनुशासन मानें
    • संयम बरतें सुखी रहें
    • कर्त्तव्य पालन का पुण्य परमार्थ
    • अनुशासन और संगठन
    • आदर्शों का निर्वाह-व्रतशीलता से
    • स्नेह-सौजन्य की मोदभरी प्रक्रिया
    • पराक्रम करें—पुरुषार्थ अपनायें
    • सहकारिता के अधिकाधिक विस्तार की आवश्यकता
    • परमार्थ की उदारता
    • अध्यात्म जगत के पंचशील
    • मानवी गरिमा के प्रति आस्था
    • मौलिक अधिकारों की मांग उभरे
    • न्यायनिष्ठा को क्षति न पहुंचे
    • आत्मोत्कर्ष के लिए ईश्वर आस्था
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - धर्म के दस लक्षण और पंचशील

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT


परमार्थ की उदारता

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 9 11 Last
उच्च कोटि के स्वार्थ को परमार्थ कहते हैं। मोटी दृष्टि से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि परमार्थ में अपने को पड़ता घाटा है और दूसरे लाभ उठाते हैं, पर वास्तविकता यह है कि इसमें दोनों पक्ष लाभ उठाते हैं। जबकि स्वार्थ साधन से वह व्यक्ति भी घाटे में रहता है जो तात्कालिक उपलब्धि को देखकर अपने को लाभान्वित हुआ एवं नफे में रहा मानता रहता है।
सत्प्रयोजनों के लिए सज्जनों के माध्यम से यदि कुछ आर्थिक, परमार्थ परक या भावनात्मक अनुदान दिया जाय, तो वह व्यर्थ नहीं जाता, वरन् अनेक गुना होकर वापिस लौटता है। इसमें बीज का उदाहरण सबसे अधिक फिट बैठता है। बीज गलता है, अंकुर बनकर फूटता है। जिसके खेत में उगता है, वह उसकी भावी परिणति का अनुमान लगाता है और सींचने, खाद देने का प्रबन्ध करता है। इसके बाद पौधा बढ़ता विकसित होता चला जाता है और फल-फूलों से लदा वृक्ष बनता है। जो फल आते हैं, उनमें कई-कई बीज होते हैं। एक बार में सैकड़ों की संख्या में फल आते हैं, उनमें कई-कई बीज होते हैं। एक बार में सैकड़ों की संख्या में फल आते और उनमें हजारों की संख्या में बीज होते हैं। इन सबको भी यदि बोया-उगाया जा सके, तो एक वृक्ष से उसके जीवन में उत्पन्न वृक्ष के बीजों की संख्या लाखों तक पहुंच सकती है यदि वह बीज गलना स्वीकार न करता, तो अपनी सामान्य स्थिति भी चिरकाल तक बनाये नहीं रह सकता था। उसमें घुन जैसे कीड़े लग जाते और खोखला बनाकर समाप्त कर देते। यही उदाहरण सर्वत्र लागू होता है। उपकारी प्रवृत्ति व्यक्ति की गरिमा बढ़ाती है। उसकी उदारता सम्पर्क क्षेत्र में सभी को प्रभावित करती है। यह सहज अनुमान लगाया जाता है कि यह व्यक्ति स्वार्थ को परमार्थ पर निछावर कर सकता है, तो इसका चरित्रवान होना भी स्वाभाविक है। जिसे चरित्रवान समझा जाता है, उसकी प्रामाणिकता पर सहज विश्वास होता है। उसके साथ व्यवहार करने के लिए सभी उत्सुक रहते हैं। इसलिए अनेकों साथी सहयोगी उसे अनायास ही मिलते रहते हैं।
हर मनुष्य साथी-सहयोगी चाहता है। अपना परिकर, मित्र-मंडल बढ़ाना चाहता है, पर साथ ही यह संदेह भी करता रहता है कि कहीं खोटे के साथ पाला न पड़े और ठगे जाने की नौबत न आये। इसलिए सज्जनों की तलाश रहती है। व्यक्तिगत सज्जनता की परख कैसे हो? मोटी पहचान वाणी से होती है। अपनी नम्रता और दूसरों की प्रशंसा करने वाले मन भाते और सज्जन समझे जाते हैं, पर यह आडंबर तो छली लोग और भी अच्छी तरह बना लेते हैं। ऐसी दशा में यह संदेह बना ही रहता है कि मधुरभाषी दीखने वाला कहीं कपटी न हो। इस संदेह का निवारण उसके उदार व्यवहार को देखकर ही होता है, क्योंकि उदारता उसी से बन पड़ती है जो स्वार्थ-त्याग के लिए उद्यत होता है। निजी लाभ में कटौती किये बिना परमार्थ बन ही नहीं सकता। निःस्वार्थ सेवा-साधना करने के लिए हृदय की विशालता चाहिए। जो दूसरों के दुःख से दुःखी और दूसरे के सुख से सुखी हो सकता है, उसी के लिए यह संभव है कि उदारता बरते, दूसरों की सहायता करे। इसके लिए अपनी सुविधाओं में कटौती करके ही वह बचत की जा सकती है, जो परमार्थ के काम आये। अपनी सुविधाओं में कटौती कर सकना किसी आदर्शवादी के लिए ही संभव है। जिसमें आत्म संयम अपनाने का साहस है, वही यह भी कर सकता है कि अपने समय, श्रम, ज्ञान, साधन दूसरों को देने के लिए कदम बढ़ा सके। यह श्रृंखला जहां चरितार्थ होती दीखती है; वहां सज्जनता के प्रति सहज विश्वास होता है। इतनी जानकारी के प्रति विश्वस्त हो जाने पर लोग उसके साथ मित्र भाव स्थापित करते हैं, प्रशंसक बनते हैं, और साथ ही मैत्री बढ़ाते हैं। मैत्री में स्वभावतः यह होता है कि जिसके साथ सद्भाव स्थापित हुआ है, उसके कामों में भी हाथ बंटाया जाय। आवश्यकतानुसार उसे सहयोग दिया जाय उदार चेता देखते हैं कि उनने थोड़े लोगों के साथ आत्मीयता बरती और सेवा सहायता की पर उसके बदले उन्हें अन्य लोगों से वैसा ही उदार व्यवहार मिलना आरम्भ हो गया। इस प्रकार एक अनाज का दाना बोने पर सौ दाने उत्पन्न होने वाला उदाहरण सहज ही चरितार्थ होता है। उदारता का व्यवहार कभी घाटे का सौदा नहीं होता। कुछ के साथ बरती गई उदारता अनेकों का सहयोग—सद्भाव लेकर वापस लौटती है। इस प्रकार व्यवसायिक दृष्टि से भी उदारता घाटे का सौदा सिद्ध नहीं होती। परमार्थ की दृष्टि से तो उसका अपना विशिष्ट महत्व है ही। उससे आत्मबल बढ़ता है, संतोष मिलता है और चरित्र में निखार आता है। इस प्रकार सेवा-साधना का महत्व समझने वाले और उसे चरितार्थ करते रहने वाले कभी घाटे में नहीं रहते। यदि आर्थिक दृष्टि से कुछ हानि उठानी भी पड़े, तो उसकी भरपाई उस प्रतिक्रिया से हो जाती है, जो कुछ की सहायता के बदले बहुतों की सद्भावना साथ लेकर वापिस लौटती है।
स्वार्थी अनुदार होता है। वह अपना ही लाभ सोचता है। इस ललक में वह दूसरों को होने वाली हानि का अनुमान नहीं लगा पाता। उचित आदान-प्रदान तो सहज स्वभावतः होता रहता है। उसकी गाड़ी व्यावसायिक आधार पर भी चलती रहती है, किन्तु यह हर किसी से नहीं बन पड़ता कि जरूरतमंदों की आवश्यकता, अपनी आवश्यकता से बढ़कर समझे और निज की सुविधा को घटाकर उस बचत से दूसरों के अभाव की पूर्ति करे। जो ऐसा कर पाते हैं, वे उदार हृदय समझे जाते हैं और उनका व्यक्तित्व प्रामाणिक गिना जाता है। अनेकों उसके प्रशंसक एवं सहयोगी बनते हैं। साथ ही उसके कार्यों में हाथ बंटाने के लिए भी तैयार रहते हैं। महामानवों के उत्कर्ष के पीछे वही विद्या काम करती हुई दिखाई देती है। जिनने सेवा का व्रत लिया प्रामाणिकता सिद्ध की, सहयोग पाया और जन-समर्थन से ऊंचे पद पर जा पहुंचे, विशिष्ट व्यक्तियों में गिने गये और सेवा के बदले सहयोग का क्रम चलते चलते वे उन्नति के उच्च शिखर तक जा पहुंचे, प्रख्यात हुए और अपना उदाहरण अनेकों के लिए अपनाये जाने योग्य बनाकर छोड़ गये।
समाज का गठन इसी आधार पर हुआ है कि इसमें उदारता का बढ़ा-चढ़ा परिचय देने वाला दूसरों का विश्वास पात्र बनता है और उनके बीच मैत्री सरलता और सघनता पूर्वक चलने लगती है। उदारता के आधार पर परिवार से लेकर मित्र परिकर एवं समाज के बीच संगठना उत्पन्न होती है। उसकी दृढ़ता और आदर्शवादिता के प्रभाव से सम्बद्ध परिवार भली प्रकार प्रभावित होता है और वह परम्परा ही एक प्रकार से चल पड़ती है, जिससे अनेकों को अनेक प्रकार से लाभान्वित होने का अवसर मिलता है।
उदारता वहां अनर्थकारी सिद्ध होती है, जब वह कुपात्रों के हाथ कुकृत्यों के लिए थमाई जाय। ऐसे लोगों की कमी नहीं, जिनका स्वभाव एवं व्यवसाय ही दूसरों को ठगना है। वे अपने दोष-दुर्गुणों के कारण हेय स्थिति में पहुंचते हैं और कठिनाई के आकस्मिक होने का बहाना बनाकर करुणा उपजाते और उस उभरी हुई भाव-सम्वेदना का अनुचित लाभ उठाने के प्रयत्न में सफल होते रहते हैं। ऐसे लोगों से सतर्क रहने की आवश्यकता है, अन्यथा ठगी की घात लग जाने पर अन्यान्यों को उसका पता चलते ही अविश्वास का विस्तार होता है। दूसरे, वास्तविक आवश्यकता वालों को भी इस अविश्वास के माहौल में वंचित रहना पड़ता है।
उदारता के बदले मिलने वाला आत्म-संतोष स्वयं अपने आप में एक दैवी वरदान है। अंतःकरण की प्रसन्नता प्रकारान्तर से व्यक्तित्व के अनेक पक्षों को विकसित करती है। यह लाभ इतना बड़ा है कि बदले में अनुदान का प्रतिदान ना भी मिले, तो भी कोई घाटा प्रतीत नहीं होता। सत्प्रवृत्ति संवर्धन के लिए यदि अपना उदाहरण प्रस्तुत किया जा सके, तो उस परम्परा से भी बहुमूल्य लोकहित होते हुए देखा जा सकता है।
First 9 11 Last


Other Version of this book



धर्म के दस लक्षण और पंचशील
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books



गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

विश्व की महान नारियाँ-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

विश्व की महान नारियाँ-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

विश्व की महान नारियाँ-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

विश्व की महान नारियाँ-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

संत विनोबा भावे
Type: SCAN
Language: HINDI
...

त्योहार और व्रत
Type: SCAN
Language: HINDI
...

युगगीता (भाग-४)
Type: TEXT
Language: EN
...

युगगीता (भाग-४)
Type: TEXT
Language: EN
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • सत्य को तथ्य की स्थिति तक पहुंचाया जाय
  • विवेक का अनुशासन मानें
  • संयम बरतें सुखी रहें
  • कर्त्तव्य पालन का पुण्य परमार्थ
  • अनुशासन और संगठन
  • आदर्शों का निर्वाह-व्रतशीलता से
  • स्नेह-सौजन्य की मोदभरी प्रक्रिया
  • पराक्रम करें—पुरुषार्थ अपनायें
  • सहकारिता के अधिकाधिक विस्तार की आवश्यकता
  • परमार्थ की उदारता
  • अध्यात्म जगत के पंचशील
  • मानवी गरिमा के प्रति आस्था
  • मौलिक अधिकारों की मांग उभरे
  • न्यायनिष्ठा को क्षति न पहुंचे
  • आत्मोत्कर्ष के लिए ईश्वर आस्था
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj