• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • धर्म-सार
    • धर्म कथा
    • धर्म और धार्मिकता
    • धर्म का तत्त्वज्ञान
    • धर्म का स्वरूप
    • धर्मो विश्वस्य जगतः प्रतिष्ठा
    • धर्म- एक शास्त्रीय दृष्टिकोण
    • धर्म और शास्त्र का तुलनात्मक विवेचन
    • धर्मो हि परमो लोके धर्मे सत्यं प्रतिष्ठतम्
    • धर्म और तत्वदर्शन की पृष्ठभूमि
    • धर्म एक परिष्कृत दृष्टिकोण
    • धर्म के तीन प्रश्न
    • धर्मो रक्षति रक्षितः
    • धार्मिकता का पर्याय चरित्रनिष्ठा
    • धर्म जीवन की दिशा
    • देवत्व प्राप्ति का मार्ग है—धर्म
    • धर्म परिवर्तनशील है या अपरिवर्तनशील?
    • पाप और पुण्य का रहस्य
    • धर्म बिना ज्ञान अधूरा है
    • धर्म - धारणा की उपेक्षा उसकी विकृतियों के कारण
    • पंगु धर्म को सहारा दीजिए
    • धर्म बिना जीवन नहीं
    • क्रांति तो धर्म क्षेत्र में भी लानी होगी
    • वैरागी
    • परम पूज्य गुरुदेव का सन्देश
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • धर्म-सार
    • धर्म कथा
    • धर्म और धार्मिकता
    • धर्म का तत्त्वज्ञान
    • धर्म का स्वरूप
    • धर्मो विश्वस्य जगतः प्रतिष्ठा
    • धर्म- एक शास्त्रीय दृष्टिकोण
    • धर्म और शास्त्र का तुलनात्मक विवेचन
    • धर्मो हि परमो लोके धर्मे सत्यं प्रतिष्ठतम्
    • धर्म और तत्वदर्शन की पृष्ठभूमि
    • धर्म एक परिष्कृत दृष्टिकोण
    • धर्म के तीन प्रश्न
    • धर्मो रक्षति रक्षितः
    • धार्मिकता का पर्याय चरित्रनिष्ठा
    • धर्म जीवन की दिशा
    • देवत्व प्राप्ति का मार्ग है—धर्म
    • धर्म परिवर्तनशील है या अपरिवर्तनशील?
    • पाप और पुण्य का रहस्य
    • धर्म बिना ज्ञान अधूरा है
    • धर्म - धारणा की उपेक्षा उसकी विकृतियों के कारण
    • पंगु धर्म को सहारा दीजिए
    • धर्म बिना जीवन नहीं
    • क्रांति तो धर्म क्षेत्र में भी लानी होगी
    • वैरागी
    • परम पूज्य गुरुदेव का सन्देश
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login





Books - धर्म पथ

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT


धर्म का तत्त्वज्ञान

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 3 5 Last


विघटन एवं विनाश के कगार पर खड़ी मानव जाति को आज धर्म की, धर्माचरण की अत्यधिक आवश्यकता है। यही वह शाश्वत सत्ता है जो संसार का कल्याण करने में सक्षम है, पर यह धर्म इस महान लक्ष्य की आपूर्ति तभी कर सकता है, जब वह सांप्रदायिकता की संकीर्ण परिधि से बाहर निकले और स्वस्थ तथा समग्र रूप में प्रस्तुत हो। इसके लिए धर्म के सही स्वरूप को समझना आवश्यक है।

‘धर्म’ शब्द अपने स्वरूप और लक्ष्य को स्वयं स्पष्ट करता है। धर्म से तात्पर्य है, वह वस्तु जो समस्त विश्व को धारण कर रही है, अर्थात धर्म समस्त संसार का मूल आधार और समाज की एकता को मूर्तिमान करने वाला एक सशक्त माध्यम है। इसके सही स्वरूप को जनसामान्य की दृष्टि में और भी बोधगम्य बनाने के लिए महाभारत तथा श्रीमद्भागवत पुराण में धर्म की पत्नियों की संख्या बताई गई है। यह अलंकारिक वर्णन है जो धर्म के स्वरूप को स्पष्ट करता है। महाभारत के अनुसार कीर्ति, लक्ष्मी, धृति, मेधा, पुष्टि, श्रद्धा, क्रिया, बुद्धि, लज्जा तथा मति धर्म की पत्नियों के नाम हैं। इस अलंकारिक वर्णन के पीछे शास्त्रकार का भाव यह है कि इनके बिना धर्म अपूर्ण है। इन्हें इसकी वे शाश्वत विशेषताएं कहा जा सकता है जो प्राण के रूप में सभी धर्मों में शब्दांतर से किसी न किसी रूप में विद्यमान हैं। ये धर्म की अपरिवर्तनीय विशेषताएं हैं। इनके अभाव में धर्म को मात्र कर्मकांडों का कलेवर का समुच्चय समझ लिया जाता है।

बौद्ध ग्रंथों में धर्म की व्याख्या करते हुए लिखा गया है कि यह एक शाश्वत सत्ता तथा विश्व का प्राण है। इसे समस्त संसार को परिचालित करने वाला सिद्धांतों का ऐसा समुच्चय समझा जा सकता है, जिसमें प्राणिमात्र का कल्याण सन्निहित है। सूर्य, चंद्र, पुष्प, पवन, पर्वत, सरिता, पावक अन्न आदि सभी अपना-अपना धर्म निभा रहे हैं। इसीलिए जीवन चल रहा है तथा जगत स्थिर है। जिस दिन सूर्य अपना कार्य न करेगा, अग्नि अपना दाहक धर्म खो देगी, उस दिन विश्व का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। मनुष्य जीवन में धर्म का अवतरण भी इसी प्रकार होना चाहिए, जो समस्त विश्व को अपने भीतर समाहित कर ले। वास्तव में धर्म का अर्थ है, आत्मा को आत्मा के रूप में उपलब्ध करना, सत्य कस संस्पर्श प्राप्त करना, तत्व की प्रतीति करना, उपलब्धि करना कि मैं आत्मा स्वरूप हूं और अनंत परमात्मा एवं उसके अनेक अच्छे अवतारों से मेरा युग-युग का अविच्छिन्न संबंध है। गिरिजा, मंदिर, मस्जिद, मत-मतांतर विविध अनुष्ठान आदि तो पौधे की रक्षा के लिए लगाए गए घेरे के समान हैं। यदि आगे बढ़ना है, आत्मिक प्रगति करनी है तो अंत में इस घेरे को हटाना ही पड़ेगा। धर्म न तो सिद्धांतों की थोथी बकवास है, न मतमतांतरों का प्रतिपादन और खंडन है, और न ही बौद्धिक सहमति है। इसी प्रकार धर्म न तो शब्द होता है, न नाम और न संप्रदाय, वरन् इसका अर्थ होता है आध्यात्मिक अनुभूति। जिन्हें अनुभव हुआ, वे ही मनुष्य जाति के श्रेष्ठ आचार्य हो सकते हैं, वे ही ज्योति की शक्ति हैं। धर्म के नाम पर होने वाले सभी प्रकार के झगड़े-झंझटों से केवल यही प्रकट होता है कि आध्यात्मिकता का मार्ग समझ में आया नहीं है।

मनीषियों ने धर्म के दो भाग बताए हैं, पहला कलेवर, दूसरा प्राण। कलेवर समय-समय पर आवश्यकता के अनुरूप बदलता रहता है, पर प्राण की सत्ता सदा एक जैसी रहती है। प्राण धर्म के वे शाश्वत सिद्धांत हैं, जिन पर देश-काल की परिस्थितियों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वे सदा एक जैसे बने रहते हैं। धर्म का अस्तित्व इस प्राण सत्ता पर टिका हुआ है, जबकि कलेवर परिवर्तनशील है और समय-समय पर उसमें सुधार एवं परिवर्तन की आवश्यकता पड़ती है। कहना न होगा कि प्रत्येक धर्म का सांप्रदायिक कलेवर उनके विकास के अनुसार विविध रूपों में दृष्टिगोचर होता है। हिंदू, मुस्लिम, सिख, पारसी, बौद्ध, ताओ, शिंतो आदि विभिन्न परिस्थितियों में जन्मे और विकसित हुए हैं। प्रत्येक की अपनी महत्ता और उपयोगिता है, पर कब? जबकि वे धर्म के शाश्वत सिद्धांतों का प्रतिपादन करें तथा मनुष्य जीवन के प्रमुख लक्ष्य की ओर उन्मुख रहें। लक्ष्य और सिद्धांतों को भुला देने से तो वे परस्पर मतभेदों को ही जन्म देते हैं, अतः किसी भी धर्म की महत्ता एवं सार्थकता इसी बात में सन्निहित है कि वह मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठापना में कितना अधिक सहयोग देता है। वह मनुष्य जाति को कितना अधिक एक-दूसरे के नजदीक लाता है तथा आपसी स्नेह सौहार्द विकसित करता है।

इसे दुर्भाग्य ही कहा जाना चाहिए कि आज समाज में बहुतायत उन व्यक्तियों की है जो धर्म के वास्तविक स्वरूप और लक्ष्य से अपरिचित हैं। वे प्रायः संप्रदाय रूपी कलेवरों को ही धर्म का यथार्थ स्वरूप समझते हैं। फलतः वे जिन क्रिया-कृत्यों को ग्रहण करते हैं उन्हीं तक सीमित रह जाते हैं और रूढ़िग्रस्त होकर धर्म के लक्ष्य से भटक जाते हैं। कभी-कभी धर्म संप्रदायों को लेकर जो मतभेद होते हैं, अर्थात संघर्ष उठते हैं, यदि उनकी मीमांसा विवेकपूर्ण ढंग से की जाए तो स्पष्ट होगा कि वे झगड़े रूढ़िग्रस्तता एवं अदूरदर्शिता के कारण ही होते हैं।

धर्म का प्राण विवेक है जो मनुष्य की अदूरदर्शिता को दूर करता और गगन की तरह अनंत तथा उदार बनाना चाहता है, पर यह तभी संभव है, जब धर्म के प्राणतत्व का अवलंबन लिया जाए तथा सांप्रदायिकता की संकीर्णता से निकला जाए। सभी मत और संप्रदाय मनुष्य के अपने हैं और सभी भव्य हैं। वे सभी मनुष्यों को धर्मोन्मुख करने में जब तक सहायक हैं, तभी तक उनकी सार्थकता है। इनकी उपयोगिता को कुछ सीमा तक स्वीकार करते हुए स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि किसी संप्रदाय की छाया में पैदा होना अच्छा तो है, पर उसकी सीमाओं में ही आबद्ध रह जाना, मर जाना बहुत बुरा है। हमें या तो संप्रदाय को इतना विस्तृत बनाना होगा कि उसकी परिधि में समस्त संसार आ जाए। यदि ऐसा संभव नहीं होता तो स्वयं को सांप्रदायिकता की संकीर्ण सीमा से बाहर निकालना होगा। मानव जाति का कल्याण धर्म के प्राणतत्व के अवलंबन से ही संभव है।

यकीनन धर्म कोई संकुचित संप्रदाय का पर्याय भर नहीं है। विशाल, व्यापक धर्म है। ईश्वर तत्व के विषय में हमारी अचल श्रद्धा, पुनर्जीवन में आस्था, सत्य और अहिंसा में संपूर्ण निष्ठा। इसमें असहिष्णुता को अवकाश नहीं है मूल धर्म वह उच्चस्तरीय सत्ता है जो मनुष्य के स्वभाव तक में परिवर्तन कर देता है। जो हमें अंतर के सत्य से अटूट रूप से बांध देता है और जो निरंतर अधिक शुद्ध और पवित्र बनाता रहता है। वह मनुष्य की प्रकृति का स्थाई तत्व है, जो अपनी संपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार रहता है और उसे तब तक बेचैन बनाए रखता है कि जब तक उसे अपने स्वरूप का ज्ञान नहीं हो जाता। अपने स्रष्टा का ज्ञान नहीं हो जाता तथा रचयिता के और अपने बीच का सच्चा संबंध समझ में नहीं आ जाता। जो व्यवहार में काम आए और अहिंसा की कसौटी पर खरा उतरे वही धर्म है।
सही अर्थों में धर्मपरायणता का अर्थ है, एक ईश्वरीय सत्ता में विश्वास। ऐसा विश्वास जो मनुष्य ही नहीं हर प्राणी के प्रति प्रेम और आत्मीयता की भावना उभारता हो, संसार को एकता के सूत्र में आबद्ध करता हो। सच्चा धार्मिक रूढ़िगत धार्मिक व्यापारों से अपने को मुक्त रखता है। वह एक ऐसी अव्यक्त भाषा बोलता है, जिसे संसार का हर प्राणी समझ सकता है। यह वाणी उसके अंतःकरण से भाव संवेदनाओं के रूप में प्रस्फुटित होती है। विश्व उसका परिवार और प्रत्येक मनुष्य उसका अपना बंधु होता है। सबका कल्याण करना ही उसकी पूजा बन जाती है। धर्म का जीवन में सही अर्थों में अवतरण ऐसी ही अनुभूति कराता है। इस एकत्व का प्रतिपादन एवं परिपालन प्रत्येक धर्म-संप्रदाय को न केवल सैद्धांतिक रूप से वरन व्यवहार द्वारा भी प्रस्तुत करना होगा। धर्म की महान गरिमा इसी तथ्य पर अवलंबित है। धर्म का सही स्वरूप समझने और शाश्वत सिद्धांतों को व्यावहारिक जीवन में उतारने पर ही मनुष्य जाति का भविष्य सुरक्षित रह सकेगा। उज्ज्वल भविष्य की आधारशिला इन्हीं तथ्यों पर अवलंबित है।
First 3 5 Last


Other Version of this book



धर्म पथ
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books



गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Divine Message of Vedas Part 4
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

Pragya Puran Stories -2
Type: TEXT
Language: ENGLISH
...

विश्व की महान नारियाँ-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

विश्व की महान नारियाँ-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

विश्व की महान नारियाँ-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

विश्व की महान नारियाँ-1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • धर्म-सार
  • धर्म कथा
  • धर्म और धार्मिकता
  • धर्म का तत्त्वज्ञान
  • धर्म का स्वरूप
  • धर्मो विश्वस्य जगतः प्रतिष्ठा
  • धर्म- एक शास्त्रीय दृष्टिकोण
  • धर्म और शास्त्र का तुलनात्मक विवेचन
  • धर्मो हि परमो लोके धर्मे सत्यं प्रतिष्ठतम्
  • धर्म और तत्वदर्शन की पृष्ठभूमि
  • धर्म एक परिष्कृत दृष्टिकोण
  • धर्म के तीन प्रश्न
  • धर्मो रक्षति रक्षितः
  • धार्मिकता का पर्याय चरित्रनिष्ठा
  • धर्म जीवन की दिशा
  • देवत्व प्राप्ति का मार्ग है—धर्म
  • धर्म परिवर्तनशील है या अपरिवर्तनशील?
  • पाप और पुण्य का रहस्य
  • धर्म बिना ज्ञान अधूरा है
  • धर्म - धारणा की उपेक्षा उसकी विकृतियों के कारण
  • पंगु धर्म को सहारा दीजिए
  • धर्म बिना जीवन नहीं
  • क्रांति तो धर्म क्षेत्र में भी लानी होगी
  • वैरागी
  • परम पूज्य गुरुदेव का सन्देश
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj